यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 31 जुलाई 2013

कुण्डली छंद...सपने ...डा श्याम गुप्त ....

सपने का संसार  तो है अद्भुत संसार,
कभी ये सपने टूटते, कभी हुए साकार|
कभी हुए साकार, झूठ सच समझ  न आये ,
व्यर्थ शेखचिल्ली से सपने मन नहीं लाये |
टूटें तो दुःख देयं, स्वप्न  कब होते अपने,
पर देखे बिन श्याम' होयं कब पूरे सपने ||

6 टिप्‍पणियां:

  1. सपने बुनते बीतता, जीवन का हर साल
    वर्तमान ही सत्य है , सपने मायाजाल
    सपने मायाजाल , जाग कर सपने देखें
    निर्धारित कर लक्ष्य, दूर तक नजरें फेकें
    रह जाओ ना कहीं , कुछ अहसास ही चुनते
    जीवन का हर साल , बीतता सपने बुनते ||

    जवाब देंहटाएं
  2. छुपा हुआ हर पंक्ति में, सारा जीवन सार
    जिसने बाँधे सेतु खुद , वो ही उतरे पार
    वो ही उतरे पार , स्वप्न से रिश्ते अच्छे
    सपने झूठे होयँ , किंतु हैं रिश्ते सच्चे
    चयन करें क्या ठीक,देख मधुरस औ' महुआ
    सारा जीवन सार, हर पंक्ति में छुपा हुआ.

    जवाब देंहटाएं
  3. कहते हैं सब सृष्टि है , ब्रम्हा जी का स्वप्न
    सृष्टि का ही अंश मैं, मैं क्या ? हल हो प्रश्न
    मैं क्या ? हल हो प्रश्न, गुणी ज्ञानी बतलायें
    क्यों चुभते हैं स्वप्न , मुझे इतना समझायें
    भीगी आँखें भली , न भाते आँसू बहते
    ब्रम्हा जी का स्वप्न , सृष्टि है सब हैं कहते ||

    जवाब देंहटाएं
  4. नाना विधि आगम निगम, करें व्याख्या श्याम |
    अगर सफलता चाहिए, देख स्वप्न अविराम |
    देख स्वप्न अविराम, तदनु उद्योग जरुरी |
    भली करेंगे राम, कामना करते पूरी |
    सपनों का संसार, मधुर है ताना बाना |
    इसीलिए अधिकार, सभी का है सपनाना ||

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह वाह क्या सजा है सपनों का संसार,
    रविकर निगम करें यथा कुण्डलिया साकार |
    कुण्डलिया साकार करें व्याख्या यूं बहुविधि,
    सपने देखें मधुर करें उद्योग विविधि-विधि|
    करिये श्रम विधि भांति,यदि हो उन्नति की चाह,
    केवल यूं न प्रसन्न हों, सुन्दर सपना वाह |




    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...