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बुधवार, 3 जुलाई 2013

***नीति के दोहे ***

कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?
वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १

शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास
दुर्गुण रहित चरित्र में, होता शक्ति निवास!!२

गुरुता का व्यवहार ही, गुरु को करे महान
पूजनीय औ श्रेष्ठ जो, पायें खुद सम्मान!!३

नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव
दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!४

अवगुण निज में देखिये, रख सद्गुण पहचान
त्रुटियों से जो सीख ले, जग में वही महान!!५

मन को ऐसा राखिये ,जैसे गंगा नीर !
निर्मल जल से जिस तरह ,रहता स्वच्छ शरीर !!६

मोल भाव ना ज्ञान का ,क्रय-विक्रय ना होय!
खर्च करो जितना इसे ,वृद्धि निरंतर होय !! ७

सच्चा सेवक है वही ,जो दे सबको चैन !
देख दूसरों की व्यथा ,जिसके छलके नैन !!८

हृदय धनी उस मनुज का ,जग में उसका मान !
ऊँच-नीच सम भाव जो ,सबको दे सम्मान!!९

लोभ मोह से दूर हो ,प्रभु महिमा बतलाय !
मन को रखता स्वच्छ जो ,संत वही कहलाय !!१०

***राम शिरोमणि पाठक*** 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आदरणीय पाठक जी!
    यह सीखने और सिखाने का मंच है। अभी आपसे हमें बहुत कुछ सीखना है।
    जल्दी ही किसी पोस्ट में इन दोहों की समीक्षा भी की जायेगी!
    आभार आपका!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय रूपचंद्र जी, मै शिष्य ही हूँ और मै खुद सीख रहा हूँ //स्नेह बनायें रखें ///सादर

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. हार्दिक आभार आदरणीय डॉ राज सक्सेना जी //सादर

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (04-07-2013) को सोचने की फुर्सत किसे है ? ( चर्चा - 1296 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. दोहे बहुत सुन्दर एवं ज्ञान वर्धक है

    जवाब देंहटाएं

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