कवि गोष्ठी
गोष्ठी कवियन की सदा, बहुविधि है सुखधाम,
कला अर्थ अरु भाव की,व्याख्या सुखद ललाम |
व्याख्या सुखद ललाम,विविधि रस कविता सोहे,
रचना नित्य नवीन, सभी के मन को मोहे |
धर्म नीति साहित्य, विविध चर्चा संगोष्ठी,
श्याम ' सुहानी सफल ,सदा ही ये कवि गोष्ठी ||
आलोचना
अपनी जो आलोचना, सुनै नहीं चित लाय ,
शान्ति भंग चित की करे, श्याम रोष आजाय |
श्याम रोष आजाय, वो अभिमानी अज्ञानी,
सुनै शांत चित लाय , वही सज्जन शुचि ज्ञानी |
श्याम जो चाहे हो, सुन्दर शिव रचना अपनी,
सदा शांत चित लाय, सुने आलोचना अपनी ||
ज्ञानी-अज्ञानी
ज्ञानी अज्ञानी यथा, साधू और असाधु,
छोट-बड़े पहचानिए, जब हो वाद-विवाद |
जब हो वाद-विवाद , शांत चित चर्चा भावै,
सुन आलोचना स्वयं. कोप नहीं मन में लावे |
कहें श्याम' ते ऊँच, वो ही सज्जन हैं ज्ञानी ,
रहि न सकें जो शांत, ते अभिमानी अज्ञानी ||
गोष्ठी कवियन की सदा, बहुविधि है सुखधाम,
कला अर्थ अरु भाव की,व्याख्या सुखद ललाम |
व्याख्या सुखद ललाम,विविधि रस कविता सोहे,
रचना नित्य नवीन, सभी के मन को मोहे |
धर्म नीति साहित्य, विविध चर्चा संगोष्ठी,
श्याम ' सुहानी सफल ,सदा ही ये कवि गोष्ठी ||
आलोचना
अपनी जो आलोचना, सुनै नहीं चित लाय ,
शान्ति भंग चित की करे, श्याम रोष आजाय |
श्याम रोष आजाय, वो अभिमानी अज्ञानी,
सुनै शांत चित लाय , वही सज्जन शुचि ज्ञानी |
श्याम जो चाहे हो, सुन्दर शिव रचना अपनी,
सदा शांत चित लाय, सुने आलोचना अपनी ||
ज्ञानी-अज्ञानी
ज्ञानी अज्ञानी यथा, साधू और असाधु,
छोट-बड़े पहचानिए, जब हो वाद-विवाद |
जब हो वाद-विवाद , शांत चित चर्चा भावै,
सुन आलोचना स्वयं. कोप नहीं मन में लावे |
कहें श्याम' ते ऊँच, वो ही सज्जन हैं ज्ञानी ,
रहि न सकें जो शांत, ते अभिमानी अज्ञानी ||
dhanyvaad yashoda ji ....
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