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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

नीति कुंडलियां ...... डा श्याम गुप्त ....

                 कवि  गोष्ठी
गोष्ठी कवियन  की सदा, बहुविधि है सुखधाम,
कला अर्थ अरु भाव की,व्याख्या सुखद ललाम |
व्याख्या सुखद ललाम,विविधि रस कविता सोहे,
रचना  नित्य  नवीन,  सभी के मन को मोहे |
धर्म  नीति साहित्य, विविध चर्चा संगोष्ठी,
श्याम ' सुहानी सफल ,सदा ही ये कवि  गोष्ठी ||


             आलोचना                
 अपनी जो आलोचना, सुनै नहीं चित लाय ,
शान्ति भंग चित की करे, श्याम रोष आजाय |
श्याम रोष आजाय, वो अभिमानी अज्ञानी,
सुनै शांत चित लाय , वही सज्जन शुचि ज्ञानी |
श्याम जो चाहे हो, सुन्दर शिव रचना अपनी,
सदा शांत चित लाय, सुने आलोचना अपनी ||

                     ज्ञानी-अज्ञानी
  ज्ञानी  अज्ञानी यथा, साधू और असाधु,
छोट-बड़े  पहचानिए, जब हो वाद-विवाद |
जब हो वाद-विवाद , शांत चित चर्चा भावै,
सुन आलोचना स्वयं. कोप नहीं मन में लावे |
कहें श्याम' ते ऊँच, वो ही सज्जन हैं ज्ञानी ,
रहि न सकें जो शांत, ते अभिमानी अज्ञानी ||





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