धरी धरोहर सुधि सखी, मन में धीरज धार |
तन धीरज कैसे धरै, बता सखी सुकुमार ||
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पोर - पोर थर-थर करे, प्रिय की सुधि से आज |
क्या भूलूं उन क्षणों से, हर पल प्रिय है 'राज' ||
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सुधि आई मधु-रात्रि की, भेजी प्रियतम गेह |
सास,ससुर और ननद का,पाया अनुपम स्नेह |
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प्रथम पहर मधुयामिनी , प्रियतम थामा हाथ |
पोर - पोर बिहंसा सखी, हर किलोल के साथ ||
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शनै:-शनै: दरके सभी, संयम के स्तम्भ |
प्रियतम ने मम देह पर, लिक्खे कई निबन्ध ||
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वस्त्र संग छूटे सभी, तन-मन के तटबंध |
अंतरमन तक हो गए, जन्मों के संम्बंध ||
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मलयानल सी चल पड़ी, ले चन्दन की गंध |
पूर्ण - रात्रि टूटे सभी, पुन:- पुन: प्रतिबंध ||
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रात्रि पलों में खो गई, आई अगली भोर |
गया जीविका हेतु मम,प्राणेश्वर चितचोर ||
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प्रिय-सुधियो से रच रहे, नैनन मांहि गुलाब |
विरह व्यथा में डूब कर, बहा अश्रु सैलाब ||
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प्रिय की सुधि में इस तरह, गया हृदय का चैन |
वापस ज्यों आता नहीं, मुख से निकला बैन ||
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छूट गया जल सेवना, छूटा कब से अन्न |
विरह-व्यथा से प्राण की, तनमन मरणासन्न ||
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भेज सखी संदेश यह, हैं संकट में हैं प्राण |
आकर मुझको दें प्रिय, इस संकट से त्राण ||
बहुत सुन्दर दोहावली!
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 13/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
भितिका बिछड़ी पूँछड़ी, बिछड़े जल जस मीन ।
जवाब देंहटाएंऐसोइ बिछड़े बिछड़े, ये दिन साजन हीन ।९१।
भावार्थ : -- छ्पकाली से बिछड़ कर पूँछ तड़पती है, और जल से बिछड़ कर जिस प्रकार मछली तड़पती है । उसी प्रकार साजन के बिना ये दिन भी बिछड़ कर तड़प रहे हैं ॥
क्या भूलूं उन क्षणों से
जवाब देंहटाएंआदरणीय, मात्रायें 14 हो रही हैं और विषम चरण के अंत में 2 गुरु आ रहे हैं, कृपया देख लें....
पुना; आदरणीय,
जवाब देंहटाएंसास,ससुर और ननद का (14 मात्रायें)
क्या इसे [सास ससुर औ' ननद का] किया जा सकता है ?
इसी तरह
आकर मुझको दें प्रिय (12 मात्रायें) विषम चरण के अंत में लघु,लघु,लघु या लघु,दीर्घ आना चाहिये.
क्या इसे [आकर मुझको दें प्रिये] किया जा सकता है ?
सादर............
रीतिकाल याद आ गया 1
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव..
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