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रविवार, 29 मई 2016

दोहे !


बारिश बिन धरती फटी, सुखे नदीतल ताल
धरणी जल दरिया सुखी, झरणा इक-सी हाल |

बादल जल सब पी गया, धरा का बुरा हाल
कण भर जल नल में नही, तृषित है बेहाल |

श्याम मेघ बरसो यहाँ, धरती से क्या बैर
अटल सत्य मानो इसे, हम तुमकु किये प्यार |

कहीं बाड़ें कहीं सुखा, सोचो मुक्ति उपाय
कम से कम जल वापरे, इ है उत्तम उपाय |

अतिशय गरमी आज है, चरम छोर पर ताप
खाली नल में मुहँ लगा, प्यासा करे संताप |

रवि है आग की भट्टी, बरस रहा है आग
झुलस रहा है आसमाँ, जलता जंगल बाग़  |

नहा कर वर्षा नीर से, फलता वृक्ष फलदार
फूल के हार से धरा, करती है श्रृंगार |

जल है तो सब जान है, जल बिन सब है मृत
मरने वालों की दवा, नीर ही है अमृत |


© कालीपद ‘प्रसाद”

बुधवार, 25 मई 2016

भारतीय साहित्य में स्त्री-पुरुष के परस्पर व्यवहार का संतुलित रूप --डा श्याम गुप्त ..



भारतीय साहित्य में स्त्री-पुरुष के परस्पर व्यवहार का संतुलित रूप 
          भारतीय संस्कृति व प्रज्ञातंत्र में तथा तदनुरूप भारतीय साहित्य में, स्त्री-पुरुष या पति-पत्नी के आपसी व्यवहार के संतुलन का अत्यधिक महत्व रखा गया है | आज भी यह भाव परिलक्षित करती हुईं ‘किस्सा तोता-मैना’ की कथाएं स्त्री-पुरुष के आचार-व्यवहार की समता व समानता की कहानियां ही हैं जिनमें दोनों के ही अनुचित आचरणों का विविध रूप से वर्णन किया गया है | यदि पुरुष प्रधान समाज में यह अपेक्षा थी कि महिलायें पुरुष की महत्ता को पहचानें व मानें एवं यहाँ तक कि वे पति की चिता पर सती भी होजायं, तो पुरुष से भी यही अपेक्षा की जाती थी कि वे महिला के अधिकार व सम्मान सर्वाधिक ध्यान रखें |



         यद्यपि विभिन्न कथाओं आख्यानों में पति या प्रेमी के लिए बिछोह सहने वाली महिलाओं की जितनी कथाएं हैं उतनी पुरुषों की नहीं, जबकि पुरुषों के भी स्त्री के प्रति बिछोह दुःख व पीढा की भी उतनी ही घटनाएँ उपलब्ध हैं | क्या कोई आज यह मानने को तैयार होगा कि किसी पुरुष ने भी इसलिए अपने प्राण त्याग दिए कि वह पत्नी के बिना जीवन नहीं बिता सकता था |


          दैव-सभ्यता अथवा मानव सभ्यता के आदिकाल में स्वयं शिव, सती का शरीर लेकर समस्त ब्रह्माण्ड में घूमते रहे, यह किसी भी पुरुष का स्त्री के प्रति सर्व-सम्पूर्ण समर्पण था| पुरुरवा का उर्वशी के विरह में समस्त उत्तराखंड में घूमते रहना, महाराजा अज द्वारा पत्नी महारानी इंदुमती की मृत्यु पश्चात सदमे से कुछ समय उपरांत ही देह त्याग देना, दुष्यंत की शकुन्तला के लिये व्याकुलता से खोज, मेघदूतम के यक्ष का प्रेमिका को बादल द्वारा भेजा गया सन्देश, भृंगदूतं काव्य में राम का सीता की खोज हेतु भ्रमर को भेजना,  दशरथ का कैकेयी के कारण प्राण त्याग, स्वयं राम का सीता के अपहरण के समय राम रोते हुए समस्त वन-पेड़ पौधों, पशु-पक्षियों से विरह-व्यथा कहते हुए विक्षिप्त की भाँति घूमते रहे | सीता के लिए सागर सेतु निर्माण, महासमर, सीता वनगमन के वियोग में दूसरा विवाह न करना एवं सीता के धरती में समा जाने के उपरांत सरयू में जल समाधि लेना, कि वे पत्नी के बिना नहीं रह सकते थे, श्री कृष्ण का वन में राधे राधे रटते हुए घूमते रहना, राधा व गोपियों हेतु उद्धव को भेजना आदि घटनाएँ इस तथ्य की साक्षी हैं कि पुरुषों/पतियों ने भी इतिहास में स्त्री/पत्नी के लिए उतने ही, कष्ट सहे हैं एवं उत्सर्ग किया है जितना स्त्रियों ने |  



         वस्तुतः परवर्ती काल में एवं भक्ति साहित्य में पुरुष का नारी के प्रति इस प्रकार का प्रेम नहीं दिखलाया गया है, जहां महिला-भक्त का भगवान् के प्रति भक्त-प्रेम दर्शित है वहीं पुरुष-भक्त का देवी के प्रति पुत्रवत वात्सल्य प्रेम दर्शाया गया है | इस प्रकार कालान्तर में पुरुषों के समर्पण एवं पत्नी-स्त्री के लिए त्याग की कथाएं भुला दी गयीं | पुरुष प्रधान समाज में नारी की महत्ता व महत्त्व की सदैव प्रधानता बनी रहे एवं नारी,  समाज व पुरुष का प्रेरणा-श्रोत बनी रहे अतः नारी के त्याग की कथाएं प्रमुखता पाती रहीं |




'दशरथ-कैकेयी'
दशरथ-कैकेयी
'पुरुरवा--उर्वशी विरह रत'
पुरुरवा -उर्वशी की याद में ...
'हे खग मृग हे मधुकर सैनी तुम देखी सीता मृगनयनी ...विरह रत राम ..'
राम--हे मधुकर हे खग मृग सेनी , तुम देखी सीता मृगनयनी ..
'शिव --सती के शव सहित ---'
शिव-सती
'पुरुरवा --उर्वशी विरह में समस्त उत्तराखंड (जम्बू-द्वीप) में वन वन घूमते हुए ....'
पुरुरवा--वन वन भ्रमण --उर्वशी विरह में

मंगलवार, 24 मई 2016

Memories --poem--- Dr shyam gupta

                             

Memories --poem---


Through the campus of Staff College
Beneath the trees, I pass-
To reach in time
For management class.


The memories of college
Strike my mind,
Like a revolution-
Of cyclonic wind.


The friends the gossips,
The class-room heats,
Sweet sour memories
Of functions and treats.


The memories of-
Sports and fetes,
Of unsolved issues,
And sweet sour dates.


What memories are?
When I think apart,
These are books and magazines
In the library of heart.


We open them up,
In the secret hours lane,
To live those forgotten-
Moments again.


शुक्रवार, 20 मई 2016

दो मुक्तक "आहुति देते परवाने हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

(1)
जीवन में तम को हरने को, चिंगारी आ जाती है।
घर को आलोकित करने को, बहुत जरूरी बाती है।
होली की ज्वाला हो चाहे, तम से भरी अमावस हो-
हवनकुण्ड में ज्वाला बन, बाती कर्तव्य निभाती है।
(2)
हम दधिचि के वंशज हैं, ऋषियों की हम सन्ताने हैं।
मातृभूमि की शम्मा पर, आहुति देते परवाने हैं।
दुनियावालों भूल न करना, कायर हमें समझने की-
उग्रवाद-आतंकवाद से, डरते नहीं दीवाने हैं। 

शुक्रवार, 13 मई 2016

डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार --डा श्याम गुप्त ..


               डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार 
 
       चार शेर मिलकर एक हाथी या जन्गली भैंसे को मार गिराते हैं तो क्या आप इसे शेरों की 
 शानदार विजय कहेंगे या ईश्वर की  ना इंसाफी कहेंगे कि उसने हाथी को तीब्र नाखून सहित पंजे क्यों नहीं दिए | यह जंगल नियम है डेमोक्रेसी नहीं | जंगल में ऐसा ही होता है | भोजन प्राप्ति हेतु | इस प्रक्रिया में आचरण –सत्यता का कोइ अर्थ नहीं होता |
 
          राजाओं के समय में एवं अंग्रेजों के समय में भी शेर को हांका द्वारा घेर कर लाचार अवस्था में बन्दूक से मारा जाता था और बड़ी शान से इसे शिकार कहा जाता था | यह भी जंगल क़ानून की ही भाँति था, मनुष्य का जंगल  क़ानून  |
 
          १३वीं शताब्दी में विश्व के सबसे प्रसिद्द, शक्तिशाली, धनाढ्य एवं सुराज वाले राज्यतंत्र विजयनगर साम्राज्य को दक्षिण भारत की छः छोटी छोटी विधर्मी रियासतों ने मिलकर धोखे से पराजित कर दिया था, एवं ६ माह तक वह विश्व प्रसिद्द राज्य व जनता लूटी जाती रही थी |
 
          यही आजकल होरहा है, राजनीति में  –डेमोक्रेसी के नाम पर | धुर विरोधी नीतियाँ, आचरण वाली राजनैतिक पार्टियां आपस में मिलकर, जनमत द्वारा बहुमत में आई हुई पार्टी को किसी व्यर्थ के विन्दु विशेष पर हरा देते हैं और फिर चिल्ला चिल्ला कर डेमोक्रेसी के बचने की दुहाई दी जाती है |
 
         अभी हाल में ही उत्तराखंड की विधान सभा का घटनाक्रम इसी प्रकार का घटनाक्रम है | यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी प्रश्न चिन्ह उठाता है | आखिर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा अवैध घोषित किये गए सदस्यों को वोटिंग से वंचित क्यों किया, जबकि राज्यपाल के आदेश की वैधता का कोर्ट से फैसला नहीं हुआ था | फ्लोर-टेस्ट से पहले इस वैधता के प्रश्न का फैसला क्यों नहीं किया गया, ताकि सदस्यों के वैधता/अवैधता एवं उनके वोट देने के अधिकार का सही उपयोग होपाता | फ्लोर टेस्ट की ऐसी क्या जल्दी थी क्या राज्य कुछ दिन और राष्ट्रपति शासन में नहीं चल सकता था, जब तक अन्य सभापति, राज्यपाल व राष्ट्रपति के आदेशों पर फैसला नहीं होजाता | 
    यह कैसी डेमोक्रेस की जीत है जहां विधान सभा के सभापति, राज्यपाल, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट सभी के फैसले एक प्रश्नवाचक चिन्ह लिए हुए हैं| 
 
     यह वास्तव में तो डेमोक्रेसी की हार ही है |
 
    यदि यह डेमोक्रेसी की जीत है तो निश्चय ही मानव आचरण की हार है, और देश, समाज, राष्ट्र के लिए क्या आवश्यक है, यह तथाकथित डेमोक्रेसी या मानव आचरण |


गुरुवार, 5 मई 2016

कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?----डा श्याम गुप्त

                     कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?


              एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली," प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?"
             इस पर श्री हरि बोले, "गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आकर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।"

                        सदानीरा व परमपावन गंगा नदी को प्राणियों के समस्त पापों को दूर करने वाली कहा जाता है | परन्तु वह स्वयं अपवित्र नहीं होती| प्रत्येक हिंदू व उसके परिवार की इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए | युगों से ये प्रथा चली आ रही है | अस्थियाँ गंगा में विसर्जित होती आरही हैं फिर भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह अस्थियां जाती कहां हैं?

                  गौमुख से गंगासागर तक खोज करने के बाद भी वैज्ञानिक भी आज तक इस प्रश्न का उत्तर इसका उत्तर नहीं खोज पाए | क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है।

  सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार-------
 
-----मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। ”पारद“ शब्द में -पा = विष्णु...र = रूद्र शिव और ‘द’ = ब्रह्मा के प्रतीक है। यह अस्थियां सीधे श्रीहरि के चरणों में बैकुण्ठ चली जाती हैं। जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे मरणोपरांत मुक्ति मिलती है।
धार्मिक दृष्टि से----- 

-----पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते है। पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इसलिए गंगा में ताम्र के सिक्के फैकने की प्रथा है | इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है।

  वैज्ञानिकों के अनुसार-----

--- गंगाजल में पारा (मर्करी) विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में उपस्थित कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक तत्व है। हड्डियों में गंधक (सल्फर) होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है जो जल में उपस्थित विभिन्न रासायनिक तत्वों, मूलतः क्लोराइड व ब्रोमाइड, आयोडाइड,कार्बन, मेग्नीशियम, पोटेशियम द्वारा औषधीय गुण उत्पन्न करते हैं। मूलतः यह मरकरी सल्फाइड साल्ट (HgS) का निर्माण करते हैं। जल में उपस्थित वायु द्वारा ऑक्सीकृत होने पर पारद पुनः मुक्त हो जाता है। और अस्थियों के रासायनिक विसर्जन यह क्रम चलता रहता है | हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।

---- पारा एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण, रज़त और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है। जो पारद-शिव लिंग बनाने के काम लाया जाता है | ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इससे शिवलिंग को "सुवर्ण रसलिंग" भी कहते हैं|

---- पारा अपनी चमत्कारिक और हीलिंग प्रॉपर्टीज के लिए वैज्ञानिक तौर पर भी मशहूर है। मर्क्यूरोक्रोम हीलिंग के लिए प्रयुक्त एक मुख्य रसायन है |

------ पारद को पाश्चात्य पद्धति में उसके गुणों की वजह से फिलोस्फर्स स्टोन भी कहा जाता है। आयुर्वेद में भी इसके कई उपयोग हैं| उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थमा, डायबिटीज में पारद से बना मणिबंध (ब्रेसलेट ) पहनाया जाता है |

मंगलवार, 3 मई 2016

‘मैं तुम हम---कुण्डली छंद .. डा श्याम गुप्त .....

मैं तुम हम---कुण्डली छंद ..


मैं’ औ ‘तुम’ हैं एक ही, उसके ही दो भाव ,
जो मिलकर बन जाँय ’हम’, हो मन सहज सुभाव |
हो मन सहज सुभाव, सत्य शिव सुन्दर हो जग,
सरल सुखद, शुचि, शांत सौम्य हो यह जीवन मग |
रहें ‘श्याम’ नहिं द्वंद्व, द्वेष, छल-छंद जगत में,
भूल स्वार्थ ‘हम’ बनें एक होकर ‘तुम’ औ ‘में’ ||





तुम मैं प्रभु! हैं एक ही, लोकनाथ हम आप |
बहुब्रीहि हूँ नाथ मैं, आप तत्पुरुष भाव |
आप तत्पुरुष भाव, लोक के नाथ सुहाए ,
लोक हमारा नाथ, नाथ मेरे मन भाये |
खोकर निज अस्तित्व, मुक्ति पाजाऊँ जग में,
मेरा ‘मैं’ हो नष्ट, लीन होजाए तुम में ||



हम तुम मैं वह आप सब उस ईश्वर के अंश,
फिर कैसा क्यों द्वंद्व दें, इक दूजे को दंश |
इक दूजे को दंश, स्वार्थ अपने-अपने रत ,
परमार्थ को त्याग, स्वयं को ही छलते सब |
अपने को पहचान दूर होजायं सभी भ्रम,
उसी ईश के अंश, श्याम’ सब मैं वह तुम हम ||

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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...