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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

होली पर दो कुंडलियाँ


होली के  त्योहार  पर, बरसें रंग  हजार |     
शत्रु-मित्र हर एक का, पाएं अदभुत प्यार |
पाएं अदभुत प्यार, छ्टा हो रंग - बिरंगी,
रहे आप से दूर, दुष्ट - मन हर  हुड़्दंगी |
कहे 'राजकवि' खेलें,जमकर आँख मिचौली,
होली पर हों,  क्लेशहीन-सतरंगी  होली |
-०-
होली पर अपना रखें, नियमित हर आचार |
हर हुड़दंगी से रखें, प्रेम - पूर्ण   व्यवहार |
प्रेम - पूर्ण व्यवहार,  नहीं उलझें - उलझाएं,
नशेबाज से दूर रहें, अति निकट न जाएं |
कहे 'राजकवि' होली पर कविता की चोली ,
जन-मानस में बाँट, मनाली अपनी होली |

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बृहस्पतिवार (18-07-2013) को में” हमारी शिक्षा प्रणाली कहाँ ले जा रही है हमें ? ( चर्चा - 1310 ) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आदर सहित आभार | स्नेह बनाए रखें |

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार स्नेह निरंतर रखें |

      हटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..अभिव्यंजना में..मेरी नई पोस्ट."कदम धरती पर ,मन में आसमान हो"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कृपा है आपकी स्नेह बनाए रखने की कृपा करें

      हटाएं

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