यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

जय कपीश तिहूँ लोक उजागर---डा श्याम गुप्त

जय कपीश तिहूँ लोक उजागर---
=======================
इतने नाम और जाति आज तक किसी को दिए गए हैं क्या !!
----- जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ---यूँहीं नहीं कहा है --- वे सार्वभौम हैं ...
---हर धर्म , जाति लालायित है उन्हें अपना बनाने में ----
-----माता सीता का वरदान सत्य में ही फलित होरहा है ---
------इसीलिये वे हनुमान हैं------सभी समझ लें 

-


  

रविवार, 23 दिसंबर 2018

मेरी डायरी और तुम- सूरज जायसवाल 'कबीरा'

मेरी डायरी और तुम
मेरी डायरी
मेरी डायरी और तुम
.....खैर अपनी बात अपनी डायरी को भी नही बताऊ तो किसे बताऊंगा। मेरी डायरी ही तो है जो हर रात को मेरे सारे अच्छे बुरे अनुभव खुद में सहेज लेती है। अच्छी बात ये है कि उसे मैं अपनी भाषा मे सब कुछ कह पाता हूं, कभी आज तक उसने ये नही कहा 'what the meaning of that lines? '

मैं सोच रहा था कि किसी दिन डायरी ने भी मेरी हिंदी समझने से इनकार कर दिया और तुम्हारी तरह वो भी कह उठे ' please tell me the meaning of your writing' उस दिन तो डायरी के उन कोरे पन्नो में भी वो अपनापन तलाशने में असफल हो जाऊंगा जैसे तुम्हारे दिल के किसी कोने में अपनी जगह तलाशने में हर बार असफल हो जाता हूं ।

पता है डायरी के किसी भी पन्ने में दिल नही है, पर उनसे मैं सिर्फ अपनी दिल की बातें ही share करता हु . वो क्या है कि दिमाग की तो पूरी दुनिया सुनती है, पर जब उन्हें अपने दिल की बात सुनाने जाओ तो हँसतें है सब। हा सच मे सब हँसतें है यार। तुम भी तो हँसती हो । क्या नही हँसती हो ? जब भी अपने दिल की बात तुम्हें बताने की सोचता हूं तुम्हे लगता है मैं मज़ाक कर रहा हु। तुम भी हँसती हो।

डायरी के पन्ने दिल नही रखते पर सब ज़ज़्बात सहेजतें है । और एक तुम हो, जो आजतक यह नही समझ पायी कि मैं तुम्हारे जिंदगी में क्यो हु?

    सच तो ये है कि तुम्हारी जिंदगी में मैं क्यो हु, ये बात तो आजतक मैं भी नही समझ पाया। मेरी सुबह से लेकर शाम तक, शाम से फिर सुबह तक, किसी हिस्से में तुम्हारा कोई वजूद नही । फिर भी जाने क्यों, तुम्हें सोचे बगैर मैं एक पल भी नही । एक पल भी नही... जाने क्यों ? 
- सूरज जायसवाल 'कबीरा'

   

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

कहानी ययाति की -- डा श्याम गुप्त



.                   


कहानी ययाति की -- 

      ययाति चन्द्रवंशी थे जो अपने आदि पुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे। पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि,अत्रि से चन्द्रमाचन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयुआयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए।

        वेद-पुराणों में उल्लेखित ययाति के कुल-खानदान से ही एशिया की जातियों का जन्म हुआ। ययाति से ही आगे चंद्रवंश में पुरुओं, यदुओंतुर्वसुओंआनवों और द्रुहुओं का वंश चला।
        ययाति प्रजापति ब्रह्मा की पीढ़ी में हुए थे। ययाति की पत्नियां देवयानी और शर्मिष्ठा  (दासी के रूप में थी देवयानी की )  थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थीतो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक पुत्र हुए और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहुपुरु तथा अनु हुए। ययाति की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम माधवी था। माधवी की कथा बहुत ही व्यथापूर्ण है। 
       इस प्रकार ययाति के प्रमुख पुत्र हुए - 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनद कहा गया है।
        7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर.. राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादवतुर्वसु से यवन,  द्रुहु से भोजअनु से मलेच्छ और पुरु सेपौरव वंश की स्थापना हुई।   .
          यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं राज्य लेने से इंकार कर दिया। इस पर ययाति ने  पुरु को राजा घोषित किया और वह प्रतिष्ठान  (प्रतिष्ठानपुर (इलाहाबाद में गंगा पार का (झूँसी क्षेत्र)   की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेशजो प्रदेश दिए गएउनका विवरण इस प्रकार है-
---- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल)बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला।
-----तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला.
---द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा
---- अनु को गंगा-यमुना दो-आब के पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी |

1. पुरु का वंश : पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए उनमें से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश में ही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर परीक्षित... जिनके पुत्र थे जन्मेजय।
------सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत... का था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे।

2. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए। 

3. तुर्वसु का वंश : तुर्वसु के वंश में भोज (यवनहुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्निवह्नि का भर्गभर्ग का भानुमानभानुमान का त्रिभानुत्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ मरूत। -----मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा थापरंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।
----- महाभारत के अनुसार ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थेपर ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण इनकी गिनती शूद्रों में होने लगी। महाभारत युद्ध में ये कौरवों के साथ थे। इससे पूर्व.. दिग्विजय के समय नकुल और सहदेव ने इन्हें पराजित किया था।  .
4अनु का वंश : अनु को ऋ‍ग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीरकैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे। 
5द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओंको इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया।
      पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतुसेतु का आरब्धआरब्ध का गांधागांधार का धर्मधर्म का धृतधृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ।प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए।  म्लेच्छों (अरबों) के राजा हुए। 
           यदु और तुर्वस को दास कहा जाता था।( देवयानी की दासी के रूप में रही शर्मिष्ठा के पुत्र होने से )  तुर्वस और द्रुह्यु से ही यवन और मलेच्छों का ‍वंश चला।
-----इस तरह यह इतिहास सिद्ध है कि ब्रह्मा के एक पु‍त्र अत्रि... के वंशजों ने ही यहुदीयवनी और पारसी धर्म की स्थापना की थी। इन्हीं में से ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ। यहुदियों के जो 12 कबीले थे उनका संबंध द्रुह्मु से ही था।


ययाति---भोग व वैराग्य कथा
                  मृत्यु समय आने पर पुरु ने कहा अभी तो मेरा भोगों से मन ही नहीं भरा | मृत्यु ने कहा यदि कोई पुत्र अपना यौवन तुम्हें दे तो और समय मिल सकता है |
      पुरु ने कहा कि पिताश्रीमैं अपनी उम्र आपको दे देता हूं। जब आपका मन 100 साल भोगकर नहीं भरातब मेरा कहां भर पाएगा तुम मुझे आशीर्वाद दो। ययाति बहुत खुश हुआ और कहने लगा कि तू ही मेरा असली बेटा है। ये सब तो स्‍वार्थी हैं। तुझे बहुत पुण्‍य लगेगा। तूने अपने पिता को बचा लिया इसलिए तुझे स्वर्ग मिलेगा। 
    100 साल के बाद फिर मौत आई और बाप फिर गिड़गिडाने लगा और उसने कहा कि अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ है। ये 100 साल ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला। पल में बीत गए। तब तक उसके 100 बेटे और पैदा हो चुके थे। नई-नई शादियां की थींमौत ने कहातो फिर किसी बेटे को भेज दो।
     और ऐसा चलता रहा। ऐसा कहते हैं कि ऐसा 10 बार हुआ। ययाति हजार साल का हो गया बूढ़ातब भी मौत आई और मौत ने कहाअब क्‍या इरादे है?  ययाति हंसने लगा। उसने कहा,  अब मैं चलने को तैयार हूं। यह नहीं कि मेरी इच्‍छाएं पूरी हो गईंइच्‍छाएं वैसी की वैसी अधूरी हैं। मगर एक बात साफ हो गई कि कोई इच्‍छा कभी पूरी हो नहीं सकती। मुझे ले चलो। मैं तैयार हूँ ... ले चलो। मैं ऊब गया।
      यह भिक्षापात्र भरेगा नहीं। इसमें तलहटी नहीं है। इसमें कुछ भी डालोयह खाली का खाली रह जाता है।  राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्हों ने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया ... |

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की----डा श्याम गुप्त

डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की----- क्रमिक पोस्ट---

Image may contain: 1 person\
अनुशंसा ---- डा सुलतान शाकिर हाशमी ----
===========================================
महाकवि डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की’ प्रकाशित होरहा है जिसमें उन्होंने उनके मन-लुभावनी, उत्साहवर्धक एवं तनाव को खुशी में, दुःख को शांति में बदलने की क्षमता रखने वाली अपनी सोच का एक अनूठा दर्पण शायरी के रूप में प्रस्तुत करके शायरी के खजाने को मालामाल किया है | 
------उनकी नवीन उद्भावनाओं को देखकर आत्मचिंतन, आत्ममंथन एवं एकाग्रता का एहसास खुद ब खुद पैदा होजाता है |
\
डा श्यामगुप्त का नवीन संग्रह ‘पीर ज़माने की ‘ उनके द्वारा लिखित अनेक लोकप्रिय ग़ज़ल संग्रहों की परम्परा में एक नया अध्याय आपके समक्ष प्रस्तुत है, 
------जिसमें एक संपन्न कवि की प्रतिभा, वैभव एवं चिन्तन को ग़ज़ल के धरातल पर शिद्दत से महसूस किया जा सकता है | 
------डा श्यामगुप्त ने शुरू में ही ‘ग़ज़ल की बात’ में स्पष्ट रूप से लिखा है की काफिया, रदीफ़, गैर–रदीफ़ ग़ज़ल, कसीदा और ग़ज़ल का अर्थ क्या होता है | 
------ग़ज़ल की परम्परा और इतिहास पर उनका ये तुलनात्मक लेख उनकी विद्वता का परिचायक है | वह लिखते हैं---
‘मतला बगैर हो ग़ज़ल, हो रदीफ़ भी नहीं ,
यह तो ग़ज़ल नहीं, ये कोइ वाकया नहीं |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त अन्य ख़ूबसूरत शेर पेश करते हुए लिखते हैं—
‘उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है,
दरो-दीवार जो मैंने ही बनाई है |’
‘इस सूरतो रंग का क्या फ़ायदा’ श्याम,
जो मन नहीं पीर जमाने की समाई है |’
--------इसी तरह वह छोटी बहर में बहुत आसान ग़ज़ल ‘खुशी लुटाकर खुश ‘ में इस तरह के शेर प्रस्तुत करते हैं जो दिलों को मोह लेने का दम रखते हैं, जैसे ---
देख मुझको जला होगा,
वो कोइ दिलजला होगा |
गज़ब हैं श्याम की गज़लें,
कोइ तो मामिला होगा | ----तथा----
‘कोई गले लगा कर खुश,
कोई हमें सताकर खुश |
कोई सबकुछ पाकर खुश,
श्याम तो खुशी लुटाकर खुश |’
\
गजल ‘आज आदमी ‘ में वह इस तरह मुखर होते हैं जैसे वक्त की सचाई बयां कर रहे हों ----
‘अब आदमी के सर पे बैठा आज आदमी,
छत अपने सर की ढूंढता आज आदमी |
हर आदमी है त्रस्त मगर होंठ बंद हैं,
अपने ही मकड़जाल बंधा आज आदमी |
\
चूंकि डा श्यामगुप्त स्वयं में कलम व कलाम के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं इसलिए वह ‘कविता–कामिनी’ में लिखते हैं---
‘किस दिल में कविता-कामिनी का राज नहीं है |
है बात और काव्य जो दिलसाज नहीं है |’
कवि बादशाह है सदा अपने कलाम का ,
है बात और उसके सर पे ताज नहीं है |’
\
डा श्यामगुप्त को उर्दू ग़ज़ल के बुनियादी उसूल अच्छी तरह मालूम हैं तभी वह मतला और मख्ता भी जानते हैं और काफिया रदीफ़ भी |
-------उन्होंने अपनी शायरी में जिन्हें अच्छी तरह बरता भी है | वह कहते हैं---
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है ,
हो काफिया ही जो नहीं, बेचारी ग़ज़ल होती है |
हर शेर एक भाव हो वो जारी गजल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है || ----एवं—
कुछ तुम रुको कुछ हम रुकें चलती रहे ये ज़िंदगी |
कुझ तुम झुको कुछ हम झुकें ढलती रहे ये ज़िंदगी |
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें सुनती रहे ये ज़िंदगी ,|
कुछ तुम सुनो कुछ हम सुनें कहती रहे ये ज़िंदगी |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त के इस नए ग़ज़ल संग्रह ‘पीर ज़माने की; में ऐसी बेशुमार गज़लें मौजूद हैं जिसमें दो पंक्तियों की शायरी के नियमों में बंधी हुई जो गज़लें देखी हैं वह भाव और विचारों से परिपूर्ण हैं,
------- बल्कि एसी ही शायरी को ग़ज़ल कहते हैं और शायरी में गजलों को मालिका कहा जाता है |
--------वह शायरी जिसमें सुन्दरता हो, तुकांत, लय, गति, भाव, विषय और प्रवाह हो जिसे पढ़ते पढ़ते शायरी के सागर में डूबने का ऐहसास, वादियों में घूमने का पुरमस्त कैफ, जवान और वयान की नुदरत साफ़ व शफ्फाफ़ नज़र आती हो |
-------डा श्यामगुप्त ऐसी ही शायरी के लिए जाने जाते हैं | मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस नए संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करता हूँ |
--- डा सुलतान शाकिर हाशमी
पूर्व सलाहकार सदस्य, योजना आयोग, भारत सरकार
मो. ८०९०३०१४७१ ..

------क्रमश --आगे --
   प्रस्तावना ------

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...