हरिगीतिका चार चरण २८
मात्राओं १६-१२ पर यति वाला सममात्रिक तुकांत छंद है जिसमें
अंत में लघु-गुरु या
लघु लघु लघु रहता है एवं चारों चरणों में समतुकांत या दो-दो चरणों में
समतुकांत
होने चाहिए| यथा---
१.-----
चारों चरण समतुकांत .....लघु-गुरु या लघु लघु लघु .....
श्री
राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं = लघु-गुरु या (= रु ण म् = लघु लघु लघु )
नव कंज
लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं (= रु ण म् = | | | )
कंदर्प
अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ( = न्द र म् =| | | )
पट पीत
मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनकसुता वरं ( = व र म् = | | | ) ----गो.तुलसी दास
त्यौहार
प्रिय मानव जगत में सौख्य का आधार है,
उत्सव
जहां होते न वह भी भला क्या संसार है|
त्यौहार
बिन जीवन जगत बस व्यर्थ का व्यापार है ,
हिल मिल
उठें बैठें चलें यह भाव ही त्यौहार है |
--- डा श्याम गुप्त ..
२.----- दो दो चरण समतुकांत.....व लघु-गुरु ...
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल पावक खरभरे |
मन हरष सब गंधर्ब सुर मुनि नाग किंन्नर दुख टरे ||
कट कटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं |
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं || ---- गोस्वामी तुलसीदास
थी सदा ही नारी निपुण हर कार्य दक्ष सदा रही |
युग श्रम-विभाजन के समय थी पक्ष में गृह के वही |
हाँ चाँद सूरज की चमक थी क्षीण उसकी चमक से |
वह चमक आज विलीन है निज देह दर्शन दमक से ||.... डा श्याम गुप्त ,,,
युग श्रम-विभाजन के समय थी पक्ष में गृह के वही |
हाँ चाँद सूरज की चमक थी क्षीण उसकी चमक से |
वह चमक आज विलीन है निज देह दर्शन दमक से ||.... डा श्याम गुप्त ,,,
३.---- चारों चरण समतुकांत व लघु लघु लघु....
नर की कसौटी पर रहे
नारी स्वयं शुचि औ सफल|
वह कसौटी है उसी की
परिवार हो सुंदर सुफल |
हो जाय जग सुंदर सकल
यदि वह रहे कोमल सजल |
नर भी उसे दे मान
जीवन बने इक सुंदर गज़ल || ----डा
श्याम गुप्त
बहुत सुन्दर जानकारीपरक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
धन्यवाद शास्त्रीजी.....
हटाएंधन्यवाद रविकर..आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ब्रिजेश जी....
जवाब देंहटाएंहरिगीतिका छंद को सुंदर उदाहरणों के साथ समझाया गया है. दो अलग-अलग काल के छंद पढ़कर आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंdhanyvaad arun jee.......
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