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सोमवार, 15 जुलाई 2013

आडवाणी-पुराण


   

अडवाणी ने भीष्म बन,चला दिया ब्रह्मास्त्र |
सीखों का लम्बा स्वयं,खोलदिया हर शास्त्र |
खोल दिया हर शास्त्र,  नफ़ीरी अलग  बजाते,
सबको लेकर चलो साथ, यह मन्त्र बताते |
कहे'राज' कवि,अधिक उम्र में सोच सयानी,
बाबर - ढांचा विध्वंस,  भुला बैठे अडवाणी ?
-०-
भजन-कीर्तन उम्र में,  ले सत्ता का ख्वाब |
मिटटी सबकी जानकर, करते फिरें खराब |
करते  फिरें  खराब,  प्रैस  में सब ले जाते,
घातों के हथियार, नवल नित उन्हें थमाते |
कहे'राज' कवि, मातम धुन पर भंगड़ानर्तन, 
घर पर पड़े  अकेले, करलो  भजन-कीर्तन |
-०-
चिन्तन और इतिहास का कुछ तो रखो ख्याल |
हिटलर बन सब कुछ किया,करते नहीं मलाल |
करते  नहीं  मलाल,  उठा  भगवा  रंग परचम ,
लौह - पुरुष बन इतरा रथ पर , चलते हरदम |
कहे 'राज' कवि,  चौथे-पन क्या जिन्ना मण्डन,
ले    डालो  सन्यास,    बंद   कर  सत्ता  चिन्तन |
-०- 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपन पदक सब बाहक, मुख में बानी रेल ।
    चतुराई राइ भर नहि , दियै चोट ले ठेल ।१२३।

    भावार्थ : -- अपने अपने स्थान पर तो सब डीराईबर हैं .....माने की लोको पाइलट हैं पाइलट .....मुख में वाणी के रेला धारे हैं .....चतुराई तौ रत्ती भर भी नहीं धारे औउर बनना है 'बन्ने खाँ '.....अजी ऐसा ठोकते ऐसा ठोकते हैं की चोट दे जाते हैं ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. माननीया क्षमा करें आशय समझ नहीं पा रहा हूँ किन्तु आपने पढने का कष्ट किया धन्यवाद

      हटाएं
  2. वाह बहुत सुन्दर!
    --
    समीक्षा पोस्ट में कसौटी पर कस कर देखेंगे इन कुण्डलियों को।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है

    जवाब देंहटाएं

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