सदगुणियों के संग
से, मनुआ बने मयंक
ज्यों नीरज का संग
पा, शोभित होते पंक
चंदा चंचल चाँदनी, तारे
गाएँ गीत
पावस की हर बूँद
पर, नर्तन करती प्रीत
शुभ्र नील आकाश
में,
नीरद के दो रंग
श्वेत करें
अठखेलियाँ,
श्याम भिगावे अंग
हिल जाना भू-खंड
का, नहीं महज संजोग
पर्वत भी कितना
सहे,
कटन-छँटन का रोग
नीलम पन्ना
लाजव्रत,
लाते बारम्बार
बिना यत्न सजता
नहीं,
सपनों का संसार
महँगाई के राज में, बढ़े
इस तरह दाम
लँगड़ा हो या मालदा, रहे
नहीं अब आम
-ऋता शेखर "मधु"
ये दोहे ठाले-बैठे ब्लाग में कुछ दिन पहले प्रकाशित हुई है
इसे मैं साधिकार लाकर यहां पोस्ट की हूँ
ऋता बहन को उनके जन्म दिन पर अशेष शुभकामनाएँ
सादर
यशोदा
ये दोहे ठाले-बैठे ब्लाग में कुछ दिन पहले प्रकाशित हुई है
इसे मैं साधिकार लाकर यहां पोस्ट की हूँ
ऋता बहन को उनके जन्म दिन पर अशेष शुभकामनाएँ
सादर
यशोदा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
वाह...बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकाश् ऋता शेखर जी भी इस मंच की सदस्या होतीं।