निर्मल बाबा नाम है ,मन में रखते मैल!
खुद को समझे लोमड़ी ,बाकी सबको बैल !!
बाहर से सुन्दर दिखें, भीतर मैला अंग।
"गिरगिट जैसा बदलते, पल-पल अपना रंग"
बोलबचन भौकाल से,छाप रहे है नोट,
पाखंडी लड्डू चखें , जनता चाटे होठ ।!
संसद हो या सड़क हो,लूट मची चहुँ ओर!
अब तो देश चला रहे , कातिल-डाकू-चोर।!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
खुद को समझे लोमड़ी ,बाकी सबको बैल !!
बाहर से सुन्दर दिखें, भीतर मैला अंग।
"गिरगिट जैसा बदलते, पल-पल अपना रंग"
बोलबचन भौकाल से,छाप रहे है नोट,
पाखंडी लड्डू चखें , जनता चाटे होठ ।!
संसद हो या सड़क हो,लूट मची चहुँ ओर!
अब तो देश चला रहे , कातिल-डाकू-चोर।!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
वाह क्या बात है...
जवाब देंहटाएंअसुर जैसा बदल रहे , भांति भांति से रंग
इस पंक्ति को दोबारा से जाँच लीजिए!
मेरे विचार से...
"गिरगिट जैसा बदलते, पल-पल अपना रंग"
sahi kaha apne adarneey
हटाएंशुभ संध्या
जवाब देंहटाएंराम जी
मैं तो समझ रही थी निर्मल जेल में है
ये तो अभी भी मैदान ए खेल में है
वाह राम भाई! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
आपका आभार आदरणीय -