तेरह-ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
माता जी की कृपा से, करलो इसको सिद्ध।१।
चार चरण-दो पंक्तियाँ, करती गहरी मार।
कह देती संक्षेप में, जीवन का सब सार।२।
सरल-तरल यह छन्द है, बहते इसमें भाव।
दोहे में ही निहित है, नैसर्गिक अनुभाव।३।
तुलसीदास-कबीर ने, दोहे किये पसन्द।
दोहे के आगे सभी, फीके लगते छन्द।४।
दोहा सज्जनवृन्द के, जीवन का आधार।
दोहों में ही रम रहा, सन्तों का संसार।५।
सुन्दर वर्णन-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर-
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार। उपयोगी प्रयास।
जवाब देंहटाएंsunsar prastuti
जवाब देंहटाएं--- सुन्दर प्रसंग ..
जवाब देंहटाएंतेईस दोहा भाव हैं, मात्रा भाव प्रबंध ,
नैसर्गिक अनुभाव युत,सुखमय छंद प्रसंग |
दोहा दोही दोहरा,विदोहा और सपुच्छ,|
दोहकीय चंडालिनी, शुचि सुमनों के गुच्छ |