दोहे "
विषय - "प्रकृति और मानव"
रोज़ सुबकती है धरा ,करती मौन विलाप
मानव दम्भी लालची ,देख रहा चुपचाप !!१
हुई प्यास से अधमरी ,बढ़ती जाती पीर
नदियाँ खुद ही मांगती ,दे दो थोड़ा नीर !!२
प्रकृति हाथ जोड़े खडी ,मानव रहा दहाड़
डर के मारे कांपते,जंगल ,नदी,पहाड़ !!३
अपना ही शिशु जब कभी ,करे मलिन व्यवहार
जाऊं किसके पास मै,किससे करूँ गुहार!!४
सबको खुशियाँ बाटती,करती उचित निदान
अब तो मानव चेत ले ,त्याग तनिक अभिमान !!५
तेरे कुकृत्य का मनुज ,होगा बुरा प्रभाव
आने वाली पीढ़ियाँ,पायेंगी बस घाव !!६
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
विषय - "प्रकृति और मानव"
रोज़ सुबकती है धरा ,करती मौन विलाप
मानव दम्भी लालची ,देख रहा चुपचाप !!१
हुई प्यास से अधमरी ,बढ़ती जाती पीर
नदियाँ खुद ही मांगती ,दे दो थोड़ा नीर !!२
प्रकृति हाथ जोड़े खडी ,मानव रहा दहाड़
डर के मारे कांपते,जंगल ,नदी,पहाड़ !!३
अपना ही शिशु जब कभी ,करे मलिन व्यवहार
जाऊं किसके पास मै,किससे करूँ गुहार!!४
सबको खुशियाँ बाटती,करती उचित निदान
अब तो मानव चेत ले ,त्याग तनिक अभिमान !!५
तेरे कुकृत्य का मनुज ,होगा बुरा प्रभाव
आने वाली पीढ़ियाँ,पायेंगी बस घाव !!६
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
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