कुण्डलिया छंद
[ इस छंद में छ: पंक्तियाँ होती हैं.प्रथम दो पंक्तियाँ (चार चरण) दोहा होती हैं. दोहे में
13-11 मात्रायें, विषम चरण के प्रारम्भ में जगण वर्जित,विषम चरणों के
अंत में लघु गुरु या लघु लघु लघु अनिवार्य.सम चरणों के अंत में गुरु लघु
अनिवार्य.दोहे के दूसरे सम चरण से ही रोले की शुरुवात होती है.रोले में 11-13
मात्राओं के साथ चार पंक्तियाँ
(आठ चरण) होते हैं. कुण्डलिया का प्रथम और अंतिम शब्द एक ही होता है .]
(आठ चरण) होते हैं. कुण्डलिया का प्रथम और अंतिम शब्द एक ही होता है .]
चम-चम चमके
गागरी ,चिल-चिल
चिलके धूप
नीर भरन
की चाह में , झुलसा जाये
रूप
झुलसा जाये
रूप , कहाँ
से लाये पानी
सूखे जल
के स्त्रोत , नजर आती
वीरानी
दोहन –
अपव्यय देख ,
रूठता जाता मौसम
धरती ना
बन जाय , गागरी
रीती चम-चम ||
अरुण कुमार
निगम
अदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री
अपार्टमेंट,विजय
नगर,जबलपुर(मध्यप्रदेश)
उपयोगी जानकारी के साथ बढ़िया कुण्डलिया!
जवाब देंहटाएंआभार आपका!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (21-07-2013) को चन्द्रमा सा रूप मेरा : चर्चामंच - 1313 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'