ख़लीफ़ा घर से बाहर जो, हमें बन कर दिखाता है |
वही चूहा बना घर में, चरण 'उनके' दबाता है |
सुबह की चाय से लेकर, बनाता लंच घर भर का,
धुलाई कर के कपड़ों की, वही छत पर सुखाता है |
वही स्कूल जाने को करे तैयार, बच्चों को,
वो जब अंगड़ाई लेती हैं,तो उनकी चाय लाता है |
चला जाता है शापिंग साथ में, चपरासियों सा ये,
यही पेमेन्ट करता है, यही सब लाद लाता है |
वो नज़रें कर ज़रा टेढी, इसे आवाज देती हैं,
तो अन्दरतक ख़लीफ़ा ये,सिहर कर कांप जाता है |
सुनाऊं क्या ख़लीफ़ा की, ये हैं सब 'राज' की बातें ,
बना रहता गधा घर में,अकड़ बाहर दिखाता है |
अभी तो कुण्डलिया छन्द ही चल रहा है और यह तो कुण्डलिया नहीं हैं।
जवाब देंहटाएं1 अगस्ते से दूसरा छन्द शुरू होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
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चित्र तो अश्लील है कोइ और ढंग का चित्र नहीं मिला...
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