रिश्तों में शामिल हुए, जब से ये इनलाज |
चिंदी-चिंदी हो गया, जकड़ा हुआ समाज |
रिश्तों की कड़वाहटें, देती रहीं दलील |
हम ही रौशन कर रहे, रिश्तों की कंदील |
बिना क्रांति या युद्ध के, रिश्ते हुए तमाम |
देते रहो दलील कुछ, थोपो जो इल्जाम |
रिश्तों में अहसास का, खत्म हुआ हर झोल |
कौड़ी-कौड़ी हो गया, हर रिश्ते का मोल |
श्री स्वार्थ जब से हुए, रिश्तों के सरपंच |
रिश्तों में आने लगे, तिकडम और प्रपंच |
दादी जी आया बनीं, दादा जी सर्वेंट |
इस पीढ़ी की भावना, यही सेंट परसेंट |
बूढों से जब से हुए, बंद वाक्संवाद |
हुई भावना मोंथरी, निष्फल आशीर्वाद |
बिकती अब संवेदना, बंट जाती है याद |
टुकड़े-टुकड़े हो गया, आपस का संवाद |
रिश्तों में अब स्नेह का, फैशन हुआ समाप्त |
हर रिश्ते में स्वार्थ का, कीटाणु है व्याप्त |
रिश्ते जर्जर हो गए, टीस गई हर रीत |
जाने कब से खो गई, वह पहली सी रीत |
मुद्रा से बिकने लगे, जब से सब अहसास |
माँ से प्यारी हो गई, सब को अपनी सास |
कितने बौने हो गए, रिश्तों के उत्कर्ष |
पल-पल बनते टूटते, न विषाद न हर्ष |
रिश्तों की गरमाहटे, कितनी हैं मोहताज |
स्वार्थ सिद्दि की नीव पर, उठती गिरतीं आज |
नई नस्ल को मिल रही, नई संस्कृति आज |
श्रेष्ठजनों का आँख में, बिलकुल नहीं लिहाज |
पापा-मम्मी-सन्तति, पिएं बार में संग |
संस्कृति बौनी हो गई, देख आधुनिक रंग |
पापा-मम्मी-सन्तति, पिएं बार में संग |
जवाब देंहटाएंसंस्कृति बौनी हो गई,देख आधुनिक रंग |
वाह वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब दोहे ,,बधाई ...
RECENT POST: गुजारिश,
रिश्तों में अब स्नेह का, फैशन हुआ समाप्त |
जवाब देंहटाएंहर रिश्ते में स्वार्थ का, कीटाणु है व्याप्त |
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, आपकी लेखनी को बहुत बहुत बधाई , यहाँ भी पधारे
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअनुपम....
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे ,बनावटी रिश्तों खोखले रिश्तों पर सीधे कटाक्ष करते सुन्दर सटीक दोहे हार्दिक बधाई आदरणीय राज सक्सेना जी
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