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सोमवार, 1 जुलाई 2013

"दोहे के बारे में अद्भुत जानकारियाँ" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों...!
     दोहा छन्द के विषय में आज मुझे उपयोगी और जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं। जो सुशील नगर, उरई (जालौन) से प्रवीण कुमार चावला शोध छात्र हिन्दी साहित्य, ने स्पंदन पर शोध आलेख जुलाई-अक्टूबर 08 में प्रकाशित थी। आभार के साथ पूरा आलेख निम्नवत् है-

     दोहा छन्द अर्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। दोहा छन्द ने काव्य साहित्य के प्रत्येक काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्दी काव्य जगत में दोहा छन्द का एक विशेष महत्व है। दोहे के माध्यम से प्राचीन काव्यकारों ने नीतिपरक उद्भावनायें बड़े ही सटीक माध्यम से की हैं। दोहा छन्द के भेद का वर्णन इस प्रकार है-

(1) भ्रमर - 22 गुरु 4 लघु, कुल 26 वर्ण
‘‘सीता सीतानाथ को, गावौ आठौ जाम।
सव्र्वोच्छा पूरी करैं, औ देवैं विश्राम।’’

(2) भ्रामर - 21 गुरु 6 लघु, कुल 27 वर्ण
‘‘माधो मेरे ही बसो, राखो मेरी लाज।
कामी क्रोधी लम्पटी, जानि न छांड़ो काज।’’

(3) सरभ - 20 गुरु 8 लघु, कुल 28 वर्ण
‘‘हर से दानी कहुं नहीं, दीन्हें केते दान।
कैसे को भाषै तिन्हें, बानी एकै जान।’’

(4) श्येन/सेन - 19 गुरु 10 लघु, कुल 29 वर्ण
‘‘चंदन, बेला, मौलिश्री, नाभि न लहे कुरंग।
सोंधी सोंधी गंध जो, लोने लोने अंग।’’

(5) मंडूक - 18 गुरु 12 लघु, कुल 30 वर्ण
‘‘कैसी ऋतु कैसी हवा, बौरे आम बबूल।
कहीं डोलते शूल हैं, कहीं फूलते फूल।’’

(6) मर्कट - 17 गुरु 14 लघु, कुल 31 वर्ण
‘‘तेरे मेरे प्यार का आज मचा है शोर।
हुआ जागरण चतुर्दिक देख नवेली भोर।’’

(7) करभ - 16 गुरु 16 लघु, कुल 32 वर्ण
‘‘तुम आत्मा हर देह की, मन के जाननहार।
भूतात्मा कहता तुम्हें, इसीलिये संसार।’’

(8) नर - 15 गुरु 18 लघु, कुल 33 वर्ण
‘‘डूब रहा जग जलधि में, कैसे पाऊँ कूल।
अर्पित युग पद पाँव में, यह पूजा के फूल।’’

(9) मराल/हंस - 14 गुरु 20 लघु, कुल 34 वर्ण
‘‘तुम उलूक बैठे फिरौ, महिलन त्याग कुटीर।
तेरे हिय उपजै कहा, या गरीब की पीर।’’

(10) मदकल - 13 गुरु 22 लघु, कुल 35 वर्ण
‘‘पालन पोषणहार तुम, लिये सत्व गुण साथ।
अतः भूतभृत्नाम है, तब पुराण विख्यात।’’

(11) पयोधर - 12 गुरु 24 लघु, कुल 36 वर्ण
‘‘तरुणाई पर निज तनिक, मतकर आज गरूर।
धीरे-धीरे उड़ रहा, टिकिया बना कपूर।’’

(12) चल - 11 गुरु 26 लघु, कुल 37 वर्ण
‘‘पवन संचरण मंद है, सोंधी शीतल गंध।
पनघट-पनघट हो रहे, केसरिया अनुबंध।’’

(13) वानर - 10 गुरु 28 लघु, कुल 38 वर्ण
‘‘चरण युगल चिन्ता हरण, सकल विभव सुख मूल।
ध्यान धरे जो हो अभय, मिटें ताप त्रय शूल।’’

(14) त्रिकल - 9 गुरु 30 लघु, कुल 39 वर्ण
‘‘मेंटत विधि के अंक सब, दुख दारित छन माँहि।
सब भरोस तज, गुरु शरण, जो जन निश्छल आँहि।’’

(15) कच्छ - 8 गुरु 32 लघु, कुल 40 वर्ण
‘‘श्री गुरु के पद कंज युग, भव वारिधि जलयान।
सुमिरि सुमिरि नर तरहिं भव होय तुरत कल्यान।’’

(16) मच्छ - 7 गुरु 34 लघु, कुल 41 वर्ण
‘‘दीन वचन शुचि नम्रता निश्छल हृदय विशाल।
कमल पत्र-वत् रहत जग, सद्गुरु भक्त दयाल।’’

(17) शार्दूल - 6 गुरु 36 लघु, कुल 42 वर्ण
‘‘वंदौ पद धरि धरणि शिर, विनय करहुं कर जोरि।
वरणहु रघुवर विशद यश, श्रुति सिघातं निचोरि।’’

(18) अहिवर - 5 गुरु 38 लघु, कुल 43 वर्ण
‘‘कनक मरण तन मृदुल अति, कुसुम सरिस दरसात
लखि हरि दृग रस छकि रहे, सिरसाई सब बात।’’

(19) व्याल - 4 गुरु 40 लघु, कुल 44 वर्ण
‘‘हम सन अधम न जग अहै, तुम सन प्रभु नहिं धीर।
चरन सरभ इहि उर गह्यो, हरहु सु हरि भव पीर।’’

(20) विडाल - 3 गुरु 42 लघु, कुल 45 वर्ण
‘‘विरह सुमिरि सुधि करत नित, हरि तुव चरन निहार।
यह भष जलनिधि तें तुरत, कब प्रभु करिहहु पार।’’

(21) सुनक/श्वान - 2 गुरु 44 लघु, कुल 46 वर्ण
‘‘तषु गुन अहिपति रटत नित, लहि न सकत तुव अंत।
जग जन तुल पद सरन गहि, किमि गुमि लकहिं अनंत।’’

(22) इंदुर/उदर - 1 गुरु 46 लघु, कुल 47 वर्ण
‘‘कलुषहरण भवभयहरण, सदा सुजन सुख अयन।
नमहित हरि सुरपुर तजत, धनि धनि सरसिज नयन।’’

(23) सर्प - सर्व लघु, कुल 48 वर्ण
‘‘अरुण चरण कलिमल हरण, भजतहिं रह कछु भयन।
जिनहिं नषत सुर मुनि सकल, किन भज पयनिधि सयन।’’

सपुच्छ दोहा - यह सपुच्छ दोहा नामक विषम छन्द, 58, 59, 60, 61 मात्राओं का होता है। दोहे के अन्त में 10, 11, 12, 13 मात्रा का एक पुच्छ संलग्नक जोड़ दिया जाता है।
उदाहरण - 10 मात्रा का पुच्छ
‘‘विमल ज्ञान दाता सुगुरु, करूँ तव चरण ध्यान।
हनुमत पच्चीसी लिखूँ, राम मिलन विज्ञान -
रसायन भक्ति का।’’
उदाहरण - 11 मात्रा का पुच्छ
‘‘कुरस खड़ी बोली कथन, सरस हृदय की बात।
तुम ही लिखना राम जी, मेरी कहाँ विसात -
सभी बला थक चुके।’’
उदाहरण - 12 मात्रा का पुच्छ
‘‘जीवन के संघर्ष में जो देता है साथ।
हरीश्याम मायावही जगन्नाथ है हाथ -
सदा जो साथी संग।’’
उदाहरण - 13 मात्रा का पुच्छ
‘‘जीवन के संघर्ष में जो देता है साथ।
हरीश्याम मायावही जगन्नाथ है हाथ -
सदा का साथी संगी।’’

दोही (मात्रिकार्द्धसम) - इस छन्द के चारों चरण मिलाकर 52 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरण (1 व 3) में 15 मात्राओं वाले एवं सम (2 व 4) 11 मात्राओं के होते है। अन्त में दोहे की भाँति लघु (।) वर्ण अनिवार्य है।
‘‘जगत नारि जीवन अति दुखी, है विचित्र संसार।
जन्म मिला जिसके उदर से, उस पर अत्याचार।।’’

दोहा चण्डालिनी - यह दोहे की भाँति लिखा जाता है किन्तु जिस दोहे के प्रथम और तृतीय चरण में से किसी एक जगह जगण (।ऽ।) शब्द आ जाये तो वह दोहा चण्डालिनी होता है।
‘‘अजीत कोई वीर हो, टूट हृदय उदार।
हारा ही वह मान्य है, क्यों कि गया मन हार।’’

दोहकीय (समभागवत) - 13, 13 मात्राओं के चार चरण तथा सम चरणों (2 व 4) के अन्त में गुरु लघु (ऽ।) वर्ण होने का अनिवार्य नियम है।
‘‘कविजन कोविद जन सभी, जो होते दिव्य चरित्र।
केवल उनका सृजन ही है, जग समाज का मित्र।’’

दोहरा मात्रिकार्द्धसम - इसके चारों चरण में 46 या 47 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रथम विषम में तो कभी तृतीय विषम में तो कभी प्रथम व तृतीय दोनों ही विषम चरणों में 12, 12 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं।
‘‘देखा एक सपेरा, पाले अनगिन नाग।
सब को वश में राखे, द्वेषादिक अरु राम।।’’

विदोहा (मात्रिकाद्धसम) - इसके विषम चरणों (1 व 3) में 13, 13 मात्राएँ और सम चरणों (2 व 4) में 10, 10 मात्राएँ, कुल मात्राएँ 46 होती हैं। चरणान्त में लघु वर्ण नहीं होता है किन्तु गुरु वर्ण अनिवार्य होता है,
‘‘राम नाम जिसने लिया, दुख सुख उसे कहाँ।
बस्ती विजन कहीं रहे, सुख सम उसे वहाँ।।’’.....

स्पंदन से साभार...!

6 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी चुनौती है यही, सभी चाहते प्यार-
    रोना कितने भूलते, सोना हुआ हराम ।
    गिरते गिरते गिर गए, जो सोने के दाम ।

    समझे मन के भाव को, रविकर सत्य सटीक ।
    कभी नहीं हैरान हो, ना रिश्तों में हीक ॥

    बड़ी चुनौती है यही, सभी चाहते प्यार ।
    किन्तु जहाँ देना पड़े, झट करते तकरार ॥

    है उदास दासत्व से, सो आवे ना रास |
    है निराश मन सिरफिरा, करता त्रास हताश ||

    चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
    दिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
    *श्मशान

    थाली का बैगन नहीं , बैंगन की ही थाल |
    जो बैंगन सा बन रहा, गली उसी की दाल ||

    हो गलती का लती जो, खायेगा वह लात |
    पछताये कुछ ना मिले, गर समझे ना बात ||

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  2. --- ज्ञानवर्धक पोस्ट.... तरह तरह के दोहे एवं उनके विभिन्न्नांतर भी मौजूद हैं.... अतः ..अधिक शास्त्रीय पक्ष में नहीं उलझाना चाहिए....

    इसका अर्थ यही है, दोहा भाव का छंद |
    भाव अर्थ हो तथ्य सच,लिखें सुखद स्वच्छंद |

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  3. आभार भाई जी को
    आभार पॅवाण भाई को
    दोनों गुरुओं को नमन
    सही में अच्छी पाठशाला है ये
    जो पाठक-पाठिका को कवि बनाती है
    कोई गलती नहीं हुई मुझसे.......सीखूँगी और लिख कर यहीं पोस्ट करूँगी

    सादर

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  4. इतनी उपयोगी जानकारी मिली जो हमें हर कदम पर कम आएगी
    आपको आभार सर
    सादर
    भारती दास

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