सिरजन 'सृजन-मंच' पर, करिये अपना पद्य |
रखिये इतना ध्यान पर, नहीं चलेगा गद्य |
नहीं चलेगा गद्य, विधा बतलाई जाये,
उसी विधा में लिखें, आन लाइन पहुंचाये |
कहे'राजकवि' ध्यान रखें नियमों का प्रियजन,
पूर्ण शक्ति से करें तभी, सम्वर्धन-सिरजन |
निश्चत होगी हर विधा, कविता के अनुरूप |
लिखा जाय हर शब्द जो, हो उसके समरूप |
हो उसके समरूप, काव्य में शहद निचोड़ें,
छंदों का रख ध्यान, संवारें, बंद न तोड़ें |
कहे'राज कवि' मित्र, रखें आगे हर जनहित,
तब पाएंगे आप, सफलता प्रियतम निश्चित |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (20-07-2013) को विचलित व्यथित मन से कैसे खोलूँ द्वार पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदर सहित आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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