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शनिवार, 20 जुलाई 2013

छंद-प्रतियोगिता


 
सिरजन 'सृजन-मंच' पर, करिये अपना पद्य |
रखिये इतना ध्यान पर, नहीं चलेगा गद्य |
नहीं चलेगा गद्य,  विधा  बतलाई   जाये,
उसी विधा में लिखें,  आन लाइन पहुंचाये |
कहे'राजकवि' ध्यान रखें नियमों का प्रियजन, 
पूर्ण शक्ति से करें तभी, सम्वर्धन-सिरजन |

निश्चत होगी हर विधा, कविता के अनुरूप |
लिखा जाय हर शब्द जो, हो उसके समरूप |
हो उसके समरूप, काव्य में शहद   निचोड़ें,
छंदों का रख ध्यान, संवारें, बंद न   तोड़ें |
कहे'राज कवि' मित्र, रखें आगे हर जनहित,
तब पाएंगे आप, सफलता प्रियतम निश्चित |

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (20-07-2013) को विचलित व्यथित मन से कैसे खोलूँ द्वार पर "मयंक का कोना" में भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं

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