बीस बरस में थी बनी ,प्रेम भरी दीवार।
बीस दिवस भी ना लगे ,डाली बीच दरार ॥
नेह नीर से सींच कर ,बोया था विश्वास।
दीमक जड़ तक कब गई ,नहीं हुआ आभास॥
छुपी हुई हर ह्रदय में ,देखो एक किताब |
जिसके पन्नो में छुपा,बिसरा हुआ गुलाब ||
मिला खाद में जो दिया ,प्रेम और मनुहार।
शुष्क वृक्ष ने देख कर ,बदल लिया व्यवहार॥
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उम्दा सृजन लाजबाब दोहे ,,,
जवाब देंहटाएंवाकई में लाजबाब
जवाब देंहटाएंअरे वाह!
जवाब देंहटाएंइतने व्यवहारिक दोहे!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (11-07-2013) को चर्चा - 1303 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दोहों को पसंद करने पर आप सभी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर परिभाषित हुये, प्रेम और विश्वास
जवाब देंहटाएंजीवन - दर्शन कह रहे, चारों दोहे खास ||
सुन्दर दोहे ....क्या बात है ....
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