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बुधवार, 10 जुलाई 2013

प्रेम और मनुहार (दोहे)

बीस बरस में थी बनी ,प्रेम भरी दीवार।  
बीस दिवस भी ना लगे ,डाली बीच दरार  

नेह नीर से सींच कर ,बोया था विश्वास।  
दीमक जड़ तक कब गई ,नहीं हुआ आभास॥ 
  
छुपी हुई हर  ह्रदय  में ,देखो एक किताब |
जिसके पन्नो में छुपा,बिसरा हुआ गुलाब ||  
  
मिला खाद में जो दिया ,प्रेम और मनुहार। 

शुष्क वृक्ष ने देख कर ,बदल लिया व्यवहार॥   
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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (11-07-2013) को चर्चा - 1303 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. दोहों को पसंद करने पर आप सभी का हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर परिभाषित हुये, प्रेम और विश्वास
    जीवन - दर्शन कह रहे, चारों दोहे खास ||

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर दोहे ....क्या बात है ....

    जवाब देंहटाएं

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