जल वे
भरने आ गये , जलवे लेकर
साथ
नल की
साँसें थम गई , खाली गगरी हाथ |
नल नखरे
दिखला रहा , चिढ़ा रहा नलकूप
पल भर में
मुरझा गया , निखरा निखरा रूप |
ताल - तलैया शुष्क थे
, नल की थी
हड़ताल
नयनों का जल छलकता, काजल बहता गाल
|
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पानी पानी
हो गई ,
ऐसी आई लाज
घूंघट पट खोला नहीं , सैंया हैं
नाराज |
देख सकी पनघट नहीं, कैसे
भरती नीर
घूंघट ही
बैरी हुआ , कासे कहती
पीर |
घूंघट पट पलटा गई , ऐसी
चली बयार
निर्निमेष पिय
देखते , सूरत पानीदार |
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ati sundar
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /७ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने भाई अरुण निगम जी।
जवाब देंहटाएंदेख सकी पनघट नहीं, कैसे भरती नीर
जवाब देंहटाएंघूंघट ही बैरी हुआ, कासे कहती पीर |
सुंदर दोहे हैं ..बधाई आपको !
बहुत सुंदर दोहे है, बधाई आपको
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
जवाब देंहटाएं'पानी पानी' हो गई, लिख कर किया कमाल |
'जल' कर'जल' को मांगते, रसिक बिहारी लाल |....... क्या खूब लिखा है मान्यवर
वाह वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब दोहे,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: गुजारिश,
टीला टीली घोड़ चढ़, लिए सत फेरी फेर ।
जवाब देंहटाएंढाई घर ढिलाई के , ढाई मैं भए ढेर । ५ ६ ।
भावार्थ : -- टीला और टीली ने घोड़ चढ़ी कर सात फेरे ले लिए । ढाई घर चलने के पश्चात गत बंधन शिथिल पढ़ गया शेष ढाई घर में तो ढेर ही गए ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (10-07-2013) को निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....बुधवारीय चर्चा-१३०२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Badhayi
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