राष्ट्र-पिताजी आप स्वर्ग में,परियों के संग खेल रहे हैं |
इधर आपके , चेले-चांटे ,अरब-खरब में खेल रहे हैं |
बचे-खुचे अनुगामी जितने,जीवन अपना ठेल रहे हैं |
फटी लंगोटी तन पर लेकर,मंहगाई को झेल रहे हैं |
भारत से सम्बन्धित बापू,गणित तुम्हारा सही नहीं था |
कुछ दिन रहता सैन्यतंत्र में,प्रजातंत्र के योग्य नहीं था |
नियमों में पलने की आदत,खाद बना कर डाली जाती |
फिर नेता की फसल उगाकर,प्रजातंत्र में डाली जाती |
आज सभी को है आजादी,लुटती-फिरती जनता सारी |
मक्खन खाते नेता अफसर,छाछ न पाती किस्मत मारी |
मंहगाई से त्रस्त सभी हैं,गायब माल नहीं दिखता है |
दाल मिल रही सौ की केजी,आटा तीस रूपये मिलता है |
आलू तीस रूपये तक चढकर,अब नीचे कुछ आ पाया है |
प्याज बिक रही इतनी मंहगी,तड़का तक ना लग पाया है |
बड़ी कम्पनी माल घटा कर,कीमत पूरी ले लेती है |
अधिकारी धृतराष्ट्र बनाए-,कुछ जूठन उनको देती है |
कर्ज उठाते, नोट छापते,धन जब जेबों में आता है |
पैसा ज्यादा,माल अगर कम,मूल्य एकदम बढ जाता है |
अर्थ-शास्त्री पी.एम. अपने,इतना फण्डा समझ न पाते |
भारत ला कर,एफ.डी.आई,वे विकास का चित्र दिखाते |
धीरे-धीरे देश सिमट कर-,उन के बन्धन में आया है |
भारत मां को बंधक रखकर,नेता शर्म नहीं खाया है |
बेच रहे हैं देश कुतर कर,अपनी सत्ता कायम रखने |
धर्म जाति में नफरत डालें,मन में दूरी कायम करने |
बापू इस स्वतंत्र दिवस पर,तुम लाठी ले वापस आओ |
ठोक पीट कर नेता अफसर,प्रजातंत्र पटरी पर लाओ |
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (30-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/2013/07/1322.html“ मँ” चर्चा मंच <a href=" पर भी है!
सादर...!
चडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ...सुन्दर रचना ....पर यार सब कुछ बापू के ऊपर थोप कर अपने पाप छुपाना क्यों...
जवाब देंहटाएंराष्ट्र-पिताजी आप स्वर्ग में,परियों के संग खेल रहे हैं |
जवाब देंहटाएंइधर आपके , चेले-चांटे ,अरब-खरब में खेल रहे हैं |
सच है स्थिति बेहद ख़राब है ...
सार्थक रचना !