मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
वाह रविकर जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये हैं आपने!
आभार!
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे आदरणीय रविकर भाई जी बधाई आपको
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (02-07-2013) को "कैसे साथ चलोगे मेरे?" मंगलवारीय चर्चा---1294 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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