नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरिया आकाश की ..
इस कदर भटकें हैं युबा आज के इस दौर में
खोजने से मिलती नहीं अब गोलियाँ सल्फास की
आज हम महफूज है ,क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की
बँट गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गड्डियाँ हो तास की
हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है आरजू बनवास की
मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की
मदन मोहन सक्सेना
बहुत बढ़िया आदरणीय मदन जी-
जवाब देंहटाएंकल से हरिगीतिका छन्द शुरू हो रहा है।
जवाब देंहटाएंकृपया हरिगीतिका छन्द की रचनाएँ ही पोस्ट करें!