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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

अमलतास के फूल (उपन्यास) - सुधीर मौर्य

प्रस्तुत उपन्यास ’अमलतास के फूल’ मेरा दूसरा उपन्यास है एवम् सब विधाओं में मिला कर सातवीं कृति । वस्तुतः पठन-पाठन और लेखन में खुद को बचपन से सम्बद्ध पाता हूँ । प्रस्तुत उपन्यास को भी मैंने कोई सन् 2003 में लिखना आरम्भ किया था, कोई सत्रह पृष्ठ लिखने के बाद कुछ मानसिक आघातों के कारण से इस को जो सन्दूक में डाला तो फिर मे वापिस 2012 में निकाला और अब ये सम्पूर्ण हो कर आप सब के सामने आने को है ।

नौ साल का अन्तराल बहुत होता है । सो जाहिर सी बात है मेरे उस वक्त के सोचे कथानक से इस का कथानक थोडा सा भिन्न हो गया है । पर मूल वही बना रहे, इस का ध्यान मैंने रखा है ।

सन् 2003 से सन् 2004 का मेरा जीवन काल, तमाम मानसिक पीडाओं से गुजरा, जिस का विस्तार में जिक मैं कभी फिर करूँगा । हां, इतना अवश्य है कि इन कारणों की वजह से पूरे पाँच साल मेरा लेखन कार्य प्रभावित रहा है । खैर, वह सब अब अतीत है । अब मैं वर्तमान में खुश रहना चाहता हूँ ।

उपन्यास कैसा बन पडा, इस सब के बारे में राय तो आप लोग ही देंगे, जिस का मैं बेसब्री से इन्तजार करूँगा ।  
(for the plz contact 09699787634 / sudheermaurya1979@rediffmail.com)

" कदम ही बहक गए"ग़ज़ल-गुरूसहाय भटनागर बदनाम (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

खाया फरेब-ए-हुस्न तो खाते चले गए
नाकामियों का जश्न मनाते चले गए

हम इतनी पी गए कि कदम ही बहक गए
बहके कदम को यूँ ही सँभाले चले गए

साक़ी तेरी नज़र ने ये क्या कर दिया कि हम
दिल में हसीन ख़्वाब सजाते चले गए

तेरी नवाजि़शों का नशा मय से कम नहीं
रहमत तिरी करम तेरा पाते चले गए

हम आज तक साक़ी के गुनहगार रहे हैं
‘बदनाम’ थे बेख़ुद ये बताते चले गए
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

आमंत्रण--अखिल भारतीय अगीत परिषद् का साहित्यकार दिवस एवं साहित्यकार सम्मलेन ..डा श्याम गुप्त..

                                                                 
                      अखिल भारतीय अगीत परिषद् का साहित्यकार दिवस एवं साहित्यकार सम्मलेन ..०१-३-२०१४  रविवार सायंकाल ५ बजे  स्थानीय गांधी भवन संग्रहालय , लखनऊ  के सभागार में आयोजित किया जा रहा है ...आप सभी आमंत्रित हैं......


मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

"ग़ज़ल-अच्छा नहीं लगता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')

खुशी में दीप जलवाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता।
गले लोगों को मिलवाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता।। 

समाहित कर लिए कुछ गुण, जिन्होंने उल्लुओं के हैं, 
गगन पर सूर्य का आना, उन्हें अच्छा नहीं लगता। 

जिन्हें है ताड़ का, काटों भरा ही रूप हो भाया,
उन्हें बरगद सा बन जाना, कभी अच्छा नहीं लगता। 

बिखेरा है करीने से, सभी माला के मनकों को, 
पिरोना एकता के सूत्र में, अच्छा नहीं लगता। 

जिन्हें रांगे की चकमक ने लुभाया जिन्दगीभर है,  
दमकता सा खरा कुन्दन, उन्हें अच्छा नही लगता। 

प्रशंसा खुद की करना और चमचों से घिरा रहना, 
प्रभू की वन्दना गाना, उन्हें अच्छा नही लगता। 

सुनाते ग़जल औरों की, वो सीना तान महफिल में,
हमारा गुनगुनाना भी,उन्हें अच्छा नहीं लगता।

हुए सब पात हैं पीले, लगा है "रूप भी ढलने,
दिल-ए-नादां को समझाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता।


शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

"ग़ज़ल-वस्ल की शाम-गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

महकी-महकी सी है वादियों की सबा
शौक़ से आ के इसका मज़ा लीजिए

बन गई मैं ग़ज़ल आपके सामने
चाहे जैसे मुझे गुनगुना लीजिए 

मय को पीकर अगर दिल मचलने लगे
अपना दिलबर हमें फिर बना लीजिए

ये बहारों का रँग, हुस्न की तिश्नगी
प्यास नज़रों की अपनी बुझा लीजिए

मैं बियाबां में हूँ ख़ुशनुमा इक कली
मुझको जैसे जहाँ हो सजा लीजिए

कल तलक़ आरज़ूएँ तो ‘बदनाम’ थीं
वस्ल की शाम है दिल लुटा लीजिए
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

"ग़ज़ल-गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

दर्दे-मोहब्बत

मोहब्बत दर्द बन जाएगी ये सोचा न था हमने
भरी काँटों की राहों में बनाया आशियाँ हमने

वह मंजि़ल तक हमें लाकर अकेला छोड़ जाएँगे
बनाया अपने दिल का फिर उन्हें क्यों राज़दाँ हमने

भुलाने से न भूले हम जो कसमें उसने खाई थीं
सनमखानों में भी अक्सर उन्हें ढूँढ़ा किया हमने

अँधेरों में मेरी वो रोशनी बनकर के आए थे
ग़मों की आँधियों में भी सजाया आशियाँ हमने

हवाएँ रुख़ बदल देतीं तो शाखें बच गई होतीं
उन्हीं शाख़ों की ज़द में क्यों बनाया आशियाँ हमने

हमें ‘बदनाम’ होने का ज़रा भी ग़म नहीं है अब
चलो यह हक मोहब्बत का अदा तो कर दिया हमने
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

"चलो होली खेलेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')

मित्रों!
मेरी मजबूरी यह है कि शब्द जोड़ तो लेता हूँ 
मगर गाना नहीं जानता हूँ।
Bambuser पर आज पहली बार गाने का प्रयास किया है! 
आशा है कि आपको यह होली का गीत पसंद आयेगा।
आई बसन्त-बहारचलो होली खेलेंगे!! 
रंगों का है त्यौहारचलो होली खेलेंगे!! 

बागों में कुहु-कुहु बोले कोयलिया, 

धरती ने धारी हैधानी चुनरिया, 
पहने हैं फुलवा के हार, 
चलो होली खेलेंगे!! 

हाथों में खन-खनखनके हैं चुड़ियाँ. 

पावों में छम-छमछनके पैजनियाँ, 
चहके हैं सोलह सिंगार, 
चलो होली खेलेंगे!! 

कल-कल बहती हैनदिया की धारा. 

सजनी को साजन लगता है प्यारा, 
मुखड़े पे आया  निखार, 
चलो होली खेलेंगे!! 

उड़त अबीर-गुलाल भुवन में 

सिन्दूरी-सपने पलते सुमन में, 
महके है मन में फुहार!  
चलो होली खेलेंगे!! 

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

जी न्यूज़ चेनल का भूत भगाओ कार्यक्रम का दावा खोखला निकला ....डा श्याम गुप्त

                             


                जी न्यूज़ चेनल का भूत भगाओ कार्यक्रम का दावा खोखला निकला
 
           अभी हाल में ही जी न्यूज़ चेनल वालों ने बड़े जोर शोर से राजस्थान के एक गाँव को २०० सालों से भुतहा ( हान्टेड ) तथा वीरान जहां दूर दूर तक कोइ नहीं रहता ...घोषित करके ...उसे अपनी टीम भेजकर भूतों से मुक्ति दिलाने का बड़े जोर शोर से दावा किया एवं कुछ तथाकथित दिग्गज वैज्ञानिक, आचार्य, दार्शनिक आदि को बुला कर बाकायदा अपने चेनल पर जीवंत प्रसारण एवं बहस का आयोजन भी किया |
           मीडिया की टीम एवं न्यूज़-रूम में उपस्थित मीडिया–संचालक महोदय बड़े जोर शोर से कैमरे व विविध मापक यंत्र आदि लगा कर तीखी बहस एवं लाइव प्रसारण द्वारा ‘कोइ भूत नहीं है’ आदि द्वारा सदा की भाँति विशेषज्ञों आदि की बातें भी न सुनकर-मानकर अपना गुणगान कर रहे थे कि हमने गाँव को भूत रहित सिद्ध कर दिया |
           तभी स्थानीय जनता ने आकर उन्हें घेर लिया ..भारी विरोध के मध्य स्थानीय लोग पूछने लगे कि आपको किसने बताया कि यह गाँव २०० वर्षों से हान्टेड है तथा वीरान है .....हम सब तो यहाँ रहते हैं, तमाम घर हैं रात में भी आते-जाते हैं, हम बाहर गए लोग भी यहाँ अपने पुरखों की भूमि पर आते जाते हैं| आप व्यर्थ ही गाँव को बदनाम कर रहे हैं| जनता का साफ़-साफ़ यह कथन था कि पहले मीडिया चेनल वाले ही किसी स्थान को भूतिया घोषित करते हैं फिर उसे भूत मुक्त करने के नाम पर नाटक करते हैं अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनाने हेतु | गाँव में गयी टीम के सदस्य, स्टूडियो में स्थित संचालक महोदय एवं टीम व तथाकथित वैज्ञानिकों के मुंह से बोल ही नहीं फूट पा रहे थे | बस टीम के पीटे जाने में ही कसर रह गयी |
           टीम के साथ उपस्थित –इनर्जी-ध्वनि आदि के रिकार्डक यंत्रों आदि के विशेषज्ञ सज्जन स्वयं मीडिया वालों के विरोध में होगये कि मैं जो कहना दिखाना चाह रहा हूँ वह नहीं दिखाया जा रहा है| उनका कहना था कि हर बार इसे हर स्थान पर जहां कहीं भी हम गए या अन्य पिक्चर आदि की शूटिंग वाले गए ... सदा ही हमारे कैमरे, यंत्र आदि बिना किसी कारण के खराब होजाते हैं अतः किसी प्रकार की विशेष इनर्जी यहाँ मौजूद रहती है |
            तथाकथित आधुनिक वैज्ञानिक जो डीगें मार रहे थे एवं वही घिसे-पिटे वाक्य कि भूत, प्रेत,  आत्मा, पुनर्जन्म आदि को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करने वाले के लिए योरोप के बड़े वैज्ञानिक ने लाखों डालर का इनाम रखा है के उत्तर में ..एक विद्वान् आचार्य जी के इस कथन का उत्तर नहीं दे पाए कि यदि वे या कोई भी इस पुष्प की सुगंध का चित्र खींच कर दिखाए तो वे उन लाखों डालर में ११ रुपये जोड़ कर देने को तैयार हैं|
             वस्तुतः आजकल जो भी अखबार या मीडिया में आजाता है वह अपने को अत्यधिक विद्वान् समझने लगता है एवं जो कोई भी चार अंग्रेज़ी के अक्षर एवं विदेशों से नक़ल की हुई विज्ञान की कुछ बातें-किताबें पढ़ लेता है वही स्वयं को भ्रम वश आधुनिक समझकर विज्ञान-विज्ञान चिल्लाने लगता है और बिना गहन अध्ययन व पुरा शास्त्रीय ज्ञान व दर्शन के तत्वों को जाने, पुरा ज्ञान व तथ्यों विशेषकर भारतीय प्राचीन तथ्यों, ज्ञान, विश्वासों का खंडन करने लगता है एवं नए-नए भ्रम व वैज्ञानिक अंधविश्वासों की उत्पत्ति में सहायक होता है |
          आजकल अंतर्जाल पर ब्लॉग आदि सोशल साइट्स पर... जो वास्तव में व्यक्ति के स्वयं के स्वतंत्र साहित्यिक विचारों, अनुभूतियों, रचनाओं, कृतियों आदि की अभिव्यक्ति तथा स्वयं-प्रस्तुतीकरण का एक माध्यम है न कि समाचारों, आलेखों, विविध जानकारियों के पुनर्लेखन, पुनर्प्रसारण का ...ऐसे न जाने कितने ‘विज्ञान के ब्लॉग’ ‘अंधविश्वास खंडन’ के ब्लॉग, अंग्रेज़ी पुस्तकों, आलेखों, गहन वैज्ञानिक तथ्यों से नक़ल करके बेमतलब समाचारों की भांति लिखे जारहे वैज्ञानिक तथ्यों पर आलेखों, अंग्रेज़ी व योरोपीय ज्ञान व विचारों पर आधारित, शब्दों के श्रोतों, सफ़र आदि पर आलेख  एवं तत्पश्चात उन्ही पर प्रकाशित पुस्तकें आदि कुकुरमुत्ते की भाँति उग आये हैं, जिन्हें तथ्यात्मक त्रुटियों एवं सत्य तथ्यों की ओर ध्यान दिलाने से परहेज़ रहता है | 
 

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

कविता


अतुकांत


बागों बहारों और खलिहानों मे
बांसो बीच झुरमुटों मे
मधुवन और आम्र कुंजों मे
चहचहाते फुदकते पंछी
गाते गीत प्रणय के
श्यामल भौंरे और तितलियाँ
फुली सरसों , कुमुद सरोवर
नाना भांति फूल फूलते
प्रकृति की गोद ऐसी
फलती फूलती वसुंधरा वैसी
क्या कहूँ किन्तु कुम्हलाया
है मन का सरोवर मेरा
भावों के दीप झिलमिलाये ऐसे
रागिनी मे  कुछ जुगुनू  जैसे
नेह का राग सुनाता
जीवन को निःस्वार वारता
 एक पतंगा हो जैसे
प्रकंपित अधर है शुष्क
ज्यों पात विहीन वृक्ष । 

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

मनुष्य के शत्रु ...डा श्याम गुप्त ....

                                          मनुष्य के शत्रु

                            
                  यजुर्वेद, ईशोपनिषद एवं गीता में ईश्वर प्राप्ति के मूलतः तीन उपाय बताये गए हैं | जो तत्काल प्रभावी, सरल एवं कठिन मार्ग क्रमशः ...भक्ति योग, कर्म योग एवं ज्ञान योग हैं...| इनका पालक व्यक्ति स्थिरप्रज्ञ व संतुष्ट रहता है, स्वयं में स्थिर, आत्मलय, ईश्वरोन्मुख | ईशोपनिषद् का प्रथम मन्त्र इन तीनों का वर्णन करता हैं....


ईशावास्यं इदम सर्वं, यद्किंचित जगत्यां जगत ....भक्तियोग का ...विश्वास व आस्था का मार्ग है ...सब कुछ ईश्वर का, मेरा कुछ नहीं, सब समाज का है|

तेन त्यक्तेन भुन्जीता ....कर्मयोग का मार्ग....कर्म आवश्यक है परन्तु निस्वार्थ कर्म, परमार्थ एवं त्याग के भाव से कर्म व भोग |

मा गृध कस्यविद्धनम... ज्ञान का मार्ग ...विवेक का मार्ग.. अकाम्यता .. किसी के भी धन व स्वत्व की इच्छा व हनन नहीं करना चाहिए,... वित्तेषणा, पुत्रेषणा, लोकेषणा..समस्त इच्छाओं का त्याग ...यह धन किसका हुआ है इसका ज्ञान |

तो इस में अवरोध क्या है ? उपरोक्त पर न चलने से एवं न चलने देने हेतु रजोगुण रूपी तीन भाव मन में उत्पन्न होकर विचरण करते हैं जो शत्रु रूप में मनुष्य को भटकाते हैं....काम, क्रोध व लोभ |

वस्तुतः मूल शत्रु काम ही है अर्थात कामनाएँ, इच्छाएं .. वित्तेषणा, पुत्रेषणा, लोकेषणा ....शेष उसके प्रभावी
रूप हैं | काम अर्थात कामना, प्राप्ति की इच्छा से प्राप्ति का लोभ..विघ्न से क्रोध, क्रोध से सम्मोह, मोह, मूढ़
भाव से स्मृतिभ्रम एवं मानवता नाश | काम नित्य बैरी कहा गया है यह दुर्जय है एवं इन्द्रियाँ मन व बुद्धि में
स्थित यह ज्ञान को आच्छादित कर देता है | इन्द्रियों से परे मन बुद्धि व आत्मा में स्थित होना चाहिए ...अतः ..

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्यार्थ मनोगतान |
                                                 अत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितिप्रज्ञस्तदोच्ये |...
जो सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है वह स्थितिप्रज्ञ है |

निराशीर्यत चित्तात्मा त्यक्त सर्वपरिग्रह|
                   शारीरं केवलं कर्म कुर्वप्राप्नोतिकिल्विषम |.....गी 4/21 

.....जो बिना इच्छा अपने आप प्राप्त कर्मों पदार्थों से संतुष्ट है उसके समस्त किल्विष समाप्त होजाते हैं|...एवं


                                           यःशास्त्र विधि मुत्सृज्य वर्तते कामकारतः |                                                                                              न स  सिद्धिवाप्नोति न सुखं न परा गतिम् |...गीता १६/२३ 
.....जो शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना इच्छा से आचरण करते हैं वह न सुख पाता है न सिद्धि न परमगति |
काम क्रोध लोभ ...तीनों को शत्रु नहीं अपितु नरक का द्वार कहा गया है ..इन्हें त्याग देना चाहिए ..

त्रिविधं नरकस्येदम द्वारं नाश्मनात्मन : |
                                                  कामः क्रोधस्तधा लोभस्तस्मादेत्रयं त्यजेत|....गीता १६/२१ ....तथा .....

दु;खे स्वनुदिग्नमन: सुखेषु विगतस्पृह |
                वीत राग भय क्रोधो,स्थितिर्मुनिरुच्यते |...गीता २/५६

.....सुख –दुःख में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता जिसके राग, भय ( जो इच्छित प्राप्ति होगी या नहीं का हृदयस्थ भाव होता है ), क्रोध समाप्त होगये हैं उसे मुनिगण स्थितप्रज्ञ कहते हैं | इसप्रकार.....अंत में ...

विहाय कामाय सर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह: |
                     निर्ममो निरहंकारो स शान्तिमधिगच्छति ||...गीता १६/७१

जो सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग कर देता है, ममता रहित, अहंकार रहित और स्पृहा रहित होजाता है वही शान्ति प्राप्त करता है | वही स्थितप्रज्ञ है, आत्मलय है, ईश्वरन्लय है, मुक्त है |

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

"तलाश करता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

ग़ज़ल
 चराग़ लेके मुकद्दर तलाश करता हूँ
मैं आदमी में सिकन्दर तलाश करता हूँ

मिला नही कोई गम्भीर-धीर सा आक़ा
मैं सियासत में समन्दर तलाश करता हूँ

लगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के
विदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ

सजे हुए हैं महल मख़मली गलीचों से
रईसजादों में रहबर तलाश करता हूँ

मिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
अन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ

पहन लिए है सभी ने लक़ब (उपनाम) के दस्ताने
इन्हीं में "रूप" सुखनवर तलाश करता हूँ

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

श्याम स्मृति....जीवन व एश्वर्य....डा श्याम गुप्त ..



               श्याम स्मृति-जीवन एश्वर्य...

                         आज हमारी युवा पीढी, जो भौतिकवादी पाश्चात्य विदेशी नैतिकता से  प्रभावित है एवं  जो  'हर काम समय पर ही होता है' तथा 'जल्द काम शैतान का' ..जैसी  कहावतों आदि से इत्तेफाक नहीं रखती और  भौतिक सुख-विलास ऐश्वर्यमय जीवन को ही प्रगति जीवन-उत्कर्ष  समझती है..... अति भौतिकता की दौड़ में, अधिकाधिक कमाने शीघ्रातिशीघ्र अमीर बनने की ललक में  दिन-रात काम  में जुटे रहती है |  
         सुबह -सुबह जल्दी-जल्दी निकल जाना, रात को देर से घर लौटना, घर पर भी मोबाइल पर दफ्तर-कार्य की बातें... खाने का समय नाश्ते का....   संतान के साथ  समय बिताने की फुर्सत |
                 यदि पशु -पक्षी के तरह सुबह-सुबह  निकल जाना और देर शाम को अपने अपने कोटरों में लौट आना ही जीवन है तो सारे ऐश्वर्य का क्या

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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...