मनहरण घनाक्षरी घनाक्षरियों में मनहरण घनाक्षरी सबसे अधिक लोकप्रिय है । इस लोकप्रियता का प्रभाव यहाँ तक है कि बहुत से कवि मित्र भी मनहरण को ही घनाक्षरी का पर्याय समझ बैठते हैं । इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 7 वर्ण होते हैं प्रत्येक पद का अंत गुरू से होना अनिवार्य है किन्तु अंत में लघु-गुरू का प्रचलन अधिक है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है । शेष वर्णो के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है। इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान आवश्यक है इसमें चार चरण और प्रत्येक चरण में 16, 15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं | छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर ‘यति’ रहना आवश्यक है यदि सम्भव हो तो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करें तो पाठ मधुर होता है। यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो , दो विषम एक साथ हो रही बात इस विधा में तुकान्त की। पहले 8 अक्षर का चरण और दूसरे 8 अक्षर के चरण का तुकांत मिलाना आवश्यक है। तीसरे 8 अक्षर के चरण का भी यदि तुकांत, मिल जाए तो सोने पर सुहागा। अलग भी रख सकते है इसी प्रकार 7 अक्षरों वाले चरणों के तुकान्त मिलाना आवश्यक है। देखिए मेरी भी मनहरण
घनाक्षरी- ग्रीष्म-काल चल रहा, बादल हाथ मल रहा ऐसे में लोगों को, शीतल जल पिलाइए पानी का भण्डार सीमित, जल को करो सुरक्षित, नीर को न व्यर्थ आप नाली में बहाइए मानवता के रक्षक बनो, जहरीले न तक्षक बनो सरल स्वभाव सदा मानस का बनाइए गीता वेद शास्त्र पढ़ो, राह पर आगे बढ़ो दया-धर्म जीवों के प्रति अपनाइए -- |
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सोमवार, 13 जून 2022
"मनहरण घनाक्षरी छन्द विधान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सोमवार, 24 अगस्त 2020
Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood
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Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood |
Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood
क्या गजब है देशप्रेम,
क्या स्वर्णिम इतिहास हमारा है|
अजब-गजब कि मिलती मिसालें,
क्या अद्भुत भाईचारा है||
जब भी दुश्मन आता सरहद पर,
हमें देशप्रेम बुलाता है|
माँ भारती कि आन-बान को,
हर भारतवासी मर-मिट जाता है||
जब सैनिक भारत माँ कि रक्षा को,
सीने पर गोली खाता है|
हर भारतवासी के सीने को,
वो लहूलुहान कर जाता है||
जब जब आई है विपदा हम पर,
हम कंधे से कंधा मिलाते है|
हम भारत माँ और उन वीर सपूतो के,
वंदन को शीश झुकाते है||
वीर सपूतो के बलिदानों पर,
हर भारत वासी हारा है|
हम माँ भारती कि संताने है,
और हिंदुस्तान हमारा है||
क्या अद्भुत भाईचारा है||
ऋषभ शुक्ला
Hindi Kavita Manch / हिंदी कविता मंच
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रविवार, 2 अगस्त 2020
अगस्त पाँच को दीवाली मनने वाली (विनीता अग्निहोत्री)
विनीता अग्निहोत्री की कविता
अगस्त पाँच को दीवाली है मनने वाली
फिर से भूमि अयोध्या की है सजने वाली
खूब बजेंगे शंख-ढोल, मंजीरे-थाली
चातक मोर-पपीहा धुन गायेंगे मतवाली
झूम उठेगी फिर सरयू के तट हरियाली
अब शुभ वेला की तारीख न जाये टाली
गाओ नाचों और बजाओ दिल से ताली
दीप जलेंगे खुशियों के तो हो जायेगी दीवाली
साधू-सन्त मिटा देंगे अब रजनी काली
बोलो जय श्रीराम पियो मधु रस की प्याली
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- विनीता अग्निहोत्री
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास) - सुधीर मौर्य
हम्मीर हठ Hammir Hath
शीघ्र प्रकाश्य ऐतहासिक उपन्यास #हम्मीर_हठ से
‘मरहठ्ठी बेगम तुम क्या खुशनसीबी और वक़्त की फेर की बात कर रही हो जबकि सच तो ये है कि आज सारी ज़मीन पर कहीं भी कोई भी तलवारे अलाई का मुकाबला करने की हिम्मत और हिक़ामत नहीं कर सकता।’
कह कर सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी हंस पड़ा। दम्भी और वहशी हंसी। देवी छिताई कुछ क्षण उसकी वाहिशयानी हंसी देखती रही और पैतरा बदल के वही ज़मीन पर दोनों घुटने मोड़ के उन पर अपने स्थूल नितम्बो के सहारे बैठते हुए किसी बिफरी हुई शेरनी की भांति दहाड़ते हुए बोली ‘हाँ सुलतान ये तुम्हारी और तुम्हारी तलवारे अलाई दोनों की खुशकिस्मती है और वक़्त का फेर है कि तुम्हारा सामना चन्द्रगुप्त मौर्य से नहीं हुआ। जब उनके सामने वास्तविक सिकंदर न टिक सका तो खुद को सिकंदर सानी नाम से तसल्ली देने वाले तुम कैसे टिक पाते।’
‘अच्छा हुआ सुल्ताने हिन्द तुम्हारा सामना समय की चाल के सौभाग्य से ‘समुद्रगुप्त और १६ वर्ष की आयु में हुणों को खदेड़ने वाले स्कंदगुप्त से नहीं हुआ। सच तुम्हारी किस्मत बाबुलंद है जो विक्रमादित्य, हर्षवर्धन और पुलिकेशन दवतीय से तुम्हारा सामना नहीं हुआ नहीं तो तुम्हारी तलवारे अलाई को चूर्ण में परिवर्तित कर दिया गया होता। तुम्हारी किस्मत का सच में रोशन हे मेरे पतिदेव जो तुम्हारे सामने बाप्पा रावल और नागभट्ट नहीं आये नहीं तो….।’
–सुधीर मौर्य
कह कर सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी हंस पड़ा। दम्भी और वहशी हंसी। देवी छिताई कुछ क्षण उसकी वाहिशयानी हंसी देखती रही और पैतरा बदल के वही ज़मीन पर दोनों घुटने मोड़ के उन पर अपने स्थूल नितम्बो के सहारे बैठते हुए किसी बिफरी हुई शेरनी की भांति दहाड़ते हुए बोली ‘हाँ सुलतान ये तुम्हारी और तुम्हारी तलवारे अलाई दोनों की खुशकिस्मती है और वक़्त का फेर है कि तुम्हारा सामना चन्द्रगुप्त मौर्य से नहीं हुआ। जब उनके सामने वास्तविक सिकंदर न टिक सका तो खुद को सिकंदर सानी नाम से तसल्ली देने वाले तुम कैसे टिक पाते।’
‘अच्छा हुआ सुल्ताने हिन्द तुम्हारा सामना समय की चाल के सौभाग्य से ‘समुद्रगुप्त और १६ वर्ष की आयु में हुणों को खदेड़ने वाले स्कंदगुप्त से नहीं हुआ। सच तुम्हारी किस्मत बाबुलंद है जो विक्रमादित्य, हर्षवर्धन और पुलिकेशन दवतीय से तुम्हारा सामना नहीं हुआ नहीं तो तुम्हारी तलवारे अलाई को चूर्ण में परिवर्तित कर दिया गया होता। तुम्हारी किस्मत का सच में रोशन हे मेरे पतिदेव जो तुम्हारे सामने बाप्पा रावल और नागभट्ट नहीं आये नहीं तो….।’
–सुधीर मौर्य
रविवार, 16 फ़रवरी 2020
निमंत्रण पत्र ...लोकार्पण समारोह----- अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश' -----डा श्याम गुप्त
निमंत्रण पत्र ...लोकार्पण समारोह----- अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश' -----डा श्याम गुप्त
लोकार्पण समारोह----- अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश' -----डा श्याम गुप्त
अखिल भारतीय अगीत परिषद् एवं नव सृजन सांस्कृतिक संस्था लखनऊ द्वारा प्रकाशित डा श्याम गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश' एवं डा श्याम गुप्त की तीन कृतियों --तुम तुम और तुम --प्रेम व श्रृंगार गीत संग्रह ...पीर ज़माने की ---ग़ज़ल संग्रह एवं ईशोपनिषद का काव्य भावानुवाद ,....का
---------लोकार्पण समारोह दिनांक २२ फरवरी २०२० शनिवार को यू पी प्रेस क्लब हज़रत गंज लखनऊ में सायं ४ बजे | सभी आमंत्रित हैं......
बुधवार, 20 नवंबर 2019
Mujhe Yaad aaoge - Hindi Kavita Manch
मुझे याद आओगे
कभी तो भूल पाऊँगा तुमको,
मुश्क़िल तो है|
लेकिन,
मंज़िल अब वहीं है||
पहले तुम्हारी एक झलक को,
कायल रहता था|
लेकिन अगर तुम अब मिले,
तों भूलना मुश्किल होगा||
सोमवार, 8 जुलाई 2019
गीत
गीत लिखूँ प्रीत में मनमीत के लिखूँ
भावना में बज रहे संगीत के लिखूँ।।
मन्त्रमुग्ध ही रहा हूँ मोहपाश में
दृष्टिपथ निहार रहीं पलकें साथ में
गर्मीयों की बात करूँ शीत के लिखूँ
भावना में बज रहे संगीत के लिखूँ।।
विभीषिका कठिन वसी हृदय के ओक में
श्वासें भी साथ छोड़ती हैं शोक - शोक में
वर्तमान की लिखूँ व्यतीत के लिखूँ
भावना में बज रहे संगीत के लिखूँ।।
संयोग सुमन सौरभित सुवास जो दिये
सोंधी सुगंध सच में वरसात की लिये
जो भाव बाँध लेते उस रीत के लिखूँ
भावना में बज रहे संगीत के लिखूँ।।
आभाव में स्वभाव से ही भाव ही किया
अलकों की सघन छाँव में नित आसरा दिया
हार की लिखूँ या अपने जीत के लिखूँ
भावना में बज रहे संगीत के लिखूँ।।
मनुहार विप्रलम्भ में भी भूलता नहीं
संयोग विना मन - मधुप भी झूलता नहीं
अंतरंग के उसी अतीत के लिखूँ।।
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