आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी
कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ
बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ
बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात
आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद
तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार
आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार
कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास
दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार
-दिगम्बर नाशवा
बढ़िया प्रस्तुति है श्रीमन -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआंगन पर अच्छे दोहे साधुवाद
जवाब देंहटाएंbahut sundar dohe digambar ji ...padhte samay itna sama gaye ki geet hi likh gaye the ,hardik shubhkamnaye
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ८ /७ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंअच्छे दोहे
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा जी तो दोहे भी बहुत अच्छे रचते हैं।
आपका आभार यशोदा बहन!
'आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
जवाब देंहटाएंआँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार.'
-कहाँ बचे अब आँगन घऱ में ,
सिमट गए कमरों में, दर में !
आंगन में इतना कुछ समेटे एक भाव भरी रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर नासवा जी को नमन......
जवाब देंहटाएंआँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
@ छुवा-छुवौवल तो कभी,बन जाते थे रेल
याद अचानक आ गये, आँगन के सब खेल
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ
@ परी बनी सब तितलियाँ, गई पिया के गाँव
भुला न पाई पर कभी, आँगन की दो बाँह
बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात
@ गरमी की रातें अहा, बिछती आँगन खाट
सुखमय गहरी नींद वह, आज ढूँढता हाट
आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद
@ जिस आँगन की धूल में,बचपन हुआ जवान
वहीं तीर्थ मेरे सभी, वहीं मेरे भगवान
तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार
@ रहा किनारे तैरता, पहुँचा ना मँझधार
वह क्या समझे नासवा, आँगन एक विचार
आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार
@ आँगन जो तज कर गया, सात समुंदर पार
उसके दिल से पूछिये, है कितना लाचार
कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास
@आँगन पथरीला किया, हृदय बना पाषाण
हाय मशीनी देह में,प्रेम हुआ निष्प्राण
दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार
@”मेरा-तेरा” भाव से, प्रेम बना व्यापार
आँगन रोया देख कर, बीच खड़ी दीवार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (10-07-2013) को निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....बुधवारीय चर्चा-१३०२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है। कृपया http://nirjhar-times.blogspot.in पर अवलोकन करें।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
सूचनार्थ
Apka bahut bahut abhar mere dohon ko sthan dene ka aur sabhi mitron ka aabhar is sarahna ke liye ...
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