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रविवार, 21 जुलाई 2013

पांच चुनावी छ्क्के - डा.राज सक्सेना



बहूगुणा ने गुण दिखा, दी होली की छींट |
अध्यक्षी को कर दिया,उसने महिला सीट |
उसने महिला सीट, सैकड़ों को  दहलाया,
कर के हेरा फेर, नगर को मूर्ख  बनाया |
कहे 'राजकवि',     सपने सारे दिए उड़ा,
चीख रहे कुछ लोग,नर्क में जाये बहुगुणा |
-०-
नियमों को उल्टा बना, उसमें लिया लपेट |
गढवाली हर सीट को, कर के उसमे सैट |
कर के उसमे सैट,  पूर्ण गढवाल बचाया,
लगभग पूर्ण कुमांऊं ही आरक्षित करबाया |
कहे 'राजकवि'  राजधर्म क्या सुंदर पलटा,
किसके हित के लिए,अरे नियमों को उल्टा ||
-०-
हमको हर अधिकार की, दिखी आज औकात |
बात उसी की मानते,  जिसकी खाते लात |
जिसकी खाते लात,  उसी का हुक्म बजाते,
नियम और कानून,ताक पर घर रख आते |
कहे 'राज कवि'सुनो, सुनाते हम भी तुमको ,
मत दिखलाओ नियम तोडकर शक्लें हमको |
-०-
अपने हित को साधने, जन-हित देते तोड़ |
मनमानी से कर रहे, 'ला' की तोड़मरोड़ |
'ला' की तोड़ - मरोड़,   अंधेरे में ले जाते,
फिर शासक से उसपर अनगिन रेप कराते |
कहे 'राज' कविमित्र, देख लो दिन में सपने, 
बेशरमी से दुमें हिला, भर लो  घर अपने  |
-०-
जन - जनता की जेब से,आता टैक्स कराल |
उस से तनखा प्राप्त कर, फूल रहे हैं  गाल |
फूल रहे हैं  गाल, नहीं घर से कुछ खाते ,
इस जनता के धनं से ही, तुम मौज उड़ाते ?
कहे 'राज कवि'मित्र, रखो इज्जत तनखा की,
गरिमा मन में रखो मित्र इस जन-जनता की |
-०-

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह...
    पढ़कर मजा आ गया...
    वाकई में छक्के हैं सब...
    मगर मुझे तो सब कुण्डलियाँ ही लग रही है।
    --
    आभार...!

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. जर्रानवाजी है आपकी | स्नेह और सम्पर्क बनाए रखें | आदाब |

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. प्रसाद जी प्रणाम | कविता का शीर्षक देखने का कष्ट करें | ये मात्र छ्क्के हैं इस लिए इन पर सुख तो
      प्रकट करें दुःख नहीं क्योकि यह मात्र विनोद के लिए रचे गए हैं | इन्हें आप कुंडलियों की सौतेली बहन मान कर पढ़ें तो दुःख नहीं होगा |स्नेह बनाए रखें | आदर सहित |

      हटाएं

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