बहूगुणा ने गुण दिखा, दी होली की छींट |
अध्यक्षी को कर दिया,उसने महिला सीट |
उसने महिला सीट, सैकड़ों को दहलाया,
कर के हेरा फेर, नगर को मूर्ख बनाया |
कहे 'राजकवि', सपने सारे दिए उड़ा,
चीख रहे कुछ लोग,नर्क में जाये बहुगुणा |
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नियमों को उल्टा बना, उसमें लिया लपेट |
गढवाली हर सीट को, कर के उसमे सैट |
कर के उसमे सैट, पूर्ण गढवाल बचाया,
लगभग पूर्ण कुमांऊं ही आरक्षित करबाया |
कहे 'राजकवि' राजधर्म क्या सुंदर पलटा,
किसके हित के लिए,अरे नियमों को उल्टा ||
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हमको हर अधिकार की, दिखी आज औकात |
बात उसी की मानते, जिसकी खाते लात |
जिसकी खाते लात, उसी का हुक्म बजाते,
नियम और कानून,ताक पर घर रख आते |
कहे 'राज कवि'सुनो, सुनाते हम भी तुमको ,
मत दिखलाओ नियम तोडकर शक्लें हमको |
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अपने हित को साधने, जन-हित देते तोड़ |
मनमानी से कर रहे, 'ला' की तोड़मरोड़ |
'ला' की तोड़ - मरोड़, अंधेरे में ले जाते,
फिर शासक से उसपर अनगिन रेप कराते |
कहे 'राज' कविमित्र, देख लो दिन में सपने,
बेशरमी से दुमें हिला, भर लो घर अपने |
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जन - जनता की जेब से,आता टैक्स कराल |
उस से तनखा प्राप्त कर, फूल रहे हैं गाल |
फूल रहे हैं गाल, नहीं घर से कुछ खाते ,
इस जनता के धनं से ही, तुम मौज उड़ाते ?
कहे 'राज कवि'मित्र, रखो इज्जत तनखा की,
गरिमा मन में रखो मित्र इस जन-जनता की |
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अरे वाह...
जवाब देंहटाएंपढ़कर मजा आ गया...
वाकई में छक्के हैं सब...
मगर मुझे तो सब कुण्डलियाँ ही लग रही है।
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आभार...!
पसंद आने पर आपका साधुवाद
हटाएंtabiyat khush kar diya ,bahut khoob
जवाब देंहटाएंजर्रानवाजी है आपकी | स्नेह और सम्पर्क बनाए रखें | आदाब |
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जवाब देंहटाएंवाह राज जी ! बहुत करारा कुण्डलियाँ
जवाब देंहटाएंlatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
प्रसाद जी प्रणाम | कविता का शीर्षक देखने का कष्ट करें | ये मात्र छ्क्के हैं इस लिए इन पर सुख तो
हटाएंप्रकट करें दुःख नहीं क्योकि यह मात्र विनोद के लिए रचे गए हैं | इन्हें आप कुंडलियों की सौतेली बहन मान कर पढ़ें तो दुःख नहीं होगा |स्नेह बनाए रखें | आदर सहित |