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शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

ज्ञानवापी ----डॉ.श्याम गुप्त

 ज्ञानवापी का अर्थ ही ज्ञान का जलाशय होता है जो संस्कृत शब्द है , फिर उसका मस्ज़िद से दूर दूर तक कोई सम्बंध ही कहाँ है

.मोड़ जीवन के----डॉ. श्याम गुप्त की संतुलित कहानी----

 .मोड़ जीवन के



          
एक साहित्यिक आयोजन में हिन्दी कविता पर सारगर्भित व्याख्यान के पश्चात अपने स्थान पर बैठने पर साथ में बैठे एक वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा ,'बहुत शानदार व्याख्याडॉ रसिक जीआपने किस विश्वविद्यालय से  साहित्य के किस विषय पर शोध किया है ? ‘        ‘ क्या अभिप्रायः है आपका?’ आश्चर्य चकित होते हुए रसिक जी ने पूछातो बगल में बैठे हुए अनित्य जी हंसते हुए बोले, ‘अरेरसिक जी कोई साहित्य के डाक्टर थोड़े ही हैंवे तो इन्जीनियारिंग के प्रोफेशनल पीएचडी धारक हैं।

         ‘ओहपर यह मोड़ कैसे  कब आयाकहाँ नीरस इन्जीनियरिंग और कहाँ साहित्य?’ वे रसिक जी की ओर उन्मुख होते हुए कहने लगे 'कविता तो सभी कर लेते हैं पर सम्पूर्ण साहित्यकारिताहर क्षेत्र में वह भी पूरी गहराई तकयह मोड़ कैसे आया?’

          रसिक जी हंसने लगे। यह तो मेरी व्यक्तिगत रूचि का कार्य है। मैं यह मानता हूँ कि व्यक्ति को अपने प्रोफेशनल कार्य या अन्य कार्य में ऋद्धि-सिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के पश्चात वहीं अटके नहीं रह जाना चाहिए अपितु आगे बढ़ जाना चाहिएनयी-नयी राहों परलक्ष्यों पर। जीवन स्वयं ऋजु मार्ग कब होता है?  जीवन तो स्वयं ही विभिन्न मोड़ों से भरा होता है। 

          वे शायद अतीत के झरोखों में झांकते हुए कहने लगे,’यह कोई मेरे जीवन का प्रथम मोड़ नहीं है। बचपन में प्राथमिक कक्षाओं में उन्मुक्तचिंता रहित खेलने-खाने के दिनों में सामान्य छात्र की भांति जीवन का एक सुन्दर सहज भाग बीता ही था कि कुछ घरेलू परिस्थितियों के कारण मुझे अध्ययन त्याग कर प्राइवेट सर्विस करनी पडी जो जीवन का दूसरा दौर था। वह भी एक विशिष्ट जीवन-अनुभव का दौर रहाजहां बहुत कुछ स्वयं शिक्षा के अनुभवों द्वारासाथियोंसहकर्मियोंमालिकों द्वारा विभिन्न प्रकार का ज्ञान हुआ जो कहीं से भीकिसी से भी, कभी भी, किसी भी मोड़ पर प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान ही मानव का वास्तविक साथी है जो हर मोड़ पर आपका साथ देता है, अतः प्रत्येक मोड़ पर ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिये। कई वर्ष बाद दूसरा मोड़ तब आया जब मैंने बड़े भाई के कहने पर घर पर ही अध्ययन करके व्यक्तिगत तौर पर जूनियर हाई स्कूल की परीक्षा दीफ़िर चला अध्ययन का नया दौरसुहाना दौर, किशोरावस्था से युवावस्था तक। हाई स्कूलइन्टर्मीजिएटके बाद अभियन्त्रण विविध्यालय में चयन के साथ प्रोफ़ेशनल कालेज के मनोरमस्वप्निलयुवा तरन्गित वातावरण में ग्रेजुएशन  पोस्ट-ग्रेजुएशन का आनन्दमय दौर  शोधकर्ता रूप में पी-एच डी की डिग्री का सुहाना गौरवपूर्ण अनुभव। 

 

      अभियान्त्रीकरण विद्यालय में अध्यापनतदुपरान्त निज़ी कम्पनी चलाने का दौर तीसरा मोड़ था जीवन का जो एक अति विशिष्ट  महत्वपूर्ण अनुभव का दौर था। तत्पश्चात केन्द्रीय सरकाररेलवे के प्रथम श्रेणी अफ़सर के रूप में सेवा एक चौथा मोड़ थाजो ज़िन्दगी की भाग-दौडविभागीय मसले-द्वन्द्व,खेल-कूदप्रतियोगिताविवाहपरिवार के दायित्व के साथ साथ युवा मन के स्वप्निल सन्सारधर्म,अर्थकाम के सन्तुलित व्यवहार की कठिनतम जीवन चर्यारचनात्मक-कार्यधन प्राप्तिसिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्ति का एक सुन्दरतम दौर भी रहा। 

       लिखना पढ़ना तो सदैव ही मेरा प्रिय व्यक्तिगत अतिरिक्त कर्म(पास्ट टाइमरहा है। बचपनस्कूल.कालेजविविद्यालय सभी में यह क्रम सेवा के साथ साथ भी चलता रहा। यह जो आप देख रहे हैं यह पांचवा मोड़ सेवा-निव्रत्ति के पश्चात समस्त सिद्धिप्रसिद्धि,के विभिन्न आमन्त्रण,लोभ-लालचअर्थ प्राप्ति के साधनों से भी निव्रत्त होकर आया हैजो आपके सम्मुख हैकि बस अब सन्सार बहुत हो गया कुछ बानप्रस्थी भाव भी अपनाना चाहियेअपने स्वयं के लिये जीना चाहिये। स्वयं में स्थापित होकर समाज भावअपना प्रिय स्वतन्त्र कर्म भी करना चाहिये। आगे कौन सा मोड़ होगा यह तो ईश्वर ही जानेशायद इस सारे ताम-झाम से भी सन्यस्त होने का...... 

 

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