कहने को तो दे दिया, शिक्षा का अधिकार।
लेकिन दूषित हो रहा, बच्चों का आहार।
बच्चों का आहार, तरीका नहीं स्वदेशी।
करते वाद-विवाद, सभी हैं इसमें दोषी।
कितने हैं बेहाल, यहीं पर अब रहने दो।
नैतिकता रह गयी, यहाँ केवल कहने को।।
दिल की बात , गज़ल संग्रह का आत्मकथ्य – काव्य या साहित्य किसी विशेष , काल...
sundar ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सामयिक कुण्डलिया।
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया कुण्डलियाँ
जवाब देंहटाएंबधाई आदरणीय-
दिखा समस्तीपुर रहा, मस्ती-मार समस्त |
तर-ऊपर कुल बेंच रख, बच्चे बैठे पस्त |
बच्चे बैठे पस्त, कक्ष इक चार सैकड़ा |
देख सुशासन नीति, रहा सो कहाँ बेवड़ा |
है बिहार का हाल, डुबा सूखे में कश्ती |
लेकिन सी एम् साब, हमेशा दिखा समस्ती ||
भाव,कहन और शिल्प अति सुंदर............बधाई आदरणीय राजीव रंजन गिरि जी...................
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (26-07-2013) को खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना: चर्चा मंच 1318 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंचुस्त कुण्डलियाँ छंद-
आभार आदरणीय-
करते वाद-विवाद, बकें दोषी ही वेशी ।