..कुण्डली छंद ....श्याम लीला-- गोवर्धन धारण....
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जल अति भारी बरसता वृन्दावन के धाम,
हर वर्षा-ऋतु डूबते , वृन्दावन के ग्राम |
वृन्दावन के ग्राम, सभी दुःख सहते भारी ,
श्याम कहा समझाय, सुनें सब ही नर नारी
ऊंचे गिरितल बसें , छोड़ नीचा धरती तल,
फिर न भरेगा, ग्राम गृहों में वर्षा का जल ||
पूजा नित प्रति इंद्र की, क्यों करते सब लोग ,
गोवर्धन पूजें नहीं, जो पूजा के योग |
जो पूजा के योग, सोचते क्यों नहीं सभी,
देता पशु,धन-धान्य,फूल-फल सुखद वास भी |
हितकारी है श्याम , न गोवर्धन सम दूजा,
करें नित्य वृज-वृन्द सभी गोवर्धन पूजा ||
सुरपति जब करने लगा, महावृष्टि ब्रजधाम ,
गोवर्धन गिरि बसाए, ब्रजवासी घनश्याम |
वृजवासी घनश्याम, गोप गोपी साखि राधा,
रखते सबका ख्याल, न आयी कुछ भी बाधा |
उठा लिया गिरि कान्ह, कहैं वृज बाल-बृंद सब ,
चली न कोइ चाल , श्याम, यूँ हारा सुरपति ||
धन्यवाद शास्त्रीजी...
जवाब देंहटाएंजब छन्द का शुद्ध नाम ही नहीं लिखा तो पढ़ने से क्या लाभ?
जवाब देंहटाएंफिर भी पढ़ लिया इसको कुण्डली नहीं कुण्डलिया छन्द कहा जाता है इसमें गति भंग है शिल्प के साथ प्रवाह भी छन्द की आवश्यकता होती है
वाजपयी जी ...छंद का नाम कुण्डलिया नहीं है अपितु वास्तविक नाम कुण्डली छंद है ....प्राथमिक कक्षाओं में ..पढी होंगीं कि शीर्षक... गिरिधर की कुण्डलियाँ ..या काका की कुण्डलियाँ ....जो कुण्डली का बहुबचन है ....उसी को बाद में कुण्डलिया कहने लगे ...अतः अब यह दोनों नाम से जाना जाता है ...
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