कुछ दोहे मेरी कलम से.....
बड़ा सरल संसार है , यहाँ नहीं कुछ
गूढ़
है तलाश किसकी तुझे,तय करले मति मूढ़.
कहाँ ढूँढता है
मुझे , मैं हूँ तेरे पास
मैं तुझ सा साकार कब, मैं केवल अहसास.
पागल होकर खोजता , सुविधाओं में चैन
भौतिकता करती रही ,
कदम-कदम बेचैन.
मैं मिल जाऊंगा तुझे , तू बस मैं को भूल
मेरी खातिर हैं बहुत , श्रद्धा के दो फूल.
जीवन सारा बीतता , करता रहा तलाश
अहंकार के भाव ने ,सबकुछ किया विनाश.
त्याग दिया माँ-बाप को , कितना किया हताश
अब किस सुख की चाह में, मुझको करे तलाश.
जिस दिन
जल कर दीप सा ,देगा ज्ञान प्रकाश
मुझमें
तू मिल जा जरा , होगी खतम तलाश.
पाप
भरें हैं हृदय घट , मन में रखी खराश
लेकर
गठरी स्वर्ण की , मेरी करे तलाश.
जीवित
होकर हँस पड़ूँ , ऐसा संग तलाश
फिर मेरी मूर्ति
गढ़ने , लाना संग तराश.
ज्येष्ठ
दुपहरी क्यों खिले , सेमल और पलाश
इस क्यों
का कारण कभी, अपने हृदय तलाश.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 03/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर दोहे...बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल सोमवार (10-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंदो पक्तियों में दमदार बात कहने की शक्ति तो दोहे में ही है .बहुत ही उत्कृष्ट शिक्षाप्रद दोहे
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
आदरणीय अरुण जी दमदार दोहे सभी दिल छू लेने वाले बहुत बहुत बधाई एक संशय ----फिर मूर्ति गढ़ने मेरी , लाना संग तराश. इस पद में विषम चरण में क्या ग़ज़ल की तरह मेरी को मिरी पढ़ सकते हैं क्या ये उचित है? क्रप्या संशय निवारण करें
जवाब देंहटाएंअति सुंदर | साधुवाद |
जवाब देंहटाएंआदरणीया राजेश कुमारी जी. आपकी पारखी दृष्टि ने बिल्कुल सही त्रुटि पकड़ी है. यह पंक्ति वास्तव में "फिर मेरी मूर्ति गढ़ने" लिखी जानी थी. टंकण की त्रुटिवश शब्दों में हेरफेर हो गई थी. हिंदी में मेरी को मिरी नहीं पढ़ा जा सकता. उचित सुधार कर दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचलो इस बहाने "सीखने और सिखाने का मंच" अपने नाम और उद्देश्य को सार्थक कर गया. ध्यानाकर्षण हेतु हृदय से आभारी हूँ.
आदरणीया राजेश कुमारी जी. आपकी पारखी दृष्टि ने बिल्कुल सही त्रुटि पकड़ी है. यह पंक्ति वास्तव में "फिर मेरी मूर्ति गढ़ने" लिखी जानी थी. टंकण की त्रुटिवश शब्दों में हेरफेर हो गई थी. हिंदी में मेरी को मिरी नहीं पढ़ा जा सकता. उचित सुधार कर दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचलो इस बहाने "सीखने और सिखाने का मंच" अपने नाम और उद्देश्य को सार्थक कर गया. ध्यानाकर्षण हेतु हृदय से आभारी हूँ.
बहुत ही बेहतरीन ...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दोहों में दर्शन भरा ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर खिले पलाश
'उर्दू' एक तुर्की शब्द है जिसका अर्थ है = छावनी, लश्कर
जवाब देंहटाएंहिंदी या हिन्दुस्तानी भाषा का वह रूप जिसमें अरबी-फ़ारसी शब्द अधिक व्यवहृत होते हों, उर्दू भाषा कहलाती है, प्रारम्भ में उर्दू को 'रखता' कहा जाता था ।
उर्दू भाषा लेखन में हिन्दी शब्दों के तत्भव स्वरूप अधिक प्रयुक्त होता है जैसेकि "ज्येष्ठ दुपहरी" को "जेठ दुपहरिया" लिखा जाए और "फिर मेरी मूर्ति के स्थान पर = फिर मेरा बुत बनाने" लिखा जाए.....