यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 14 जुलाई 2013


भौतिक साधन प्राप्त हों, मिले साथ में धर्म |
जनहित सेवा भाव से, करें नये नित कर्म ||
-०-
नये वर्ष में ना मिले,  मित्र - जनों को कष्ट |
सुख,समृद्धि,सुरक्षा मिले, हर पीड़ा  हो नष्ट ||
-०-
सीढी प्रगति की चढ़े,  चढ़े  जगत में मान |
बढ़े समझ सदभावना ,उच्चसोच और शान ||
-०-
जीवन भर सोचे सभी,सिद्ध-सफल हों काम |
सिक्के सा चलता रहे, खरा आप  का नाम ||
-०-
काम,क्रोध,मद,लोभ का, नीचा रहे ललाट |
शत्रु नाश स्वमेव हो, छल-छंदों को  काट ||
-०-
बुरे काम  ना खर्च हो, कौड़ी और छदाम |
सद्कर्मों में खर्च हों, झोली भर-भर दाम ||
-०-
मात-पिता और श्रेष्टजन, नित-नित दें आशीष |
हंसी-ख़ुशी हरदम मिले, दूर रहे  हर   टीस ||
-०-
ईश-कृपा निश-दिन रहे, स्वत: बनें सब काम |
स्वर्णिम सा हर दिन कटे, कटे महकती शाम ||
-०-
दुनिया के सब सुख मिलें, रहे न कोई कष्ट |
भरी ख़ुशी हरदम रहे, दुःख के पल हों नष्ट ||
-०-
गये बरस के पृष्ट के, कर सब बंद हिसाब |
रिश्तों की इस वर्ष में,लिक्खें नई किताब ||
-०-
गया वर्ष सब ले गया, कुटिल,कष्ट,संताप |
नए वर्ष यश-मान से, परिपूरित हों आप ||

4 टिप्‍पणियां:

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...