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स्वर्ण कलश द्वै आपके,अमृत विष ज्यों साथ |
अमृत शैशव पा रहा, विष प्रियतम के हाथ |
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अहंकार सुख में नहीं, दुर्दिन में हो धीर |
यही ध्यान रख जो चलें,कभी न भोगें पीर |
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निर्मल्-निश्छल आंख में,स्वपनों का परिलेख |
कालजयी हो जाएगा, इनका हर अभिलेख |
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शब्द चित्र रचते मगर,शब्द्-जाल से दूर |
शब्दों में शब्दान्वित,निहित अर्थ भरपूर |
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दोहों से हटकर ये भी देखिए-
दोहों से हटकर ये भी देखिए-
उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
कहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |
उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
जवाब देंहटाएंकहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |आदरणीय राज सक्सेना जी बहुत सुन्दर दोहे ,कृपया अंतिम द्विपदी को दोहों से अलग करें वरना नव रचनाकारों को संशय होगा
कालजयी हो जाएगा,----एक संशय इसमें शायद आपने ए को एक मात्रा गिनी है जब कि मेरे संज्ञान में २ मात्राएँ गिनी जाती हैं ए के स्थान पर जायगा प्राचीन दोहेकारों ने किया हुआ है
आपको इन शानदार दोहों के लिए हार्दिक बधाई|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअन्तिम बन्द को अलग कर दीजिए।