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गुरुवार, 4 जुलाई 2013

दोहावली

-1-
स्वर्ण कलश द्वै आपके,अमृत विष ज्यों साथ |
अमृत शैशव पा रहा, विष प्रियतम के हाथ |
-2-
अहंकार सुख में नहीं, दुर्दिन में हो धीर |
यही ध्यान रख जो चलें,कभी न भोगें पीर |
- 3 -
निर्मल्-निश्छल आंख में,स्वपनों का परिलेख |
कालजयी हो जाएगा, इनका   हर अभिलेख | 
-4-
शब्द चित्र रचते मगर,शब्द्-जाल से दूर |
शब्दों में शब्दान्वित,निहित अर्थ भरपूर |
-5-
दोहों से हटकर ये भी देखिए-
उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
कहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |


2 टिप्‍पणियां:

  1. उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
    कहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |आदरणीय राज सक्सेना जी बहुत सुन्दर दोहे ,कृपया अंतिम द्विपदी को दोहों से अलग करें वरना नव रचनाकारों को संशय होगा
    कालजयी हो जाएगा,----एक संशय इसमें शायद आपने ए को एक मात्रा गिनी है जब कि मेरे संज्ञान में २ मात्राएँ गिनी जाती हैं ए के स्थान पर जायगा प्राचीन दोहेकारों ने किया हुआ है
    आपको इन शानदार दोहों के लिए हार्दिक बधाई|

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    अन्तिम बन्द को अलग कर दीजिए।

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