मित्रों!
किसी रचनाधर्मी की पोस्ट पर कलम चलाना उस कड़वी औषधि के समान है जिसको पीना गरल से कम नहीं होता, मगर स्वस्थ होने के लिए यह आवश्यक होती है।
मैं कोई विद्वान नहीं हूँ लेकिन मेरे अपने अध्ययन के अनुसार दोहे को पहले लिखना चाहिए और उसके बाद गाना चाहिए। यदि इसे गाने में लेशमात्र भी अवरोध होता है तो समझ लीजिए कि दोहा सही नहीं है।
आदरणीया सरिता भाटिया जी ने अपनी टिप्पणी में आदेश दिया है कि "गुरु जी बताएं कहाँ क्या गड़बड़ है?" इसलिए बहुत डरते-डरते अपनी कलम चला रहा हूँ!
सरिता भाटिया जी द्वारा लिखे गये निम्न दोहे, दोहे की कसौटी पर बहुत खरे उतरते हैं।
आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|
पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||
बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |
बिना थके बढते रहें , मन में धारे राम||
सुबह सुहानी आ गई लेकर मस्त फुहार |
पूरी हो हर कामना खुशियाँ मिलें अपार||
मगर इनमें कुछ खटकता है मुझे....
सुप्रभात दोहे रचने, मैं आई हूँ आज |
अधर पर मुस्कान लिए,करती हूँ आगाज ||
मेरे विचार से तो ये दोहा निम्नवत होना चाहिए था-
सुप्रभात के दोहरे, मैं लायी हूँ आज।
अधरों पर मुस्कान ले, करती हूँ आगाज।।
निम्न दोहे में भी गेयता में कुछ रुकावट प्रतीत होती है मुझे!
रोज ले आए नई ,सुबह सुखद सन्देश |
पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||
अगर दोहे को इस प्रकार लिखा जाता तो गेयता बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होती और भाव भी ज्यों के त्यों ही रहते..
प्रतिदिन ही हम भोर में, लिखते हैं सन्देश |
पूरी हो हर कामना ,संकट हरें गणेश||
निम्न दोहे की दूसरी पंक्ति भी गेयता को प्रभावित करती है।
चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी मिल गई ख़ास |
सुबह संदेश आपका ,दे गया नई आस ||
मेरे अनुसार तो इसे निम्न प्रकार लिखा जाना चाहिए था...
चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी मिल गई ख़ास |
सुप्रभात का आगमन, जगा गया उल्लास ||
--
सृजन मंच ऑनलाइन सीखने और सिखाने का मंच है। इस मंच का प्रत्येक लेखक/लेखिका किसी भी सहयोगी की पोस्ट की समीक्षा कर सकता है। जिससे कि हम सबको अपनी त्रुटियों का भान हो सके।
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंशुक्र है आपने किया तो इसमें से कुछ मैंने सुधार लिए थे बाकी आज कर लेती हूँ आपकी प्रतिक्रिया देखती रही आज देख पाई हूँ दोबारा
तह दिल से शुक्रिया गुरु जी