सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |
हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |
प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, विकट अन्तर सिसकारे ||
मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन,,,वाह
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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