यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

"कुण्डलियाँ-मूछ वन्दना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 
आभूषण हैं वदन कारक्खो मूछ सँवार,
बिना मूछ के मर्द कामुखड़ा है बेकार।
मुखड़ा है बेकारशिखण्डी जैसा लगता,
मूछों से नर के कानन में पौरुष जगता,
कह मंयक’ मूछों वाले ही थे खरदूषण ,
सत्य वचन है मूछमर्द का है आभूषण।
(२)
पा कर मूछें धन्य हैंवन के राजा शेर,
खग-मृग सारे काँपतेतीतर और बटेर।
तीतर और बटेरकेसरि नही कहलाते,
भगतसिंह-आजाद मान जन-जन में पाते।
कह मयंक’ मूछों से रौब जमाओ सब पर,
रावण धन्य हुआ जग मेंमूछों को पा कर।
(३)
मूछें बिकती देख करहर्षित हुआ मयंक’,
अपना मूछों के बिनाचेहरा लगता रंक।
चेहरा लगता रंकखरीदी तुरन्त हाट से,
ऐंठ-मैठ कर चलारौब से और ठाठ से।
कह मंयक’ आगे कामेरा हाल न पूछें,
हुई लड़ाई मार-पीट में उखड़ी मूछें।

8 टिप्‍पणियां:

  1. भाई अरुण कुमार निगम जी एवं रविकर जी आप समय निकाल कर दोषपूर्ण कुण्डलियों की समीक्षा कर दीजिए, ताकि दूसरा छन्द सृजन मंच ऑनलाइन पर प्रारम्भ किया जा सके।
    आभारी रहूँगा आप दोनों का।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी, आपके आदेश पर ...............

      आभूषण हैं वदन का, रखिये मूँछ सँवार,
      बिना मूँछ के मर्द का, मुखड़ा है बेकार।
      मुखड़ा है बेकार, शिखण्डी जैसा लगता,
      बात कहूँ मैं सत्य, मूँछ से पौरुष जगता,
      कह ‘मंयक’ रख मूँछ, हुये चर्चित खरदूषण ,
      सत्य वचन है मूँछ , मर्द का है आभूषण।
      (२)
      पा कर मूँछें धन्य हैं, वन के राजा शेर,
      खग-मृग सारे काँपते, तीतर और बटेर।
      तीतर और बटेर, केसरि नहीं कहलाते,
      भगतसिंह-आजाद , मान जन-जन में पाते।
      कह ‘मयंक’ रख मूँछ, जमाओ रौब सभी पर,
      रावण भी था धन्य ,मस्त मूँछों को पा कर।
      (३)
      मूँछें बिकती देख कर, हर्षित हुआ ‘मयंक’,
      अपना मूँछों के बिना, चेहरा लगता रंक।
      चेहरा लगता रंक, खरीदी तुरत हाट से,
      ऐंठ-मैठ कर चला, रौब से और ठाठ से।
      फिर‘मंयक’ क्या हाल,हुआ मेरा मत पूछें,
      हुई लड़ाई मार-पीट में उखड़ी मूछें।

      1.हिन्दी शब्दकोश के अनुसार सही शब्द है - मूँछ
      2.रोला में 11 और तेरह मात्रायें होनी चाहिये.
      3.रोला का विषम चरण दीर्घ,लघु से समाप्त होना चाहिये.
      4.रक्खें के स्थान पर रखिये अधिक उपयुक्त हो सकता है.
      5.मेरी बुद्धि के अनुसार शिल्प-दोष वाली पंक्तियों में उचित संशोधन कर प्रस्तुत कर रहा हूँ.कृपया मिलान कर देखिये..........

      सादर....................

      हटाएं
  2. वाह! बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह गुरु जी नमन आप से तो बिना मूँछ के भी हम डरते हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. ---केसरि नही कहलाते,---- सही शब्द है केसरी = केसरी नहिं कहलाते..या.. केसरी नहीं कहाते .. सही होगा ...

    ---- सब कुछ ठीक है....परन्तु...इस कलापक्ष व कथ्य के चक्कर में हम भावपक्ष में ..कुम्भकर्ण व रावण का महिमा मंडन कर जाते हैं ....जिसका दूरगामी प्रभाव होता है...

    जवाब देंहटाएं

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...