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सोमवार, 1 जुलाई 2013

मन के विकार

त्रुटि का कद मत नापिये,कद में ना कुछ भेद|
पूरी नैया दे डुबा, इक नन्हा  सा छेद||

गलती से मत  भागिये ,छुपना है बेकार|
गलती, गलती ही रहे ,हो कोई आकार||

धरती पर जैसे रचे, जन जीवन कर्तार|
माटी से गढ़ता  रहा ,बर्तन देख कुम्हार||

माटी-माटी खेलते,चाक थके ना हाथ|
माटी में पैदा हुआ,जाना उसके साथ||


लगा डुबकियाँ कुंभ में ,तन का मैल उतार| 
कहाँ उतारे सोच ले ,मन का शेष विकार||
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10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...!
    बहुत उत्तम दोहे प्रकाशित किये हैं बहन राजेश जी आपने!

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  2. सुन्दर और शिक्षाप्रद दोहावली...

    जवाब देंहटाएं

  3. बहुत बढ़िया हैं दोहे आभार दीदी-

    हो गलती का लती जो, खायेगा वह लात |
    पछताये कुछ ना मिले, गर समझे ना बात ||

    जवाब देंहटाएं
  4. इस उत्साह वर्धन हेतु आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार |

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

    उत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134

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