ग़ज़ल
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मैं आदमी में सिकन्दर तलाश करता हूँ
मिला नही कोई गम्भीर-धीर सा आक़ा
मैं सियासत में समन्दर तलाश करता हूँ
लगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के
विदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ
सजे हुए हैं महल मख़मली गलीचों से
रईसजादों में रहबर तलाश करता हूँ
मिला नहीं है मुझे आजतक कोई चकमक
अन्धेरी रात में पत्थर तलाश करता हूँ
पहन लिए है सभी ने लक़ब (उपनाम) के दस्ताने
इन्हीं में "रूप" सुखनवर तलाश करता हूँ
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शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014
"तलाश करता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर वाह !
जवाब देंहटाएंवाह...क्या बात है ...क्या तलाश है......सुन्दर.....
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