विद्यार्थियों
के भविष्य के साथ खिलवाड न हो
विश्व
प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय में इन दिनों कोहराम मचा हुआ है. कहीं पर
शिक्षक हडताल कर रहें हैं तो कही पर विद्यार्थी विजय जुलूस निकाल रहें हैं. इसी
बीच दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति के इस्तीफा देने की खबर भी आई परंतु उस
खबर की पुष्टि नही हो पाई. दिल्ली विश्वविद्यालय में मचे इस कोहराम के बीच
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने की आकांक्षा पाले हुए नए विद्यार्थियों का
भविष्य अन्धकारमय हो गया है. कट-आफ के लिए प्रसिद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय के
विभिन्न कालेजों में प्रवेश को लेकर इस समय जहाँ चौतरफा हलचल रहती थी और वहाँ
आने वाले नव-आगंतुक विद्यार्थियों के स्वागत की खबर से लेकर फैशन तक की खबर
अखबारों की सुर्खियाँ बनती थी वहीं आज सन्नाटा पसरा हुआ है. दिल्ली
विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी) इस समय आमने-सामने हैं.
इस तनातनी को दूर करने के लिए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा परंतु सुप्रीम कोर्ट
ने हाई कोर्ट जाने की सलाह देकर किनारा कर लिया साथ ही मानव संसाधन विकास
मंत्रालय ने भी हस्तक्षेप करने से मना कर दिया. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने
दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों को एक पत्र लिखकर 10+2+3 शिक्षा नीति का पालन
करने को कहा अन्यथा अनुदान बंद करने की चेतावनी दी जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के
लगभग अधिकांश कालेजों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को पत्र लिखकर अपनी स्वीकृति
दी कि वें 10+2+3 शिक्षा नीति का उल्लंघन नही करेगें और चार साल के स्नातक कोर्स
को तीन साल का ही करेगें. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के इस पत्र को दिल्ली
विश्वविद्यालय ने उसकी स्वायत्ता पर हमला करार दिया.
यदि
हम इस घटना की शुरुआत से मूल्यांकन करे तो पायेगें कि यह मामला स्वायत्ता बनाम
तनाशाही का नही अपितु ‘संवादहीनता’ का है. 27 अप्रैल 2012 को ही जब दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने
स्नातक के चार वर्षीय पाठ्यक्रम (एफ.वाई.यू.पी) की जानकारी मीडिया में दी तभी से
उपकुलपति के खिलाफ शिक्षक संघ डूटा और विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी
परिषद के विद्यार्थी सडकों पर उतर गए. विरोध कर रहे शिक्षकों और विद्यार्थियों
का यह तर्क था कि तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के मौखिक आदेश
पर ही दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने स्नातक के चार वर्षीय पाठ्यक्रम को
लागू करने की घोषणा की है. स्नातक के पाठ्यक्रम को चार वर्ष का इसलिए किया गया
क्योंकि अमेरिका व अन्य देशों में पढने के लिए चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम
पढना जरूरी होता है. वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय का तर्क था कि चूँकि उनके यहाँ
भारत के कोने-कोने से विद्यार्थी पढने के लिए आते है और उन सभी में एकरूपता नही
होती है. उन विद्यार्थियों में एकरूपता लाने के लिए पहले वर्ष में विशेष प्रकार
का पाठ्यक्रम बनाया गया है. साथ ही यदि कोई विद्यार्थी दो वर्ष में अपनी स्नातक
की पढाई खत्म करना चाहता है तो वह डिप्लोमा की डिग्री लेकर कर सकता है, स्नातक की पढाई तीन वर्ष में खत्म करने वालों विद्यार्थियों को स्नातक –
प्रोग्राम की डिग्री मिलेगी और स्नातक – आनर्स
की डिग्री विद्यार्थी को चार वर्ष के पाठ्यक्रम को पढने के बाद ही मिलेगी. इसी
सूचना को 26 अप्रैल 2013 को शशि थरूर ने राज्यसभा में बताया कि डीयू चार वर्ष के
पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए तैयार है वहीं 3 जुलाई 2013 को विभिन्न राजनैतिक
दलों ने तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा चार वर्षीय नये सिस्टम को
नही रोके जाने का खुलकर विरोध किया. इतना ही नही स्नातक को चार वर्ष के स्थान पर
तीन वर्ष करने की बात को दिल्ली भाजपा ने बकायदा अपने एजेंडे में जगह दिया. इससे
बडी हास्यापद स्थिति और क्या होगी कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव को
ध्यान में रखकर एक तरफ जहाँ एन.एस.यू.आई पिछ्ले कुछ दिनों से दिल्ली
विश्वविद्यालय द्वारा तय किए गए एफ.वाई.यू.पी को वापस लेने की मांग कर रहा है तो
ठीक इसके विपरीत कांग्रेस के प्रमुख नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी
अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा तय किए गए एफ.वाई.यू.पी को यथावत
बनाए रखने की पुरजोर तरीके से वकालत कर रहे हैं. तनातनी के इस वातावरण में
दिल्ली विश्वविद्यालय एक शैक्षणिक संस्थान कम, राजनैतिक
अखाडा अधिक लग रहा है.
मानव
इतिहास के आदिकाल के समय से ही अलग-अलग स्वरूपों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार
होता रहा है. कालांतर में प्रत्येक राष्ट्र ने अपने मूल्यों को ध्यान में रखते
हुए अपने सामजिक – संस्कृति की अस्मिता को अभिव्यक्ति देने और
भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक शिक्षा प्रणाली का ताना-बाना बुना.
इसी कडी में भारत सरकार ने वर्ष 1964 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी)
के तत्कालीन अध्यक्ष डा. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा
प्रणाली को नया आकार और नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया जिसे
कोठारी आयोग (1964-1966) के नाम से जाना जाता है. कोठारी
आयोग देश का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था
जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखकर कुछ ठोस सुझाव देते
हुए देश में समान स्कूल प्रणाली (कामन
स्कूल सिस्टम) की वकालत की और कहा कि समान स्कूल प्रणाली पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय
व्यवस्था तैयार हो सकेगी जहां सभी तबके के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे. अगर ऐसा नहीं
हुआ तो समाज के ताकतवर लोग सरकारी स्कूल से भागकर प्राइवेट स्कूलों का रुख
करेंगे तथा पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी.
24
जुलाई , 1968 को
भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई, जो कि पूर्ण रूप से कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर ही आधारित थी. सामाजिक
दक्षता,राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज
की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया. पूरे देश में शिक्षा की समान संरचना बनी और लगभग सभी राज्यों द्वारा10+2+3 की
प्रणाली को मान लेना 1968 की
शिक्षा नीति की सबसे बड़ी देन है. भारतीय विचारधारा के अनुसार मनुष्य स्वयं एक
अमूल्य संपदा और संसाधन है. आवश्यकता इस बात की है कि उसकी देखभाल में गतिशीलता
एवं संवेदनशीलता हो. कुल मिलाकर, यह
कहना सही होगा कि शिक्षा वर्तमान तथा भविष्य के निर्माण का अनुपम साधन है. इसी
सिद्धांत को भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण की धुरी माना गया है. वर्तमान समय में हमारा देश आर्थिक और तकनीकि समृद्धि के पथ पर अग्रसर
है. शिक्षा के माध्यम से ही हम समाज के हर वर्ग तक पहुँचकर उनका न्यायपूर्वक
मूल्यांकन कर सकते हैं. इसी सन्दर्भ में इसी उद्देश्य
को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने जनवरी,
1985 में यह घोषणा की कि देश में अब एक नई शिक्षा
नीति निर्मित की जायेगी. कालांतर में भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय
के अंतर्गत शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 बनाया और 1992 में इसमें कुछ संसोधन किया गया.
विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के तीसरे अध्याय में आयोग
की शक्तियाँ और कृत्य को परिभाषित कर यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि विश्वविद्यालयों
में शिक्षा की अभिवृद्धि और उसमें एकसूत्रता लाने के लिए विश्वविद्यालयों में
अध्यापन, परीक्षा और अनुसंधान के स्तरमानों का निर्धारण
करने के लिए जो आयोग ठीक समझे वह कार्यवाही कर सकता है. इतना ही नही
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के तीसरे अध्याय
में आयोग के चौथे अध्याय में यह भी लिखा गया है कि यदि केन्द्र सरकार और आयोग के
बीच यह विवाद उठता है कि कोई प्रश्न राष्ट्रीय उद्देश्यों से संबंधित नीति का है
या नही तो उस पर केन्द्र सरकार का विनिश्चय ही अंतिम होगा. कोठारी
आयोग, राधाकृष्णन आयोग, मुदलियार
आयोग और यशपाल समिति ने हमेशा ही शिक्षण संस्थानों को ज्ञान-सृजन पर तरह-तरह की
सलाह दिया है. साथ ही हमें भी यह ध्यान
रखना चाहिए कि स्वायत्तता का अर्थ निरंकुशता अथवा तानाशाही कभी नही होता. हमें
नही भूलना चाहिए कि स्वायत्तता और स्वतंत्रता के साथ जवाबदेही भी अवश्य ही रहती
है. बहरहाल
दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में पनपे इस गतिरोध से
वहाँ पढने की लालसा लिए हुए बच्चों का भविष्य अन्धकार में तो है ही साथ ही उनके
माता-पिता भी परेशान है जो कि किसी सभ्य समाज के लिए शोभनीय नही है.
राजीव गुप्ता
9811558925
|
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गुरुवार, 26 जून 2014
विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड न हो (राजीव गुप्ता)
मंगलवार, 24 जून 2014
"आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों।
फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं।
उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए।
मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रयास भी किया। मगर सफल नहीं हो पाया। शायद कुछ तकनीकी खामी थी।
श्री केवलराम जी ने फिर मुझे याद दिलाया तो मैंने अपनी दिक्कत बता दी।
इन्होंने मुझसे मेरा ईमल और उसका पासवर्ड माँगा तो मैंने वो भी दे दिया।
इन्होंने प्रयास करके उस तकनीकी खामी को ठीक किया और मुझे बता दिया कि ब्लॉगसेतु के आपके खाते का पासवर्ड......है।
मैंने चर्चा मंच सहित अपने 5 ब्लॉगों को ब्लॉग सेतु से जोड़ दिया।
ब्लॉगसेतु से अपने 5 ब्लॉग जोड़े हुए मुझे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि इन महोदय ने कहा कि आप ब्लॉग मंच को ब्लॉग सेतु से हटा लीजिए।
मैंने तत्काल अपने पाँचों ब्लॉग ब्लॉगसेतु से हटा लिए।
अतः बात खत्म हो जानी चाहिए थी।
---
कुछ दिनों बाद मुझे मेल आयी कि ब्लॉग सेतु में ब्लॉग जोड़िए।
मैंने मेल का उत्तर दिया कि इसके संचालक भेद-भाव रखते हैं इसलिए मैं अपने ब्लॉग ब्लॉग सेतु में जोड़ना नहीं चाहता हूँ।
--
बस फिर क्या था श्री केवलराम जी फेसबुक की चैटिंग में शुरू हो गये।
--
यदि मुझसे कोई शिकायत थी तो मुझे बाकायदा मेल से सूचना दी जानी चाहिए थी । लेकिन ऐसा न करके इन्होंने फेसबुक चैटिंग में मुझे अप्रत्यक्षरूप से धमकी भी दी।
एक बानगी देखिए इनकी चैटिंग की....
"Kewal Ram
आदरणीय शास्त्री जी
जैसे कि आपसे संवाद हुआ था और आपने यह कहा था कि आप मेल के माध्यम से उत्तर दे देंगे लेकिन आपने अभी तक कोई मेल नहीं किया
जिस तरह से बिना बजह आपने बात को सार्जनिक करने का प्रयास किया है उसका मुझे बहुत खेद है
ब्लॉग सेतु टीम की तरफ से फिर आपको एक बार याद दिला रहा हूँ
कि आप अपनी बात का स्पष्टीकरण साफ़ शब्दों में देने की कृपा करें
कोई गलत फहमी या कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए
क्योँकि गलत फहमी का कोई सवाल नहीं है
सब कुछ on record है
इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपन द्वारा की गयी टिप्पणी के विषय में कल तक स्पष्टीकरण देने की कृपा करें 24/06/2014
7 : 00 AM तक
अन्यथा हमें किसी और विकल्प के लिए बाध्य होना पडेगा
जिसका मुझे भी खेद रहेगा
अपने **"
--
ब्लॉग सेतु के संचालकों में से एक श्री केवलराम जी ने मुझे कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देकर इतना बाध्य कर दिया कि मैं ब्लॉगसेतु के संचालकों से माफी माँगूँ।
जिससे मुझे गहरा मानसिक आघात पहुँचा है।
इसलिए मैं ब्लॉगसेतु से क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही ब्लॉगिंग भी छोड़ रहा हूँ। क्योंकि ब्लॉग सेतु की यही इच्छा है कि जो ब्लॉगर प्रतिदिन अपना कीमती समय लगाकर हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध कर रहा है वो आगे कभी ब्लॉगिंग न करे।
मैंने जीवन में पहला एग्रीगेटर देखा जिसका एक संचालक बचकानी हरकत करता है और फेसबुक पर पहल करके चैटिंग में मुझे हमेशा परेशान करता है।
उसका नाम है श्री केवलराम, हिन्दी ब्लॉगिंग में पी.एचडी.।
इस मानसिक आघात से यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ब्लॉगसेतु और इससे जुड़े श्री केवलराम की होगी।
आज से ब्लॉगिंग बन्द।
और इसका श्रेय ब्लॉगसेतु को।
जिसने मुझे अपना कीमती समय और इंटरनेट पर होने वाले भारी भरकम बिल से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की।
धन्यवाद।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
"आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों।
फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं।
उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए।
मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रयास भी किया। मगर सफल नहीं हो पाया। शायद कुछ तकनीकी खामी थी।
श्री केवलराम जी ने फिर मुझे याद दिलाया तो मैंने अपनी दिक्कत बता दी।
इन्होंने मुझसे मेरा ईमल और उसका पासवर्ड माँगा तो मैंने वो भी दे दिया।
इन्होंने प्रयास करके उस तकनीकी खामी को ठीक किया और मुझे बता दिया कि ब्लॉगसेतु के आपके खाते का पासवर्ड......है।
मैंने चर्चा मंच सहित अपने 5 ब्लॉगों को ब्लॉग सेतु से जोड़ दिया।
ब्लॉगसेतु से अपने 5 ब्लॉग जोड़े हुए मुझे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि इन महोदय ने कहा कि आप ब्लॉग मंच को ब्लॉग सेतु से हटा लीजिए।
मैंने तत्काल अपने पाँचों ब्लॉग ब्लॉगसेतु से हटा लिए।
अतः बात खत्म हो जानी चाहिए थी।
---
कुछ दिनों बाद मुझे मेल आयी कि ब्लॉग सेतु में ब्लॉग जोड़िए।
मैंने मेल का उत्तर दिया कि इसके संचालक भेद-भाव रखते हैं इसलिए मैं अपने ब्लॉग ब्लॉग सेतु में जोड़ना नहीं चाहता हूँ।
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बस फिर क्या था श्री केवलराम जी फेसबुक की चैटिंग में शुरू हो गये।
--
यदि मुझसे कोई शिकायत थी तो मुझे बाकायदा मेल से सूचना दी जानी चाहिए थी । लेकिन ऐसा न करके इन्होंने फेसबुक चैटिंग में मुझे अप्रत्यक्षरूप से धमकी भी दी।
एक बानगी देखिए इनकी चैटिंग की....
"Kewal Ram
आदरणीय शास्त्री जी
जैसे कि आपसे संवाद हुआ था और आपने यह कहा था कि आप मेल के माध्यम से उत्तर दे देंगे लेकिन आपने अभी तक कोई मेल नहीं किया
जिस तरह से बिना बजह आपने बात को सार्जनिक करने का प्रयास किया है उसका मुझे बहुत खेद है
ब्लॉग सेतु टीम की तरफ से फिर आपको एक बार याद दिला रहा हूँ
कि आप अपनी बात का स्पष्टीकरण साफ़ शब्दों में देने की कृपा करें
कोई गलत फहमी या कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए
क्योँकि गलत फहमी का कोई सवाल नहीं है
सब कुछ on record है
इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपन द्वारा की गयी टिप्पणी के विषय में कल तक स्पष्टीकरण देने की कृपा करें 24/06/2014
7 : 00 AM तक
अन्यथा हमें किसी और विकल्प के लिए बाध्य होना पडेगा
जिसका मुझे भी खेद रहेगा
अपने **"
--
ब्लॉग सेतु के संचालकों में से एक श्री केवलराम जी ने मुझे कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देकर इतना बाध्य कर दिया कि मैं ब्लॉगसेतु के संचालकों से माफी माँगूँ।
जिससे मुझे गहरा मानसिक आघात पहुँचा है।
इसलिए मैं ब्लॉगसेतु से क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही ब्लॉगिंग भी छोड़ रहा हूँ। क्योंकि ब्लॉग सेतु की यही इच्छा है कि जो ब्लॉगर प्रतिदिन अपना कीमती समय लगाकर हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध कर रहा है वो आगे कभी ब्लॉगिंग न करे।
मैंने जीवन में पहला एग्रीगेटर देखा जिसका एक संचालक बचकानी हरकत करता है और फेसबुक पर पहल करके चैटिंग में मुझे हमेशा परेशान करता है।
उसका नाम है श्री केवलराम, हिन्दी ब्लॉगिंग में पी.एचडी.।
इस मानसिक आघात से यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ब्लॉगसेतु और इससे जुड़े श्री केवलराम की होगी।
आज से ब्लॉगिंग बन्द।
और इसका श्रेय ब्लॉगसेतु को।
जिसने मुझे अपना कीमती समय और इंटरनेट पर होने वाले भारी भरकम बिल से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की।
धन्यवाद।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
गुरुवार, 19 जून 2014
"अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई के 187वें जन्मदिवस पर"
अमर वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के
187वें जन्म-दिवस पर उन्हें अपने श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की
यह अमर कविता सम्पूर्णरूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ!
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,
वीर शिवाली की गाथाएँ उसको याद जबानी थीं।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता का अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्ट्र कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,
किन्तु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई,
निःसंतान मरे राजा जी रानी शोक-समानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,
राजाओं-नब्वाबों के उसने पैरों को ठुकराया,
रानी दासी बनी यह दासी अब महारानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्रनिपात,
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो यही कहानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोई रनिवासों में, बेगम गम से थी बेजार,
उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार,
सरेआम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार,
नागपूर के जेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार,
यों परदे की इज्जत पर देशी के हाथ बिकानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटिया में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधुंपंत-पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रणचंडी का कर दिया प्रकट आह्वान,
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरमन से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनउ लपटें छाई थीं,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
नाना, धुंधुंपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह, मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी वो कुर्बानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,
जख्मी होकर वाकर भागा उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना-तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी,
अब के जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आईं थीं,
युद्ध-क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,
पर, पीछे ह्यूरोज आ गया हाय! घिरी अब रानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार,
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर-गति पानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
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रविवार, 15 जून 2014
“हम उस माँ को करते प्यार!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिसने दिया हमें आकार!
हम उस माँ को करते प्यार!
पीड़ा को सहकर जिसने दुनिया में हमें उतारा,
माता को अपना शिशु सबसे ज्यादा होता प्यारा,
कोटि-कोटि माँ का आभार!
हम उस माँ को करते प्यार!!
ममता के जल से धो-धोकर जिसने हमें सँवारा,
कदम-कदम पर जिस माता ने हमको दिया सहारा,
जननी का हम पर उपकार!
हम उस माँ को करते प्यार!!
|
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मेरी नवीन प्रकाशित पुस्तक---दिल की बात, गज़ल संग्रह ....डॉ. श्याम गुप्त
दिल की बात , गज़ल संग्रह का आत्मकथ्य – काव्य या साहित्य किसी विशेष , काल...
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निमंत्रण पत्र ...लोकार्पण समारोह----- अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश' -----डा श्याम गुप्त लोकार्पण समारोह----- अभिनन्दन ग्रन्थ ...
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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...
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हार में है छिपा जीत का आचरण। सीखिए गीत से , गीत का व्याकरण।। बात कहने से पहले विचारो जरा मैल दर्पण का अपने उतारो जरा तन...