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शुक्रवार, 31 मई 2019

भारत देश, राष्ट्र, व कांग्रेस ---- और कांग्रेस की गलतियां --डा श्याम गुप्त..



भारत देश, राष्ट्र, व कांग्रेस ---- और कांग्रेस की गलतियां --डा श्याम गुप्त..

                         



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भारत देश तो १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों की सत्ता से आजाद होगया था परन्तु भारत राष्ट्र उसी समय पुनः उसी सत्ता का वैचारिक गुलाम होगया था जब भारतीय जनमत द्वारा सर्व मत से सरदार बल्लभ भाई पटेल को अपना राष्ट्रीय नेता चुना परन्तु महात्मा गांधी जी ने उनकी की बजाय पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रधान मंत्री बनाया |

------भारत राष्ट्र उसी समय अभारतीय विचारधारा के पराधीन --- होगया था जब महात्मा गांधी के कहने के बावजूद कांग्रेस पार्टी को उसी समय समाप्त नहीं किया गया |

----- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का पतन ----तो उसी समय प्रारंभ होगया था जब इंदिरा कांग्रेस का गठन हुआ --


------वर्त्तमान कांग्रेस पार्टी का पतन---- तो उसी समय प्रारम्भ होगया था जब तमाम वरिष्ठ नेताओं के रहते हुए भी सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया .....


---एवं कांग्रेस के एक मात्र वरिष्ठ व विद्वान् नेता श्री प्रणव मुकर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए मनोनीत किया गया ताकि पार्टी व सत्ता हेतु एक विशिष्ट परिवार के लिए रास्ता साफ़ किया जाय ---


मंगलवार, 28 मई 2019

आज आजाद हुआ भारत ----आज की ग़ज़ल -गज़लोपनिषद ---डा श्याम गुप्त


आज आजाद हुआ भारत ----आज की ग़ज़ल -गज़लोपनिषद ---
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******काशी से नरेंद्र भाई मोदी , प्रधान मंत्री भारत सरकार का आह्वान व उद्घोष -----का मूल मन्त्र ---
१. कार्य में पारदर्शिता व परिश्रम का समन्वय डा श्याम  
२.कार्य व कार्यकर्ता , वर्क व वर्कर का एक रूपता भाव
३.सरकार व संगठन का समन्वित रूप व विचार
४.२१ वीं सदी का विज़न ----महान विरासत ---पूजा-पाठ, त्यौहार, शास्त्र व ग्रन्थ के साथ वर्तमान तत्वों का विकास -----अर्थात पुराने को सहेज़कर नवीन की आकांक्षा व वैज्ञानिक विकास के साथ प्रगति ---
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-----आतंक एवं राजनैतिक छुआछूत सहित हर प्रकार की छुआछूत से मुक्ति-----
**********यही तो भारतीयता का मूल भाव है ----
====इसी भाव पर प्रस्तुत है मेरी एक ग़ज़ल-----गज़लोपनिषद----
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |
संभूति च असम्भूति च यस्तदवेदोभय सह ,
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल |
ज्ञान व संसार- माया, साथ साथ स्वीकारें ,
यही जीवन व्यवहार है संस्कृति का मूल |
पढ़ें लिखें धन कमायें, परमार्थ हित साथ हो,
ज्ञान दर्शन धर्म श्रृद्धा के खिलाएं फूल |
किसी के भी धन व स्वत्व का नहीं करें हरण ,
चंचला कब हुई किसकी, जाएँ नहीं भूल |
यही सत जीवन का पथ, मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति 'श्याम,
जीव ! आनंद परम आनंद के हिंडोले झूल ||



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