मित्रों आज मुझे अमन 'चाँदपुरी' का भेजा संस्मरण प्राप्त हुआ।
जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है-
जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997 ई.
पता- ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर
ई-मेल : kaviamanchandpuri@gmail.com
यह संस्मरण है इक्कीसवीँ सदी के दूसरे दशक के दूसरे
साल यानी सितम्बर 2012 का।
उसी साल हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैनेँ ग्यारहवीँ मेँ दाखिला
लिया था। उसी दौरान मुझ पर एक अजीब सा नशा चढ़ा था। मैँ अपने जनपद की कुछ
प्रसिद्द, महान हस्तियोँ
के बारे मेँ जानने के लिए और उन पर लिखने के लिए अखबारोँ की कटिँग आदि माध्यमोँ
से जानकारी जुटाने लगा था। डॉ. लोहिया, मेँहदी
हसन, सैय्यद अहमद, जयराम वर्मा और ध्रुव जायसवाल आदि लोग इस कड़ी मेँ मेरी
रुचि को और भी प्रखर करते गये।
मैं जिनके बारे मेँ जानना चाहता था। जल्द ही दो-चार
दिनोँ मेँ भरपूर जानकारी सम्बन्धित व्यक्ति के बारे मेँ जुटा लेता था। मुझे इस विषय
मेँ रुचि तब आयी; जब मैनेँ
श्रीकृष्ण तिवारी, जो कि उसी
क्षेत्र के हैँ। जहाँ से मैँ हूँ. की पुस्तक "जिला अम्बेडकर नगर का
आईना" पढ़ी। जिसमेँ वर्तमान समय और पूर्व की कुछ प्रमुख हस्तियोँ का
संक्षिप्त परिचय है; केवल
एक महापुरुष को छोडकर जिसपर उन्होंने विस्तृत पुस्तक, उनकी जीवनी लिखी है जिसका नाम है "पूर्वाँचल के
गांधी जयराम वर्मा" यानी स्वर्गीय जयराम वर्मा जी।
मैनेँ इनके
बारे मेँ काफी कुछ सुना था। ये उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा भाग के गांधी
कहलाते हैं। जो ईमानदारी, सादगी
की मिशाल थे। प्रदेश सरकार मेँ मन्त्री भी रहे। राज्यपाल तक का पद जनता की सेवा
मेँ समर्पित रहने के लिए ठुकरा दिया।
यह
पुस्तक मुझे बहुतोँ प्रयास के बाद भी हासिल न हुई। इसका एक मात्र संस्करण 1999 मेँ छपा था जिसकी बमुश्किल 150 प्रतियाँ ही छपी थी। जिसे लेखक और प्रकाशक ने चुनिन्दा
लोगोँ को ही नि:शुल्क वितरण किया था। यह पुस्तक बजार मेँ भी उपलब्ध नहीँ थी। इसे
पाने का एक मात्र जरिया लेखक ही थे।
सितम्बर
से लेकर नवम्बर के मध्य मैँ हर दस-पन्द्रह दिनोँ मेँ एक बार जरुर श्रीकृष्ण
तिवारी जी के घर जाता रहा। लेकिन उनके अस्वस्थ होने और लखनऊ मेँ होने कि वजह से
मुझे हर बार निराश होकर लौटना पडता था। एक बार उनके सबसे छोटे सुपुत्र ने बताया जिनका नाम इस
वक्त याद नहीँ आ रहा है कि यह पुस्तक मुझे एक और जगह (व्यक्ति) से प्राप्त हो
सकती है और वो हैं श्रीराम अशीष
वर्मा जी।
जो जयराम वर्मा जी द्वारा ही स्थापित "जयराम वर्मा बापू
स्मारक इंटर कालेज" के प्रधानाचार्य और "पूर्वाँचल के गांधी जयराम
वर्मा" के प्रकाशक भी है। मैँ
इनके पास भी गया। और उस पुस्तक को पढ़ने के लिए अपनी उत्सुकता का जिक्र भी किया।
लेकिन परिणाम वही रहा ढाक के तीन पात निराश लौटना पडा। इन्होनेँ साफ इनकार कर
दिया और कहा "मेरे पास उपलब्ध नहीँ है।" जबकि उनके पास उस पुस्तक की
दस-बारह से भी ज्यादा प्रतियाँ थी। फिर भी नहीँ है कहा।
खैर कोई बात
नहीँ, मैं भी निराश
होकर उसे पढने की मंशा छोड चुका था। मगर मैंने अपने अन्दर जब थोडी-सी काव्य
प्रतिभा विकसित कर ली तो यह पुस्तक मुझे खुद ही ढूढती हुई चली आयी।
चार फरवरी को
जयराम वर्मा जी की जयन्ती होती है। उस वर्ष उनकी 110 वीँ जयंती थी। इल्तिफातगंज मेँ जहां मैँ रहता था वहां घर
के एकदम बगल मेँ ही जयराम वर्मा बापू स्मारक इंटर कालेज के इतिहास के लेक्चरर श्री राकेश
वर्मा जी रहते थे। जिन्हेँ मैँ अपनी रचित काव्य पक्तियाँ कभी-कभी सुनाता था।
इन्होनेँ जयराम वर्मा जी पर उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर मुझसे एक कविता रचने का
प्रस्ताव रखा। जिसे मैनेँ भी स्वीकार कर लिया। मगर समस्या यह थी कि मुझे जयराम
वर्मा जी के बारे मेँ मालूम तो था; पर
उतना पर्याप्त नहीँ था, काव्य
रचना के लिए।
इन्होनेँ
मुझे बताया कि उनके कालेज के लाइब्रेरी मेँ जयराम वर्मा जी की जीवनी है।
उन्होनेँ कहा "मैँ अपने कालेज से पुस्तक ले आऊगां, तुम उसको पढ़कर जयराम वर्मा जी पर कविता लिख देना।"
मैनेँ भी स्वीकृति दे दी। और जयराम वर्मा जी पर कविता भी रची। और वह पुस्तक जिसे
पढ़ने के लिए मैँ महीनोँ ढूढता रहा, वह
आखिरकार मुझे ही ढूढते हुऐ मेरे पास आ गयी। -चाँदपुरी
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