खाया फरेब-ए-हुस्न तो खाते चले गए
नाकामियों का जश्न मनाते चले गए
हम इतनी पी गए कि कदम ही बहक गए
बहके कदम को यूँ ही सँभाले चले गए
साक़ी तेरी नज़र ने ये क्या कर दिया कि हम
दिल में हसीन ख़्वाब सजाते चले गए
तेरी नवाजि़शों का नशा मय से कम नहीं
रहमत तिरी करम तेरा पाते चले गए
हम आज तक साक़ी के गुनहगार रहे हैं
‘बदनाम’ थे बेख़ुद ये बताते चले गए
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
वाह बहुत अच्छी गजल है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
अच्छी ग़ज़ल....
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