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बुधवार, 26 दिसंबर 2018
रविवार, 23 दिसंबर 2018
मेरी डायरी और तुम- सूरज जायसवाल 'कबीरा'
मेरी डायरी और तुम
मेरी डायरी
मेरी डायरी और तुम |
.....खैर अपनी बात अपनी डायरी को भी नही बताऊ तो किसे बताऊंगा। मेरी डायरी ही तो है जो हर रात को मेरे सारे अच्छे बुरे अनुभव खुद में सहेज लेती है। अच्छी बात ये है कि उसे मैं अपनी भाषा मे सब कुछ कह पाता हूं, कभी आज तक उसने ये नही कहा 'what the meaning of that lines? '
मैं सोच रहा था कि किसी दिन डायरी ने भी मेरी हिंदी समझने से इनकार कर दिया और तुम्हारी तरह वो भी कह उठे ' please tell me the meaning of your writing' उस दिन तो डायरी के उन कोरे पन्नो में भी वो अपनापन तलाशने में असफल हो जाऊंगा जैसे तुम्हारे दिल के किसी कोने में अपनी जगह तलाशने में हर बार असफल हो जाता हूं ।
पता है डायरी के किसी भी पन्ने में दिल नही है, पर उनसे मैं सिर्फ अपनी दिल की बातें ही share करता हु . वो क्या है कि दिमाग की तो पूरी दुनिया सुनती है, पर जब उन्हें अपने दिल की बात सुनाने जाओ तो हँसतें है सब। हा सच मे सब हँसतें है यार। तुम भी तो हँसती हो । क्या नही हँसती हो ? जब भी अपने दिल की बात तुम्हें बताने की सोचता हूं तुम्हे लगता है मैं मज़ाक कर रहा हु। तुम भी हँसती हो।
डायरी के पन्ने दिल नही रखते पर सब ज़ज़्बात सहेजतें है । और एक तुम हो, जो आजतक यह नही समझ पायी कि मैं तुम्हारे जिंदगी में क्यो हु?
सच तो ये है कि तुम्हारी जिंदगी में मैं क्यो हु, ये बात तो आजतक मैं भी नही समझ पाया। मेरी सुबह से लेकर शाम तक, शाम से फिर सुबह तक, किसी हिस्से में तुम्हारा कोई वजूद नही । फिर भी जाने क्यों, तुम्हें सोचे बगैर मैं एक पल भी नही । एक पल भी नही... जाने क्यों ?
- सूरज जायसवाल 'कबीरा'
गुरुवार, 20 दिसंबर 2018
कहानी ययाति की -- डा श्याम गुप्त
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कहानी ययाति की --
ययाति चन्द्रवंशी थे जो अपने आदि पुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे। पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि,अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए।
वेद-पुराणों में उल्लेखित ययाति के कुल-खानदान से ही एशिया की जातियों का जन्म हुआ। ययाति से ही आगे चंद्रवंश में पुरुओं, यदुओं, तुर्वसुओं, आनवों और द्रुहुओं का वंश चला।
ययाति प्रजापति ब्रह्मा की पीढ़ी में हुए थे। ययाति की 2 पत्नियां देवयानी और शर्मिष्ठा (दासी के रूप में थी देवयानी की ) थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी, तो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु, पुरु तथा अनु हुए। ययाति की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम माधवी था। माधवी की कथा बहुत ही व्यथापूर्ण है।
इस प्रकार ययाति के प्रमुख 5 पुत्र हुए - 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनद कहा गया है।
7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर.. राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु सेपौरव वंश की स्थापना हुई। .
यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं राज्य लेने से इंकार कर दिया। इस पर ययाति ने पुरु को राजा घोषित किया और वह प्रतिष्ठान (प्रतिष्ठानपुर (इलाहाबाद में गंगा पार का (झूँसी क्षेत्र) की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेशजो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है-
---- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला।
-----तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला.
---द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा
---- अनु को गंगा-यमुना दो-आब के पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी |
1. पुरु का वंश : पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए उनमें से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश में ही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर परीक्षित... जिनके पुत्र थे जन्मेजय।
------सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत... का था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे।
2. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए।
3. तुर्वसु का वंश : तुर्वसु के वंश में भोज (यवन) हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ मरूत। -----मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था, परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।
----- महाभारत के अनुसार ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थे, पर ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण इनकी गिनती शूद्रों में होने लगी। महाभारत युद्ध में ये कौरवों के साथ थे। इससे पूर्व.. दिग्विजय के समय नकुल और सहदेव ने इन्हें पराजित किया था। .
4. अनु का वंश : अनु को ऋग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।
5. द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं? को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया।
पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ।प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए। म्लेच्छों (अरबों) के राजा हुए।
यदु और तुर्वस को दास कहा जाता था।( देवयानी की दासी के रूप में रही शर्मिष्ठा के पुत्र होने से ) तुर्वस और द्रुह्यु से ही यवन और मलेच्छों का वंश चला।
-----इस तरह यह इतिहास सिद्ध है कि ब्रह्मा के एक पुत्र अत्रि... के वंशजों ने ही यहुदी, यवनी और पारसी धर्म की स्थापना की थी। इन्हीं में से ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ। यहुदियों के जो 12 कबीले थे उनका संबंध द्रुह्मु से ही था।
ययाति---भोग व वैराग्य कथा
मृत्यु समय आने पर पुरु ने कहा अभी तो मेरा भोगों से मन ही नहीं भरा | मृत्यु ने कहा यदि कोई पुत्र अपना यौवन तुम्हें दे तो और समय मिल सकता है |
पुरु ने कहा कि पिताश्री, मैं अपनी उम्र आपको दे देता हूं। जब आपका मन 100 साल भोगकर नहीं भरा, तब मेरा कहां भर पाएगा? तुम मुझे आशीर्वाद दो। ययाति बहुत खुश हुआ और कहने लगा कि तू ही मेरा असली बेटा है। ये सब तो स्वार्थी हैं। तुझे बहुत पुण्य लगेगा। तूने अपने पिता को बचा लिया इसलिए तुझे स्वर्ग मिलेगा।
100 साल के बाद फिर मौत आई और बाप फिर गिड़गिडाने लगा और उसने कहा कि अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ है। ये 100 साल ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला। पल में बीत गए। तब तक उसके 100 बेटे और पैदा हो चुके थे। नई-नई शादियां की थीं, मौत ने कहा, तो फिर किसी बेटे को भेज दो।
और ऐसा चलता रहा। ऐसा कहते हैं कि ऐसा 10 बार हुआ। ययाति हजार साल का हो गया बूढ़ा, तब भी मौत आई और मौत ने कहा, अब क्या इरादे है? ययाति हंसने लगा। उसने कहा, अब मैं चलने को तैयार हूं। यह नहीं कि मेरी इच्छाएं पूरी हो गईं, इच्छाएं वैसी की वैसी अधूरी हैं। मगर एक बात साफ हो गई कि कोई इच्छा कभी पूरी हो नहीं सकती। मुझे ले चलो। मैं तैयार हूँ ... ले चलो। मैं ऊब गया।
यह भिक्षापात्र भरेगा नहीं। इसमें तलहटी नहीं है। इसमें कुछ भी डालो, यह खाली का खाली रह जाता है। राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्हों ने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया ... |
सोमवार, 17 दिसंबर 2018
डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की----डा श्याम गुप्त
डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की----- क्रमिक पोस्ट---
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अनुशंसा ---- डा सुलतान शाकिर हाशमी ----
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महाकवि डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की’ प्रकाशित होरहा है जिसमें उन्होंने उनके मन-लुभावनी, उत्साहवर्धक एवं तनाव को खुशी में, दुःख को शांति में बदलने की क्षमता रखने वाली अपनी सोच का एक अनूठा दर्पण शायरी के रूप में प्रस्तुत करके शायरी के खजाने को मालामाल किया है |
------उनकी नवीन उद्भावनाओं को देखकर आत्मचिंतन, आत्ममंथन एवं एकाग्रता का एहसास खुद ब खुद पैदा होजाता है |
\
डा श्यामगुप्त का नवीन संग्रह ‘पीर ज़माने की ‘ उनके द्वारा लिखित अनेक लोकप्रिय ग़ज़ल संग्रहों की परम्परा में एक नया अध्याय आपके समक्ष प्रस्तुत है,
------जिसमें एक संपन्न कवि की प्रतिभा, वैभव एवं चिन्तन को ग़ज़ल के धरातल पर शिद्दत से महसूस किया जा सकता है |
------डा श्यामगुप्त ने शुरू में ही ‘ग़ज़ल की बात’ में स्पष्ट रूप से लिखा है की काफिया, रदीफ़, गैर–रदीफ़ ग़ज़ल, कसीदा और ग़ज़ल का अर्थ क्या होता है |
------ग़ज़ल की परम्परा और इतिहास पर उनका ये तुलनात्मक लेख उनकी विद्वता का परिचायक है | वह लिखते हैं---
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महाकवि डा श्यामगुप्त का नया ग़ज़ल-संग्रह ‘पीर ज़माने की’ प्रकाशित होरहा है जिसमें उन्होंने उनके मन-लुभावनी, उत्साहवर्धक एवं तनाव को खुशी में, दुःख को शांति में बदलने की क्षमता रखने वाली अपनी सोच का एक अनूठा दर्पण शायरी के रूप में प्रस्तुत करके शायरी के खजाने को मालामाल किया है |
------उनकी नवीन उद्भावनाओं को देखकर आत्मचिंतन, आत्ममंथन एवं एकाग्रता का एहसास खुद ब खुद पैदा होजाता है |
\
डा श्यामगुप्त का नवीन संग्रह ‘पीर ज़माने की ‘ उनके द्वारा लिखित अनेक लोकप्रिय ग़ज़ल संग्रहों की परम्परा में एक नया अध्याय आपके समक्ष प्रस्तुत है,
------जिसमें एक संपन्न कवि की प्रतिभा, वैभव एवं चिन्तन को ग़ज़ल के धरातल पर शिद्दत से महसूस किया जा सकता है |
------डा श्यामगुप्त ने शुरू में ही ‘ग़ज़ल की बात’ में स्पष्ट रूप से लिखा है की काफिया, रदीफ़, गैर–रदीफ़ ग़ज़ल, कसीदा और ग़ज़ल का अर्थ क्या होता है |
------ग़ज़ल की परम्परा और इतिहास पर उनका ये तुलनात्मक लेख उनकी विद्वता का परिचायक है | वह लिखते हैं---
‘मतला बगैर हो ग़ज़ल, हो रदीफ़ भी नहीं ,
यह तो ग़ज़ल नहीं, ये कोइ वाकया नहीं |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त अन्य ख़ूबसूरत शेर पेश करते हुए लिखते हैं—
यह तो ग़ज़ल नहीं, ये कोइ वाकया नहीं |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त अन्य ख़ूबसूरत शेर पेश करते हुए लिखते हैं—
‘उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है,
दरो-दीवार जो मैंने ही बनाई है |’
दरो-दीवार जो मैंने ही बनाई है |’
‘इस सूरतो रंग का क्या फ़ायदा’ श्याम,
जो मन नहीं पीर जमाने की समाई है |’
जो मन नहीं पीर जमाने की समाई है |’
--------इसी तरह वह छोटी बहर में बहुत आसान ग़ज़ल ‘खुशी लुटाकर खुश ‘ में इस तरह के शेर प्रस्तुत करते हैं जो दिलों को मोह लेने का दम रखते हैं, जैसे ---
देख मुझको जला होगा,
वो कोइ दिलजला होगा |
देख मुझको जला होगा,
वो कोइ दिलजला होगा |
गज़ब हैं श्याम की गज़लें,
कोइ तो मामिला होगा | ----तथा----
कोइ तो मामिला होगा | ----तथा----
‘कोई गले लगा कर खुश,
कोई हमें सताकर खुश |
कोई हमें सताकर खुश |
कोई सबकुछ पाकर खुश,
श्याम तो खुशी लुटाकर खुश |’
\
गजल ‘आज आदमी ‘ में वह इस तरह मुखर होते हैं जैसे वक्त की सचाई बयां कर रहे हों ----
‘अब आदमी के सर पे बैठा आज आदमी,
छत अपने सर की ढूंढता आज आदमी |
श्याम तो खुशी लुटाकर खुश |’
\
गजल ‘आज आदमी ‘ में वह इस तरह मुखर होते हैं जैसे वक्त की सचाई बयां कर रहे हों ----
‘अब आदमी के सर पे बैठा आज आदमी,
छत अपने सर की ढूंढता आज आदमी |
हर आदमी है त्रस्त मगर होंठ बंद हैं,
अपने ही मकड़जाल बंधा आज आदमी |
\
चूंकि डा श्यामगुप्त स्वयं में कलम व कलाम के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं इसलिए वह ‘कविता–कामिनी’ में लिखते हैं---
अपने ही मकड़जाल बंधा आज आदमी |
\
चूंकि डा श्यामगुप्त स्वयं में कलम व कलाम के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं इसलिए वह ‘कविता–कामिनी’ में लिखते हैं---
‘किस दिल में कविता-कामिनी का राज नहीं है |
है बात और काव्य जो दिलसाज नहीं है |’
है बात और काव्य जो दिलसाज नहीं है |’
कवि बादशाह है सदा अपने कलाम का ,
है बात और उसके सर पे ताज नहीं है |’
\
डा श्यामगुप्त को उर्दू ग़ज़ल के बुनियादी उसूल अच्छी तरह मालूम हैं तभी वह मतला और मख्ता भी जानते हैं और काफिया रदीफ़ भी |
-------उन्होंने अपनी शायरी में जिन्हें अच्छी तरह बरता भी है | वह कहते हैं---
है बात और उसके सर पे ताज नहीं है |’
\
डा श्यामगुप्त को उर्दू ग़ज़ल के बुनियादी उसूल अच्छी तरह मालूम हैं तभी वह मतला और मख्ता भी जानते हैं और काफिया रदीफ़ भी |
-------उन्होंने अपनी शायरी में जिन्हें अच्छी तरह बरता भी है | वह कहते हैं---
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है ,
हो काफिया ही जो नहीं, बेचारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं, बेचारी ग़ज़ल होती है |
हर शेर एक भाव हो वो जारी गजल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है || ----एवं—
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है || ----एवं—
कुछ तुम रुको कुछ हम रुकें चलती रहे ये ज़िंदगी |
कुझ तुम झुको कुछ हम झुकें ढलती रहे ये ज़िंदगी |
कुझ तुम झुको कुछ हम झुकें ढलती रहे ये ज़िंदगी |
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें सुनती रहे ये ज़िंदगी ,|
कुछ तुम सुनो कुछ हम सुनें कहती रहे ये ज़िंदगी |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त के इस नए ग़ज़ल संग्रह ‘पीर ज़माने की; में ऐसी बेशुमार गज़लें मौजूद हैं जिसमें दो पंक्तियों की शायरी के नियमों में बंधी हुई जो गज़लें देखी हैं वह भाव और विचारों से परिपूर्ण हैं,
------- बल्कि एसी ही शायरी को ग़ज़ल कहते हैं और शायरी में गजलों को मालिका कहा जाता है |
--------वह शायरी जिसमें सुन्दरता हो, तुकांत, लय, गति, भाव, विषय और प्रवाह हो जिसे पढ़ते पढ़ते शायरी के सागर में डूबने का ऐहसास, वादियों में घूमने का पुरमस्त कैफ, जवान और वयान की नुदरत साफ़ व शफ्फाफ़ नज़र आती हो |
-------डा श्यामगुप्त ऐसी ही शायरी के लिए जाने जाते हैं | मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस नए संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करता हूँ |
--- डा सुलतान शाकिर हाशमी
पूर्व सलाहकार सदस्य, योजना आयोग, भारत सरकार
मो. ८०९०३०१४७१ ..
कुछ तुम सुनो कुछ हम सुनें कहती रहे ये ज़िंदगी |
\
इसी तरह डा श्यामगुप्त के इस नए ग़ज़ल संग्रह ‘पीर ज़माने की; में ऐसी बेशुमार गज़लें मौजूद हैं जिसमें दो पंक्तियों की शायरी के नियमों में बंधी हुई जो गज़लें देखी हैं वह भाव और विचारों से परिपूर्ण हैं,
------- बल्कि एसी ही शायरी को ग़ज़ल कहते हैं और शायरी में गजलों को मालिका कहा जाता है |
--------वह शायरी जिसमें सुन्दरता हो, तुकांत, लय, गति, भाव, विषय और प्रवाह हो जिसे पढ़ते पढ़ते शायरी के सागर में डूबने का ऐहसास, वादियों में घूमने का पुरमस्त कैफ, जवान और वयान की नुदरत साफ़ व शफ्फाफ़ नज़र आती हो |
-------डा श्यामगुप्त ऐसी ही शायरी के लिए जाने जाते हैं | मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस नए संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करता हूँ |
--- डा सुलतान शाकिर हाशमी
पूर्व सलाहकार सदस्य, योजना आयोग, भारत सरकार
मो. ८०९०३०१४७१ ..
------क्रमश --आगे --
प्रस्तावना ------शनिवार, 13 अक्तूबर 2018
पिता ...डा श्याम गुप्त
पिता
=====
एक पिता
झेलता है कितने झंझावात,
संसार के द्वेष-द्वन्द्व, छल-छंद;
भरने हेतु
समाज के सरोकार |
करने हेतु,
सात बचनों की पूर्ति
परिवार की आशाओं
पत्नी की इच्छाओं,
संतान की सुख अभिलाषाओं
व उनका भविष्य संवारने,
के लिए खटता है दिन-रात चुपचाप ,
बिना किसी शिकायत के, संताप के |
जीवन के स्वर्णिम पल-छिन,
युवावस्था के सुहाने दिन
उड़ जाते हैं न जाने कब
अधिकाधिक कमाने में,
आश्रितों को आनंद प्रदान हेतु
करता है सर्वस्व न्योछावर,
बनकर एक पुत्र, भाई, पति, पिता |
खुश होता है पिता,
सफल हुआ उसका श्रम, त्याग
उसकी शिक्षा |
बच्चे जब बड़े होकर ,
जाते हैं देश-विदेश, उच्च शिक्षा हेतु
बनाते हैं अपना भविष्य,
सजाते हैं अपना स्वयं का संसार |
पर जब वे,
अपनी सभ्यता, संस्कृति को भुलाकर ,
पाश्चात्य रंग में रंग जाते हैं ।
विस्मृत कर देते हैं,
परिवार को, माता-पिता को;
उस पिता को जिसने
उसे जीवन का अर्थ दिया
जीवन जीने का अर्थ दिया
जीवन जीने का सामर्थ्य दिया ,
तब उसकी आन्तरिक पीड़ा को समझना,
अनुभव करना
किसके वश के बात है ?
चित्र-गूगल साभार
बुधवार, 10 अक्तूबर 2018
मी टू----- फिर नक़ल -----डा श्याम गुप्त
मी टू-----
===========
------जबसे हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ी राज हुआ हम भारतीय अंग्रेजों के गुलाम हुए, गुलामी की आदत सी होगयी---अर्थात हर बात में उन्हीं की नक़ल ---- चाहे वह हिन्दी की बात हो, भारतीय संस्कृति की बात हो या कुछ और----
----अब जबसे अमेरिका की महिलायें 'मी टू' कह कर अपने स्वार्थवश , अपने लाभ के लिए किये गए पापों को, सारा सुख भोग लेने के बाद मुद्दतों बाद प्रसिद्द पुरुषों पर डालने में लगीं है ------हमारी भारतीय महिलायें भी --हम क्यों पीछे --के भाव नक़ल मारने में लगीं हैं|
\
---- प्रश्न है कि आखिर उसी समय ये महिलायें क्यों नहीं शोर मचातीं जब उनका शोषण किया जाता है --
----क्योंकि वे स्वयं लाभ की स्थिति में होती हैं , क्या आर्थिक, भौतिक, नौकरी का, धंधे का लाभ इतना महत्वपूर्ण है कि शोषण करवाते रहना आवश्यक है | यह स्वयं का स्वार्थ ही है ---महिलायें पहले तो स्वयं के स्वार्थ हेतु स्वयं को चारा बनाकर पेश करती हैं, जब मतलब निकल जाता है एवं उनका बाज़ार गिरने लगता है तो लाइम लाईट में आने के लिए आरोप लगाने लगती हैं |
\
----ऐसा कौन सा समाज, देश है जिसमें स्त्रियाँ ,महिमा मंडित पुरुषों के आगे-पीछे नहीं दौड़तीं, स्व-लाभ हेतु | हर युग में यह होता आया है परन्तु स्त्रियाँ व पुरुष अपने कृत्यों का बोझा ढोने से कतराते नहीं थे |
---- परन्तु आज यह नया चलन प्रारम्भ हुआ है , काम निकल जाने पर दोषारोपण का |
\
-----कब स्त्री इतनी, मजबूत, हिम्मतवर होगी कि किसी को अपना शोषण न करने दे चाहे कितना भी बड़ा लालच, स्वार्थ क्यों न हो | और 'मी टू' कहने, करने की आवश्यकता न रहे |
===========
------जबसे हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ी राज हुआ हम भारतीय अंग्रेजों के गुलाम हुए, गुलामी की आदत सी होगयी---अर्थात हर बात में उन्हीं की नक़ल ---- चाहे वह हिन्दी की बात हो, भारतीय संस्कृति की बात हो या कुछ और----
----अब जबसे अमेरिका की महिलायें 'मी टू' कह कर अपने स्वार्थवश , अपने लाभ के लिए किये गए पापों को, सारा सुख भोग लेने के बाद मुद्दतों बाद प्रसिद्द पुरुषों पर डालने में लगीं है ------हमारी भारतीय महिलायें भी --हम क्यों पीछे --के भाव नक़ल मारने में लगीं हैं|
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---- प्रश्न है कि आखिर उसी समय ये महिलायें क्यों नहीं शोर मचातीं जब उनका शोषण किया जाता है --
----क्योंकि वे स्वयं लाभ की स्थिति में होती हैं , क्या आर्थिक, भौतिक, नौकरी का, धंधे का लाभ इतना महत्वपूर्ण है कि शोषण करवाते रहना आवश्यक है | यह स्वयं का स्वार्थ ही है ---महिलायें पहले तो स्वयं के स्वार्थ हेतु स्वयं को चारा बनाकर पेश करती हैं, जब मतलब निकल जाता है एवं उनका बाज़ार गिरने लगता है तो लाइम लाईट में आने के लिए आरोप लगाने लगती हैं |
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----ऐसा कौन सा समाज, देश है जिसमें स्त्रियाँ ,महिमा मंडित पुरुषों के आगे-पीछे नहीं दौड़तीं, स्व-लाभ हेतु | हर युग में यह होता आया है परन्तु स्त्रियाँ व पुरुष अपने कृत्यों का बोझा ढोने से कतराते नहीं थे |
---- परन्तु आज यह नया चलन प्रारम्भ हुआ है , काम निकल जाने पर दोषारोपण का |
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-----कब स्त्री इतनी, मजबूत, हिम्मतवर होगी कि किसी को अपना शोषण न करने दे चाहे कितना भी बड़ा लालच, स्वार्थ क्यों न हो | और 'मी टू' कहने, करने की आवश्यकता न रहे |
सोमवार, 27 अगस्त 2018
एक और शम्बूक कथा---- डा श्याम गुप्त
एक और शम्बूक कथा----
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भारतीय शास्त्रों की महत्ता उनमें स्थित मानव के सभी आचरण व दुराचरणों का सत्य सत्य ज्यों का त्यों वर्णन एवं समाधान हेतु सदाचरण प्रस्तुति के कारण ही है, जिसके कारण यह देश-समाज उत्तरोत्तर अपनी कमियों पर अंकुश लगा कर उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर चल कर विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बन सका |
-------प्रारंभ से ही इस संस्कृति के विरुद्ध अनाचरण युत अप-संस्कृति के भाव उपस्थित होते आये हैं, जो असुर कथाएं, शम्बूक कथा, रावण प्रसंग आदि विभिन्न रूप में सर उठाती रही हैं|
\
एक ताजा आधुनिक शम्बूक कथा जैसा प्रसंग, प्रस्तुत चित्र में आलेख देखिये |
------ये महाशय नेहरू के पश्चिमी ज्ञानोदय से प्रेरणा लेते हैं एवं उनकी सामान्य पुस्तक भारत एक खोज को साइंटिफिक टेम्पर बताते हैं |
------ इनके अनुसार वैदिक साइंस व वेदों में स्थित समस्त ज्ञान अंधविश्वास और अवैज्ञानिक है | पता नहीं ये देश की किस वास्तविक संस्कृति की बात करते हैं | यही शम्बूक –भाव है |
----इन्हें अत्याधुनिक खोजों , भारतीय वैदिक व शास्त्रीय ज्ञान के आधुनिक सन्दर्भों का कोइ न ज्ञान है न संज्ञान |
\
शम्बूक एक वेद विरुद्ध, भारतीय-अध्यात्मिक जीवन की धारा के विरुद्ध, धर्म विरुद्ध अति-भौतिक विचारधारा का पोषक था | अनैतिक अविचारशील विचारधारा का पोषण होने से पूर्व ही उसे जड़ से उखाड़ देना चाहिए | यही शम्बूक की कथा का अर्थार्थ है |
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आज भी ऐसी विचारा धाराएं अनधिकृत प्रश्रय पा रही हैं | आवश्यकता है इन्हें रोकने की | आगे न बढ़ने देने की |
----- पर आज राम नहीं हैं |
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भारतीय शास्त्रों की महत्ता उनमें स्थित मानव के सभी आचरण व दुराचरणों का सत्य सत्य ज्यों का त्यों वर्णन एवं समाधान हेतु सदाचरण प्रस्तुति के कारण ही है, जिसके कारण यह देश-समाज उत्तरोत्तर अपनी कमियों पर अंकुश लगा कर उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर चल कर विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बन सका |
-------प्रारंभ से ही इस संस्कृति के विरुद्ध अनाचरण युत अप-संस्कृति के भाव उपस्थित होते आये हैं, जो असुर कथाएं, शम्बूक कथा, रावण प्रसंग आदि विभिन्न रूप में सर उठाती रही हैं|
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एक ताजा आधुनिक शम्बूक कथा जैसा प्रसंग, प्रस्तुत चित्र में आलेख देखिये |
------ये महाशय नेहरू के पश्चिमी ज्ञानोदय से प्रेरणा लेते हैं एवं उनकी सामान्य पुस्तक भारत एक खोज को साइंटिफिक टेम्पर बताते हैं |
------ इनके अनुसार वैदिक साइंस व वेदों में स्थित समस्त ज्ञान अंधविश्वास और अवैज्ञानिक है | पता नहीं ये देश की किस वास्तविक संस्कृति की बात करते हैं | यही शम्बूक –भाव है |
----इन्हें अत्याधुनिक खोजों , भारतीय वैदिक व शास्त्रीय ज्ञान के आधुनिक सन्दर्भों का कोइ न ज्ञान है न संज्ञान |
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शम्बूक एक वेद विरुद्ध, भारतीय-अध्यात्मिक जीवन की धारा के विरुद्ध, धर्म विरुद्ध अति-भौतिक विचारधारा का पोषक था | अनैतिक अविचारशील विचारधारा का पोषण होने से पूर्व ही उसे जड़ से उखाड़ देना चाहिए | यही शम्बूक की कथा का अर्थार्थ है |
\
आज भी ऐसी विचारा धाराएं अनधिकृत प्रश्रय पा रही हैं | आवश्यकता है इन्हें रोकने की | आगे न बढ़ने देने की |
----- पर आज राम नहीं हैं |
गुरुवार, 9 अगस्त 2018
बुराई की उत्पत्ति एवं सार्वकालीन उपस्थिति ---डा श्याम गुप्त
बुराई की उत्पत्ति एवं सार्वकालीन उपस्थिति
अभी फेसबुक पर एक टिप्पणी
थी कि ‘काश, इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो
जाये तो समस्या कहाँ है?’---प्रायः सदा से
ही बार बार यह कहा सुना जाता रहा है |
इस
सम्बन्ध में जैसा सभी कहते हैं, कहाजाता है कि बुराई अधिक तेजी से फैलती है |
क्योंकि हम स्वयं की बुराई नहीं देखते अपितु दूसरे की बुराई अधिक देखते हैं –
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल देखा आपना, मुझसा बुरा न कोय |
तो
फिर बुराई सदा के लिए कैसे समाप्त होसकती है | एक पहलू यह भी है कि बुराई होगी ही
नहीं तो अच्छाई की पहचान कैसे होगी |
वस्तुतः
बुराई के सार्वस्थानिक, सार्वकालिक उपस्थिति का मूल कारण है कि जब ब्रह्मा सृष्टि
सृजन कर रहे थे उन्हें नींद आगई और इसी असावधानीवश अंधकारमय सृष्टि की उत्पत्ति
होगई जो विभिन्न बुराइयों का प्रतीक बनी | |
ब्रह्मा द्वारा मानव की कोटियों में की गयी सृष्टि----
१.-ब्रह्मा के
तमभाव देह से---आसुरी प्रव्रत्ति, इस देह के त्याग से रात्रि व अज्ञान भाव की
उत्पत्ति हुई ।
२.सोते समय सृष्टि—तिर्यक सृष्टि —जो अज्ञानी,
भोगी, इच्छा-वशी, क्रोधी, विवेक शून्य, भ्रष्ट आचरण
वाले एवं पशु-पक्षी जो पुरुषार्थ के सर्वथा
अयोग्य थे ।
३.अन्य विशिष्ट
कोटियां-- अन्धेरे में व क्रोध में -राक्षस, यक्ष आदि सदा भूखी सृष्टि --
अब जो सृष्टिकर्ता
की सृष्टि है उसकी सदा के लिए समाप्ति कैसे होसकती है |
इस प्रकार मानव रक्त में आसुरी भाव
अर्थात अति-भौतिकता जनित सुखाभिलाषा के प्रति आकर्षण के कारण विद्रोह करने की
क्षमता पुराकाल से ही चली आ रही है,
यही आसुरी भाव प्रत्येक काल में पुनः पुनः सिर उठाता रहता है ।--हर
युग में, –और कृष्ण
को कहना पडा--
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति
भारत |...
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे
युगे |
इसका अर्थ यह
नहीं कि हम स्वयं बुराई उन्मूलन हेतु कुछ करें ही नहीं, कृष्ण की ही प्रतीक्षा
करते रहें | हमें तो नियमित रूप से बुराई के विरुद्ध युद्ध लड़ते ही रहना चाहिए |
यदि एक बुरे को भी आपकी बात अच्छी लग गयी तो आपका कर्तव्य पूरा हुआ |
वैज्ञानिक
खोज---
परन्तु प्रकृति माता जो अपने पुत्र, मानव
की भांति क्रूर नहीं होसकती एवम उसे अपनी आज्ञा पर अपने अनुकूलन में सम्यग व्यवहार
से चलाने का यत्न करती आई है, ने कदम बढाया है। यह कदम मानव मस्तिष्क में एक एसे
केन्द्र को विकसित करना है जो मानव को आज से भी अधिक विवेकशील सामाज़िक, सच्चरित्र, संयमित, विचारवान,
संस्कारशील व्यवहारशील व सही अर्थों में महामानव बनायेगा। वह
केन्द्र है—मानव मस्तिष्क के प्रमस्तिष्क में विकसित भाग –बेसल नीओ कार्टेक्स (basal neo cortex)|
वैग्यानिकों प्रो.ह्यूगो स्पेत्ज़ व मस्तिष्क विज्ञानी वान इलिओनाओ के अध्ययनो के अनुसार पता चलता है कि मानव मस्तिष्क भी अभी अपूर्ण है तथा मानव के प्रमस्तिष्क के आधार भाग में एक नवीन भाग ( केन्द्र ) विकसित होरहा है, जो मानव द्वारा प्राप्त उच्च मानसिक अनुभवों, संवेगों, विचारों व कार्यों का आधार होगा।
यह नवीन विकासमान भाग प्रमस्तिष्क के अग्र व
टेम्पोरल भागों के नीचे कंकाल बक्स( क्रेनियम-cranium) के आधार पर स्थित है। इसी को बेसल नीओ कार्टेक्स ( basal
neo cortex) कहते हैं। प्राइमरी होमो सेपियन्स (प्रीमिटिव मानव) में
यह भाग विकास की कडी के अन्तिम सोपान पर ही दिखाई देता है व भ्रूण के विकास की
अन्तिम अवस्था मेंबनता है। बेसल नीओ कार्टेक्स के दोनों भागों को निकाल देने या
छेड देने पर केवल मनुष्य के चरित्र व मानसिक विकास पर प्रभाव पडता है, अन्य किसी अंग व इन्द्रिय पर नहीं । अतः यह चरित्र व भावना का केन्द्र
है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भविष्य में
इस नवीन केन्द्र के और अधिकाधिक विकसित होने से एक महामानव ( यदि हम स्वयम मानव
बने रहें तो) का विकास होगा ( इसे महर्षि अरविन्द के अति-मानस की विचार धारा से
तादाम्य किया जा सकता है ); जो चरित्र व व्यक्तित्व मे
मानवीय कमज़ोरियों से ऊपर होगा, आत्म संयम व मानवीयता को समझेगा, मानवीय व सामाज़िक संबंधों मे कुशल होगा और भविष्य में मानवीय भावनाओं के
विकास के महत्व को समझेगा।
और हमारा स्वप्न सच हो सके कि---- ‘काश, इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो
जाये ...|
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