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रविवार, 31 मार्च 2019

केदारनाथ जलप्रलय ---माता प्रकृति का श्राप एवं जगत पिता द्वारा दिया गया दंड ---डा श्याम गुप्त



केदारनाथ जलप्रलय ---माता प्रकृति का श्राप एवं जगत पिता द्वारा दिया गया दंड ---




      वह सर्वश्रेष्ठ, जगतपिता अपनी सुन्दरतम सृष्टि, प्रकृति के विनाश के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना, अपने पुत्र मानव को भी नहीं छोड़ता उसके अपराधों का दंड देने से, जब वे प्रकृति के साथ ही मानवता एवं स्वयं के ही विनाश का कारण बन रहे होते हैं, अपने लोभ, लालच एवं दुष्प्रवृत्तियों द्वारा ईश्वरीय नियमों के विपरीत कृतित्वों के कारण | 
      तभी तो वह परमात्मा है, पिता है, न्यायकारी पुरुष है | और उसके दंड का स्वरूप मानव जाति के भयावह विनाश के रूप में दृश्यमान होता है,समय-समय पर, जिसे हम जल-प्रलय, महा जल-प्रलय के रूप में जानते हैं |

         विश्व की लगभग सभी देश-संस्कृतियों के पौराणिक-इतिहास में वर्णित,हिंदू, ग्रीक, बेबीलोनियन, ईसाई, मुस्लिम, माया अथवा अन्य देशों एवं विश्व भर के कबीलों व जनजातियों की कथाओं में वर्णित महा जल-प्रलय में समस्त विश्व के विनाश की घटना इसी दंड का कारण व उदाहरण है |

    इस प्रक्रिया में वह दयालु जगत पिता किसी एक ऐसे व्यक्ति का चयन करता है जो सज्जन व भलाई पर चलने वाला होता है, चाहे वह मनु हो या नोआ या नूह, उतनापिष्टिम, ड्युकेल्यन | 

२०१३ से पहले  अतिक्रमण से ग्रस्त केदारनाथ ..व जलप्रलय के बाद 


महाजलप्रलय 

महा जलप्रलय का दृश्य 


केदारनाथ २०१४ के बाद --पुनः सृजन 


एक और मनु ---पुनः सृजन 

           परमात्मा उन्हें निर्दिष्ट करता है एक बड़ी नौका या बक्सा या बेड़ा बनाने को ताकि वह स्वयं जीवित रह सके एवं उसमें तमाम प्रकृति
, प्राणियों के संवर्धन के लिए बीज रूप रखे जा सकें, पुनर्सृष्टि हेतु ताकि मानव जाति व प्रकृति का समूल उच्छेद न हो पाए |

       जीवित बचने पर व पुन: सृष्टि पर मानव यह वचन देता है कि वह अब कभी ईश्वर के रास्ते से नहीं हटेगा | बाइबिल कथा के अनुसार ईश्वर भी बचन देता है कि वह कभी विनाश नहीं करेगा जिसके प्रमाण स्वरुप वह इन्द्रधनुष की रचना करता है, ताकि मानव को भी अपना बचन याद रहे |

      केदारनाथ जलप्रलय में महाविनाश को देखते हुए लगता है कि ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी थी | परन्तु क्यों …? आखिर क्यों वह दयालु मानव के इतने भीषण व क्रूर विनाश का कारण बना | निश्चय ही मानव ने भी अपना बचन नहीं निभाया |

       पावन भूमि पर प्रकृति का सौन्दर्य भुलाकर अनैतिक, गैर कानूनी खनन, गैर कानूनी तौर पर बनाए गए भवन, बिल्डिंगें, कौमर्सियल-काम्प्लेक्स, मल्टीस्टोरी भवन निर्माण, जंगलों का विनाश, वन प्राणियों प्राकृतिक आवास को उजाड़ना, आदि के रूप में नैतिक मूल्यों से गिरे हुए 
मानव ने अपने ईश्वर को भुलाकर अनैतिक

 विचारों, कृत्यों, दुष्कृत्यों द्वारा अपना बचन तोड़ा | जिनके ऊपर


 विभिन्न दायित्व थे उन्होंने अपने दायित्व नहीं निभाये |

     अति-आधुनिकता, अंधाधुंध अति-विकास के लिए लोभ, लालच अनैतिक कृत्यों से मानव ने प्रकृति के नियमों का उल्लंघन किया और उसके विनाश का कारण बना | अतः प्रकृति ने उसे अपने घुटनों पर लाना श्रेयस्कर समझा | ईश्वरेच्छा और प्रकृति के भीषण रूप की एक और झलक, केदारनाथ की जलप्रलय के रूप में प्रस्तुत हुई |

        यदि हम अब भी न जागे एवं समाज, राष्ट्र-धर्म, मानवता व आचरण के प्रति अपने दूषित विचारों, प्रकृति व पर्यावरण विरोधी अनैतिक कृतित्वों, से बाज न आये तो शायद उन्हीं पौराणिक महाजलप्रलय के अनुरूप एक और महाविनाश को आमंत्रण देरहे होंगें | हम समय रहते संभल जाएँ, पता नहीं इस बार कोइ मनु, नोआ या नूह मिलेगा भी या नहीं |

       पिछले पापों के घट भर जाने के कारण केदारनाथ महाजल-प्रलय त्रासदी १६ जून,२०१३ में 

घटित हुई और उस..... परमपिता ने इस बार भी क्या किसी सज्जन और 

भलाई की राह चलने वाले व्यक्ति को चुना है, क्या परिवर्तन हुए 

२०१३ के पश्चात भारत व विश्व में, भारत से कौन सी विशिष्ट

शख्सियत उभर कर आई है विश्व पटल पर सन २०१४ में ? 

      आप स्वयं ही सोचें व निर्णय करें |
                                                                  

सोमवार, 25 मार्च 2019

एक और दाशराज्ञ युद्ध --और आज की भारतीय राजनैतिक स्थिति---डा श्याम गुप्त

दाशराज्ञ युद्ध – और आज की राजनैतिक स्थिति –
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बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि राम-रावण युद्ध एवं महाभारत युद्ध के मध्य के काल में एक भीषण युद्ध हुआ था जिससे भारत की किस्मत बदल गई। 
--------महाभारत युद्ध के लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व त्रेतायुग में हुआ दशराज युद्ध या #दाशराज्ञयुद्ध | इस युद्ध में #दसकबीलों के #संगठन ने राजा सुदास के विरुद्ध युद्ध किया था, यद्यपि विजय राजा सुदास की हुई एवं #संगठन को #पराजय का मुख देखना पडा |

---इतिहास स्वयं को दोहराता है----यही स्थिति आज भी है | तमाम वैचारिक विभिन्नता वाले दल एकत्र होकर एक दल के प्रमुख को हटाने हेतु युद्धरत हैं | 
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दाशराज्ञ युद्ध आर्यावर्त का सर्वप्रथम भीषण युद्ध था जो आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के ही बीच हुआ था। प्रकारांतर से इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान हैं। इस युद्ध के परिणाम स्वरुप ही मानव के विभिन्न कबीले भारत एवं भारतेतर दूरस्थ क्षेत्रों में फैले व फैलते गए | ऋग्वेद के सातवें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास हुआ था। 
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उन दिनों पूरा आर्यावर्त कई टुकड़ों में बंटा था और उस पर विभिन्न जातियों व कबीलों का शासन था। भरत जाति के कबीले के राजा सुदास थे। उनकी लड़ाई पुरु, यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्मु, अलिन, पक्थ, भलान, शिव एवं विषाणिन कबीले के लोगों से हुई थी। दोनों ही हिंद-आर्यों के 'भरत' नामक समुदाय से संबंध रखते थे। 
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सुदास के विरुद्ध दस राजा (कबीले-जिनमें कुछ अनार्य कबीले भी थे ) युद्ध लड़ रहे थे जिनका नेतृत्व पुरु कबीला के राजा संवरण कर रहे थे, जिनके सैन्य सलाहकार ऋषि विश्वामित्र ने पुरु, यदु, तुर्वश, अनु और द्रुह्मु तथा पांच अन्य छोटे कबीले अलिन, पक्थ, भलान, शिव एवं विषाणिन आदि दस राजाओं के एक कबीलाई संघ का गठन तैयार किया जो ईरान, से लेकर अफगानिस्तान, बोलन दर्रे, गांधार व रावी नदी तक के क्षेत्र में निवास करते थे | 
------एक ओर वेद पर आधारित भेदभाव रहित वर्ण व्यवस्था का विरोध करने वाले विश्वामित्र के सैनिक थे तो दूसरी ओर गुरु वशिष्ठ की सेना के प्रमुख राजा सुदास थे। 
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इस युद्ध में इंद्र और ##वशिष्ट की संयुक्त सेना के हाथों #विश्वामित्र की सेना को पराजय का मुंह देखना पड़ा। सुदास के भरतों की विजय हुई और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के आर्यावर्त और आर्यों पर उनका अधिकार स्थापित हो गया। 
--------इस देश का नाम भरतखंड एवं इस क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था परन्तु इस युद्ध के कारण आगे चलकर पूरे देश का नाम ही आर्यावर्त की जगह '#भारत' पड़ गया। जो आज तक कायम है |


  

बुधवार, 13 मार्च 2019

देश की जनता होशियार -डा श्याम गुप्त

देश की जनता होशियार -डा श्याम गुप्त

                           


देश की जनता होशियार ------एक -- राष्ट्र बचे या हम रोटी कपड़ा मकान में लगे रहें ----
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बिके हुए, भटके हुए, भ्रमित लोग व मीडिया -कोइ घंटी बजाएगा, कोइ विशिष्ट प्रोग्राम चलाएगा , कोइ अन्य प्रोग्राम ---आपको भूख व गरीबी में अटकाएंगे , कोइ मुफ्त माल १५ लाख में ....कोइ रोजगार को राष्ट्र से ऊपर रखेगा - व्यग्तिगत सवा-लाभ हेतु ,देश राष्ट्र के विरुद्ध भड़कायेगा ...
---- अरे ! जब राष्ट्र ही नहीं रहेगा तो -तो कहाँ रहेगा रोजगार, गरीबी-गरीब,, आप लोग ही कहाँ रहेंगे , कहाँ का रोटी कपड़ा और मकान ----सब गुलाम होंगें , जूते खाते हुए .....
---याद करें राणाप्रताप ने घास की रोटी खाकर राष्ट्रवाद को नहीं छोड़ा...
--- आवश्यकतावश शरीर बचाने हेतु कुछ भी खाया जासकता है ...व्रत भी तोड़ा जा सकता है , जब शरीर ही नहीं रहेगा तो कैसा मलाई खाना, कैसे लड़ेंगे ---
----व्यर्थ के छोटे छोटे मुद्दों पर न भटकिये -----राष्ट्र का हित सोचिये....राष्ट्रवाद से देश से बड़ा क्या होसकता है-


--- भोजन -, सोना, मैथुन ..स्व-रक्षा -तो पशु भी कर लेते हैं , केवल इसी में रत रहना पशु वृत्ति है -----मानव हैं तो देश -राष्ट्र , समाज-संस्कृति की बात सोचें 
-----देश रहेगा तो हम रहेंगे...समाज रहेगा, भारतीयता रहेगी , संस्कृति रहेगी-
----सोचें समझें , उचित उम्मीदवार को वोट दें--

------वोट अवश्य दें 
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देश की जनता होशियार ------ दो--------माना की हमें गुलामी में रहने की बुरी आदत है |
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आपने अजीत डोवाल का मर्मभेदी कथन सुना होगा----जब अपहृत विमान को सकुशल छुड़वा कर लाया गया तो उन्होंने भारतमाता की जय का नारा लगाने को कहा --किसी भी यात्री ने नारा नहीं लगाया ----यह है हमारी राष्ट्र के प्रति जागरूकता---- स्वलाभ हित हमें राष्ट्र की कोइ चिंता नहीं है ---
-----अब तो जागें स्व-लाभ के छोटे छोटे मुद्दों को छोड़कर --राष्ट्रवाद की अलख जगाएं --

बुरी आदत है ----
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माना की हमें कदमों पे झुकने की बुरी आदत है
नक़्शे कदम पे गैरों के चलने की बुरी आदत है |
रही है अपनी मेधा हज़ारों साल तक बंधक,
माना की हमें गुलामी में रहने की बुरी आदत है |
सिर्फ एक यही वज़ह नहीं कि पिछलग्गू हैं हम,
अपनी संस्कृति को भूलने की बुरी आदत है |
अपनी प्राचीन दीवारों से सबक लेकर हमें,
नयी दीवारें खडी न करने की बुरी आदत है |
अपनी संस्कृति के चन्दन की सुगंध भूल,
मिलावटी गंध पे लुटने की बुरी आदत है |
बहुत खो चुके, अब तो समझें कि ज़िंदा कौम हैं हम,
जिसको देश की मिट्टी पे मिटने की बुरी आदत है |
दुनिया फिर चलेगी तेरे नक़्शे कदम पे श्याम,
तुझे नवसृजन के गीत गढ़ने की बुरी आदत है ||

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देश की जनता होशियार -तीन--
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----आठ मिनट का भाषण ---अधिक बोलने को कुछ है ही कहाँ , इतना ज्ञान ही कहाँ है , तथ्यों का या देश की स्थिति का भान ही कहाँ है ----
----सत्तर वर्ष से देश आतंकवाद, भ्रष्टाचार , लूट-खसोट द्वारा, अपराध - अशांति की आग में, घिरा रहा तब प्रियंका गांधी को प्रेम की नफ़रत की बातें याद नहीं आईं-----आती भी कैसे इतिहास का किसे ध्यान-ज्ञान है ---फिर तब तो वे स्वयं लूट-खसोट, घुटालों के सुख में लिप्त थे, मस्त थे -----

  

गुरुवार, 7 मार्च 2019

स्व.ला. जगन्नाथ प्रसाद गुप्त स्मृति पुरस्कार -२०१९ ---डा श्याम गुप्त

प्रतिवर्ष एक युवा साहित्यकार को ,डा श्याम गुप्त द्वारा प्रदत्त --स्व.ला. जगन्नाथ प्रसाद गुप्त स्मृति पुरस्कार -२०१९ ---साहित्यकार श्रीमती अमिता सिंह को -----
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मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...