दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चलो गुरू के द्वार पर, गुरु का धाम विराट।
गुरू शिष्य के खोलता, सारे ज्ञान-कपाट।।
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इस अवसर पर कीजिए, गुरुसत्ता को याद।
गुरुओ को मत दीजिए, जीवन में अवसाद।।
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जो गुरु का आदर करे, वो है सच्चा शिष्य।
अनुकम्पा से गुरू की, उज्जवल बने भविष्य।।
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गुरू पूर्णिमा दिवस पर, मन को करो पवित्र।
नहीं पूजना चित्र को, पूजो मात्र चरित्र।।
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गुरुपूर्णिमा का दिवस, देता है सन्देश।
जीवन में धारण करो, गुरुओं के उपदेश।।
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खुला हुआ सबके लिए, विद्यालय का द्वार।
गुरु के चरणों में बहे, ज्ञानगंग की धार।।
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गुरूकुलों से है बनी, भारत की पहचान।
विद्या का मिलता जहाँ, सबको समुचित दान।।
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