श्याम स्मृति- ...पुराण कथाएं व मिथक ......
धर्म के तीन स्तर होते
हैं----१- तात्विक ज्ञान---(मेटाफिजिक्स )...२-नैतिक ज्ञान--(एथिक्स )...३-कर्मकांड (राइचुअल्स)....मूलतः कर्मकांडों का जो जन-व्यवहार के लिए होते हैं, जन
सामान्य के लिए...... उन्ही में अज्ञान ( तात्विक व नैतिक भाव लोप होने से ) से अतिरेकता
आजाने से वे आलोचना के आधार बन जाते हैं |
भारतीय पुराण कथाएं मूलतः कर्मकांड विभाग में आती
हैं ताकि जन-जन, जनसामान्य को ईश्वर, दर्शन, धर्म, ज्ञान व संसार-व्यवहार की बातें सामान्य जनभाषा
में बताई जा सकें |
जब भी कोई व्यवस्था या सभ्यता अत्यंत उन्नत होजाती है तो उसकी बातें, तथ्य व
कथ्य स्वतः ही सूत्र व कूट रूप में होने लगते हैं, संक्षिप्तता की आवश्यकतानुसार | आधुनिक उदाहरण लें जैसे--भारत के लिए शेर,आस्ट्रेलिया के लिए कंगारू कहना आज आम बात होगई है|
जब भी कोई व्यवस्था या सभ्यता अत्यंत उन्नत होजाती है तो उसकी बातें, तथ्य व
कथ्य स्वतः ही सूत्र व कूट रूप में होने लगते हैं, संक्षिप्तता की आवश्यकतानुसार | आधुनिक उदाहरण लें जैसे--भारत के लिए शेर,आस्ट्रेलिया के लिए कंगारू कहना आज आम बात होगई है|
भारतीय पुराण-कथाएं सदा अन्योक्ति, कूट
व सूत्र रूप में कही गयी हैं , परन्तु
उनके वास्तविक/तात्विक
अर्थ व्यवहारिक, नीति-परक व सामाजिक नीति व्यवस्था के होते है | अर्थ न
समझने के कारण लोग
उन्हें प्रायः कपोल-कल्पित कह कर उनका उपहास भी करते हैं और हिन्दू सनातन-धर्म के उपहास के लिए उदाहरण
भी | अंग्रेज़ी व पाश्चात्य संस्कृति व भाषाओं में पौराणिक कथाओं के लिए मिथ,
मिथक, मिथक-कथाएं आदि शब्दों का प्रयोग
भी इसी अज्ञानता का परिचायक है|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (23-04-2014) को जय माता दी बोल, हृदय नहिं हर्ष समाता; चर्चा मंच 1591 में अद्यतन लिंक पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी...
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