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सोमवार, 7 अप्रैल 2014

कारण कार्य व प्रभाव गीत.......कितने भाव मुखर हो उठते .. डा श्याम गुप्त...



       कारण कार्य व प्रभाव गीत --- -मेरे द्वारा नव-सृजित .....इस छः पंक्तियों के प्रत्येक पद या बंद के गीत में प्रथम दो पंक्तियों में मूल विषय-भाव के कार्य या कारण को दिया जाता है तत्पश्चात अन्य चार पंक्तियों में उसके प्रभाव का वर्णन किया जाता है | अंतिम पंक्ति प्रत्येक बंद में वही रहती है गीत की टेक की भांति | गीत के पदों या बन्दों की संख्या का कोई बंधन नहीं होता | प्रायः गीत के उसी मूल-भाव-कथ्यको विभिन्न बन्दों में पृथक-पृथक भाव-रस-निष्पत्ति द्वारा वर्णित किया जा सकता है | एक उदाहरण प्रस्तुत है –---

   कितने भाव मुखर हो उठते .....

ज्ञान दीप जब मन में जलता,
अंतस जगमग होजाता है |
            मिट जाता अज्ञान तमस सब,
            तन-मन ज्ञान दीप्त हो जाते |
            नव-विचार युत, नव-कृतित्व के,
            कितने भाव मुखर हो उठते ||

प्रीति-भाव जब अंतस उभरे,
द्वेष-द्वंद्व सब मिट जाता है |
           मधुभावों से पूर्ण ह्रदय हो,
           जीवन मधुघट भर जाता है |
           प्रेमिल तन-मन आनंद-रस के,
           कितने भाव मुखर हो उठते ||

मदमाती यौवन बेला में,
कोइ ह्रदय लूट लेजाता |
          आशा हर्ष अजाने भय युत,
           उर उमंग उल्लास उमड़ते |
           इन्द्रधनुष से विविध रंग के,
           कितने भाव मुखर हो उठते ||

सत्य न्याय अनुशासन महिमा,
जब जन-मन को भा जाती है |
          देश-भक्ति हो, मानव सेवा,
          युद्ध-भूमि हो, कर्म-क्षेत्र हो |
          राष्ट्र-धर्म पर मर मिटने के,
          कितने भाव मुखर हो उठते ||

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