कारण कार्य व प्रभाव गीत --- -मेरे द्वारा नव-सृजित .....इस छः पंक्तियों के प्रत्येक पद या बंद के गीत
में प्रथम दो पंक्तियों में मूल विषय-भाव के कार्य या कारण को दिया जाता है
तत्पश्चात अन्य चार पंक्तियों में उसके प्रभाव का वर्णन किया जाता है | अंतिम
पंक्ति प्रत्येक बंद में वही रहती है गीत की टेक की भांति | गीत के पदों या बन्दों
की संख्या का कोई बंधन नहीं होता | प्रायः गीत के उसी मूल-भाव-कथ्यको विभिन्न
बन्दों में पृथक-पृथक भाव-रस-निष्पत्ति द्वारा वर्णित किया जा सकता है | एक उदाहरण
प्रस्तुत है –---
कितने भाव मुखर हो उठते
.....
ज्ञान दीप जब मन में जलता,
अंतस जगमग होजाता है |
मिट जाता अज्ञान तमस सब,
तन-मन ज्ञान दीप्त हो जाते |
नव-विचार युत, नव-कृतित्व के,
कितने भाव मुखर हो उठते ||
प्रीति-भाव जब अंतस उभरे,
द्वेष-द्वंद्व सब मिट जाता
है |
मधुभावों से पूर्ण ह्रदय हो,
जीवन मधुघट भर जाता है |
प्रेमिल तन-मन आनंद-रस के,
कितने भाव मुखर हो उठते ||
मदमाती यौवन बेला में,
कोइ ह्रदय लूट लेजाता |
आशा हर्ष अजाने भय युत,
उर उमंग उल्लास उमड़ते |
इन्द्रधनुष से विविध रंग के,
कितने भाव मुखर हो उठते ||
सत्य न्याय अनुशासन महिमा,
जब जन-मन को भा जाती है |
देश-भक्ति हो, मानव सेवा,
युद्ध-भूमि हो, कर्म-क्षेत्र हो |
राष्ट्र-धर्म पर मर मिटने के,
कितने भाव मुखर हो उठते ||
dhanyvaad......
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