श्याम स्मृति- १७४.....पत्नी-सह-धर्मिणी..... डा श्याम गुप्त
श्याम स्मृति- १७४.....पत्नी-सह-धर्मिणी.....
पत्नी को सहकर्मिणी नहीं कहा गया, क्यों? स्त्री, सखी, प्रेमिका,
सहकर्मिणी हो सकती है, स्त्री माया रूप है, शक्ति-रूप, ऊर्जा-रूप वह
अक्रिय-क्रियाशील ( सामान्य-पेसिव ) पात्र, रोल अदा करे तभी उन्नति होती
है, जैसे वैदिक-पौराणिक काल में हुई |
------पत्नी
सह-धर्मिणी है, केवल सहकर्मिणी नहीं | हाँ, पुरुष के कार्य में यथासमय,
यथासंभव, यथाशक्ति सहकर्म-धर्म निभा सकती है | सह्कर्मिणी होने पर पुरुष
भटकता है और सभ्यता अवनति की ओर | अतः पत्नी को सहकर्म नहीं सहजीवन व्यतीत
करना है – सहधर्म |
------स्त्री-पुरुष
के साथ-साथ काम करने से उच्च विचार प्रश्रय नहीं पाते, व्यक्ति स्वतंत्र
नहीं सोच पाता, विचारों को केंद्रित नहीं कर पाता, हाँ भौतिक कर्मों व उनसे
सम्बंधित विचारों की बात पृथक है| |
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तभी तो पति-पत्नी सदा पृथक-पृथक शयन किया करते थे | राजा-रानियों के
पृथक-पृथक महल व कक्ष हुआ करते थे | सिर्फ मिलने की इच्छा होने पर ही वे एक
दूसरे के महल या कमरे में जाया करते थे | माया की नज़दीकी व्यक्ति को
भरमाती है, उच्च विचारों से दूर करती है |
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यूं तो कहा जाता है कि प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे नारी होती है, पर ये
क्यों नहीं कहा गया कि सफल नारी के पीछे पुरुष होता है |
------नारी की
तपस्या, त्याग, प्रेम, धैर्य, धरित्री जैसे महान गुणों व व्यक्तित्व की
महानता के कारण ही तो पुरुष महान बनते हैं, सदा बने हैं, जो नारी का भी
समादर कर पाते हैं और दोनों के समन्वय से समाज व सभ्यता नित नए सोपान चढ़ती
है|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (27-04-2017) को पाँच लिंकों का आनन्द "अतिथि चर्चा-अंक-650" पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना चर्चाकार का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लिखने वाली पुरुष रहे है हर काल में इसलिए वे कैसे नारी के गुणों को देख पाते, ईगो का सवाल रहा होगा तब और आज भी कहाँ बहुत लोग समान विचार वाले मिलते हैं!
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