प्लास्टिकासुर---डा श्याम गुप्त
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-------धरती दिवस -----
----------यूं तो धरती को प्रदूषित करने में सर्वाधिक हाथ हमारे अति-भौतिकतावादी जीवन व्यवहार का है | यहाँ हमारी धरती को कूड़ा घर बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक एवं जो प्राप्ति, उपयोग , उपस्थिति एवं समाप्ति के प्रयत्नों से सर्वाधिक प्रदूषण कारक है उस तत्व को निरूपित करती हुई , पृथ्वी दिवस पर ....एक अतुकांत काव्य-रचना प्रस्तुत है----
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प्लास्टिकासुर
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-------धरती दिवस -----
----------यूं तो धरती को प्रदूषित करने में सर्वाधिक हाथ हमारे अति-भौतिकतावादी जीवन व्यवहार का है | यहाँ हमारी धरती को कूड़ा घर बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक एवं जो प्राप्ति, उपयोग , उपस्थिति एवं समाप्ति के प्रयत्नों से सर्वाधिक प्रदूषण कारक है उस तत्व को निरूपित करती हुई , पृथ्वी दिवस पर ....एक अतुकांत काव्य-रचना प्रस्तुत है----
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प्लास्टिकासुर
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पंडितजी ने पत्रा पढ़ा, और-
गणना करके बताया,
जज़मान ! प्रभु के -
नए अवतार का समय है आया।
सुनकर छोटी बिटिया बोली,
उसने अपनी जिज्ञासा की पिटारी यूं खोली;
"महाराज, हम तो बड़ों से यही सुनते आये हैं,
बचपन से यही गुनते आये हैं, कि -
असुर - देव ,दनुज, नर, गन्धर्व की -ता है, तो वह-
ब्रह्मा, विष्णु या फिर शिव-शम्भो के
वरदान से ही सम्पन्न होता है।
प्रारम्भ में जग, उस महाबली के,
कार्यों से प्रसन्न होता है;
पर जब वही महाबलवान,
बनकर सर्व शक्तिमान,
करता है अत्याचार,
देव दनुज नर गन्धर्व हो जाते हैं लाचार,
सारी पृथ्वी पर मच जाता है हाहाकार;
तभी लेते हैं, प्रभु अवतार।
हमें तो नहीं दिखता कोई असुर आज,
फिर अवतार की क्या आवश्यकता है महाराज?"
पंडित जी सुनकर, हडबडाये, कसमसाए,
पत्रा बंद करके मन ही मन बुदबुदाए;
फिर, उत्तरीय कन्धों पर डालकर मुस्कुराए; बोले -
"सच है बिटिया, यही तो होता है,
असुर - देव,दनुज, नर, गन्धर्व की -
अति सुखाभिलाषा से ही उत्पन्न होता है।
प्रारम्भ में लोग उसके कौतुक को,
बाल-लीला समझकर प्रसन्न होते हैं।
युवावस्था में उसके आकर्षण में बंधकर
उसे और प्रश्रय देते हैं।
वही जब प्रौढ़ होकर दुःख देता है तो,
अपनी करनी को रोते हैं।
वही देवी आपदाओं को लाता है,फैलाता है;
अपनी आसुरी शक्ति को बढाता है, दिखाता है।
आज भी मौजूद हैं पृथ्वी पर, अनेकों असुर,
जिनमें सबसे भयावह है,' प्लास्टिकासुर '।
प्लास्टिक, जिसने कैसे कैसे सपने दिखाए थे,
दुनिया के कोने-कोने के लोग भरमाये थे।
वही
बन गया है, आज --
पर्यावरण का नासूर,
बड़े बड़े तारकासुरों से भी भयावह है
आज का ये प्लास्टिकासुर।।
गणना करके बताया,
जज़मान ! प्रभु के -
नए अवतार का समय है आया।
सुनकर छोटी बिटिया बोली,
उसने अपनी जिज्ञासा की पिटारी यूं खोली;
"महाराज, हम तो बड़ों से यही सुनते आये हैं,
बचपन से यही गुनते आये हैं, कि -
असुर - देव ,दनुज, नर, गन्धर्व की -ता है, तो वह-
ब्रह्मा, विष्णु या फिर शिव-शम्भो के
वरदान से ही सम्पन्न होता है।
प्रारम्भ में जग, उस महाबली के,
कार्यों से प्रसन्न होता है;
पर जब वही महाबलवान,
बनकर सर्व शक्तिमान,
करता है अत्याचार,
देव दनुज नर गन्धर्व हो जाते हैं लाचार,
सारी पृथ्वी पर मच जाता है हाहाकार;
तभी लेते हैं, प्रभु अवतार।
हमें तो नहीं दिखता कोई असुर आज,
फिर अवतार की क्या आवश्यकता है महाराज?"
पंडित जी सुनकर, हडबडाये, कसमसाए,
पत्रा बंद करके मन ही मन बुदबुदाए;
फिर, उत्तरीय कन्धों पर डालकर मुस्कुराए; बोले -
"सच है बिटिया, यही तो होता है,
असुर - देव,दनुज, नर, गन्धर्व की -
अति सुखाभिलाषा से ही उत्पन्न होता है।
प्रारम्भ में लोग उसके कौतुक को,
बाल-लीला समझकर प्रसन्न होते हैं।
युवावस्था में उसके आकर्षण में बंधकर
उसे और प्रश्रय देते हैं।
वही जब प्रौढ़ होकर दुःख देता है तो,
अपनी करनी को रोते हैं।
वही देवी आपदाओं को लाता है,फैलाता है;
अपनी आसुरी शक्ति को बढाता है, दिखाता है।
आज भी मौजूद हैं पृथ्वी पर, अनेकों असुर,
जिनमें सबसे भयावह है,' प्लास्टिकासुर '।
प्लास्टिक, जिसने कैसे कैसे सपने दिखाए थे,
दुनिया के कोने-कोने के लोग भरमाये थे।
वही
बन गया है, आज --
पर्यावरण का नासूर,
बड़े बड़े तारकासुरों से भी भयावह है
आज का ये प्लास्टिकासुर।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'