*******अगीत - त्रयी...---- भाग सात---डा श्याम गुप्त*****---------
|
--------अगीत कविता विधा के तीन स्तम्भ कवियों के परिचय साहित्यिक परिचय एवं रचनाओं का परिचय ---
अगीत कवि कुलगुरु साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य
महाकवि श्री जगत नारायण पांडे
महाकवि डा श्याम गुप्त-
भाग सात------ डा श्याम गुप्त का वक्तव्य व परिचय ----
---वक्तव्य --
------- “काव्य सौन्दर्य प्रधान हो या सत्य प्रधान, इस पर पूर्व व पश्चिम के विद्वानों में मतभेद हो सकता है, आचार्यों के अपने अपने तर्क व मत हैं | सृष्टि के प्रत्येक वस्तु-भाव की भाँति कविता भी ‘सत्यं शिवं सुन्दरं‘ होनी चाहिए | साहित्य का कार्य सिर्फ मनोरंजन व जनरंजन न होकर समाज को एक उचित दिशा देना भी होता है, और सत्य के बिना कोइ दिशा, दिशा नहीं हो सकती | केवल कलापक्ष को सजाने हेतु एतिहासिक, भौगोलिक व तथ्यात्मक सत्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए | ---काव्य निर्झरिणी से
\
-------- “साहित्य व काव्य किसी विशेष समाज, शाखा व समूह या विषय के लिए न होकर समग्र समाज के लिए, सबके लिए होता है| अतः उसे किसी भाषा, गुट या शाखा विशेष की संकीर्णता की रचनाधर्मिता न होकर भाषा व काव्य की समस्त शक्तियों, भावों, तथ्यों, शब्द-भावों व सम्भावनाओं का उपयोग करना होता है | प्रवाह व लय काव्य की विशेषताएं हैं जो काव्य-विषय व भावसम्प्रेषण क्षमता की आवश्यकतानुसार छंदोबद्ध काव्य में भी हो सकती है एवं छंद-मुक्त काव्य में भी| अतः गीत-अगीत कोई विवाद का विषय नहीं है |”
--शूर्पणखा अगीत काव्य उपन्यास से
\
-------- “ समाज में जब कभी भी विश्रृंखलता उत्पन्न होती है तो उसका मूल कारण मानव मन में नैतिक बल की कमी होता है भौतिकता के अतिप्रवाह में शौर्य, नैतिकता, सामाजिकता, धर्म, अध्यात्म, व्यवहारगत शुचिता, धैर्य, संतोष, समता, अनुशासन आदि उदात्त भावों की कमी से असंयमता पनपती है | अपने इतिहास, शास्त्र, पुराण, गाथाएँ, भाषा व ज्ञान को जाने बिना भागम-भाम में नवीन अनजाने मार्ग पर चल देना अंधकूप की और चलना ही है | आज की विश्रृंखलता का यही कारण है |” ------- शूर्पणखा से
\
--------- ‘ मेरे विचार से समस्या-प्रधान व तार्किक विषयों को मुक्त-छंद रचनाओं में सुगमता से कहा जा सकता है, जो जनसामान्य के लिए सुबोध होती हैं|’ --काव्य मुक्तामृत से
\\
.
----जीवन परिचय—
\
------------- चिकित्सा व साहित्य जगत में जाना पहचाना नाम, चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक डा एस बी गुप्ता व साहित्यकार डा श्याम गुप्त का जन्म पश्चिमी उत्तरप्रदेश के ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में १० नवंबर १९४४ ई में हुआ | आपके पिता का नाम स्व.जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता स्व.श्रीमती रामभेजी देवी हैं; पत्नी का नाम श्रीमती सुषमा गुप्ता है जो हिन्दी में स्तानाकोत्तर हैं एवं स्वयं भी एक कवियत्री व गायिका हैं | आपके एक पुत्र व एक पुत्री हैं | पुत्र श्री निर्विकार बेंगलोर में फिलिप्स कंपनी में वरिष्ठ प्रोजेक्ट प्रवन्धक व पुत्रवधू श्रीमती रीना गुप्ता क्रीडेन्शियल कंपनी की फाइनेंशियल सलाहकार व प्रवन्धक हैं | पुत्री दीपिका गुप्ता प्रवंधन में स्नातकोत्तर व दामाद श्री शैलेश अग्रहरि फिलिप्स पूना में महाप्रवन्धक पद पर हैं |
\
------- डा श्याम गुप्त की समस्त शिक्षा-दीक्षा आगरा नगर में ही हुई | सेंट जांस स्कूल आगरा, राजकीय इंटर कालिज आगरा व सेंट जांस डिग्री कालिज आगरा से अकादमिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय आगरा ( आगरा विश्वविद्यालय ) से चिकित्सा शास्त्र में स्नातक की उपाधि एम् बी बी एस व शल्य-क्रिया विशेषज्ञता में स्नातकोत्तर ‘मास्टर आफ सर्जरी’ की उपाधि प्राप्त की | इस दौरान देश- विदेश की चिकित्सा पत्रिकाओं व शोध पत्रिकाओं में उनके चिकित्सा आलेख व शोध आलेख छपते रहे | चिकित्सा महाविद्यालय में दो वर्ष तक रेज़ीडेंट-सर्जन के पद पर कार्य के उपरान्त आप भारतीय रेलवे के चिकित्सा विभाग में देश के विभिन्न पदों व नगरों में कार्यरत रहे एवं उत्तर रेलवे मंडल चिकित्सालय, लखनऊ से वरिष्ठ चिकित्सा-अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए | सम्प्रति उनका स्थायी निवास लखनऊ है |
--- संपर्क— सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ-२२६०१२ (उ प्र), भारत, मो-०९४१५१५६४६४, ईमेल- drgupta04@gmail.com
\\
-----साहित्यिक परिचय ---
\
--------धर्म, अध्यात्म के वातावरण -- रामायण के सस्वर पाठ से दिनचर्या प्रारम्भ करने वाली व चाकी-चूल्हे से लेकर देवी-देवता, मंदिर की पूजा-अर्चना करने वाली माँ व झंडा-गीत एवं देशभक्ति के गीतों के गायकों की टोली के नायक, देश-भक्ति व सर्व-धर्म, सम-भाव भावना प्रधान पिता के सान्निध्य में वाल्यावस्था में ही कविता-प्रेम प्रस्फुटित हो चुका था |
\
--------शिक्षाकाल से ही आगरा नगर की पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें व आलेख प्रकाशित होते रहे | आगरा से प्रकाशित " युवांतर" साप्ताहिक के वे वैज्ञानिक-सम्पादक रहे एवं बाद में लखनऊ नगर से प्रकाशित -“निरोगी संसार " मासिक के नियमित लेखक व सम्पादकीय सलाहकार |
\
---------- आप हिन्दी भाषा में खड़ी-बोली व ब्रज-भाषा एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के साहित्य में रचनारत हैं | ब्रज क्षेत्र के होने के कारण वे कृष्ण के अनन्य भक्त भी हैं उनके पद एवं अन्य तमाम रचनाएँ कृष्ण व राधा पर आधारित हैं एवं ब्रजभाषा में काव्य-रचना भी करते हैं |
\
---------हिन्दी-साहित्य की गद्य व पद्य दोनों विधाओं की गीत, अगीत, नवगीत .छंदोवद्ध-काव्य, ग़ज़ल, कथा-कहानी, आलेख, निवंध, समीक्षा, उपन्यास, नाटिकाएं सभी में वे समान रूप से रचनारत हैं |
\
-------आप कविता की अगीत विधा के सशक्त अगीतकार कवि, सन्घीय समीक्षा पद्धति के समीक्षक व सन्तुलित कहानी के कहानी कार के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं | वे लखनऊ की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्वद्ध हैं, एवं अगीत परिषद, प्रतिष्ठा व चेतना परिषद के आजीवन सदस्य हैं| आप अनेक काव्य रचनाओं के सहयोगी रचनाकार हैं व कई रचनाओं की भूमिका के लेखक भी हैं|
\
--------अंतरजाल ( इंटरनेट ) पर विभिन्न ई-पत्रिकाओं हिन्दी साहित्य मंच, रचनाकार, हिन्दी-कुन्ज, हिन्द-युग्म, कल्किओन-हिन्दी व कल्किओन-अन्ग्रेज़ी आदि के लेखक एवं सहयोगी रचनाकार हैं | श्याम स्मृति The world of my thoughts .., साहित्य श्याम, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व विजानाति-विजानाति-विज्ञान उनके स्वतंत्र चिट्ठे (ब्लॉग) हैं एवं कई सामुदायिक चिठ्ठों के सहयोगी रचनाकार व सलाहकार |
\
-----उनके अपने स्वयं के विशिष्ट विचार-मंथन के क्रमिक विचार-बिंदु ‘श्याम स्मृति’ के नाम से अंतरजाल पर प्रकाशित होते हैं| अब तक उनके द्वारा लगभग १५० गीत, १५० ग़ज़ल, १५० गीत-अगीत छंद, ६० कथाएं व अनेक आलेख, वैज्ञानिक-दार्शनिक, वैदिक-पौराणिक विज्ञान व धर्म-दर्शन एवं भारतीय पुरा इतिहास तथा विविध विषयों पर आलेख और निवंध तथा कई पुस्तकों की समीक्षाएं आदि लिखी जा चुकी हैं |
\
-------उनकी शैली मूलतः उद्बोधन, देशप्रेम, उपदेशात्मक व दार्शनिक है जो यथा-विषयानुसार होती है| श्रृंगार की एवं ललित रचनाओं में रीतिकालीन अलंकार युक्त शैली में शास्त्रीय छंद घनाक्षरी, दोहे, पद, सवैये आदि उन्होंने लिखे हैं| भावात्मक एवं व्यंगात्मक शैली का भी उन्होंने प्रयोग किया है स्पष्ट भाव-सम्प्रेषण हेतु| मूलतः वे अभिधात्मक कथ्य-शैली का प्रयोग करते हैं| आपको व आपकी विभिन्न कृतियों को विभिन्न संस्थाओं व संस्थानों द्वारा अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं|
\
-------------डा गुप्त ने कई नवीन छंदों की सृष्टि भी की है ..उदाहरणार्थ...अगीत-विधा के ..लयबद्ध-अगीत, षटपदी अगीत, त्रिपदा अगीत , नव-अगीत छंद व त्रिपदा अगीत ग़ज़ल...तथा गीति विधा के " श्याम सवैया छंद " व पंचक श्याम सवैया छंद |
\
----------आपकी प्रकाशित कृतियां---काव्य-दूत, काव्य निर्झरिणी, काव्यमुक्तामृत (सभी काव्य-संग्रह), सृष्टि-अगीत विधा महाकाव्य, प्रेम काव्य—गीति-विधा महाकाव्य, शूर्पणखा-अगीत-विधा काव्य-उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास --नारी विमर्श पर एवं अगीत विधा कविता के विधि-विधान पर शास्त्रीय-ग्रन्थ "अगीत साहित्य दर्पण तथा ब्रजभाषा में विभिन्न काव्य-विधाओं का संग्रह ‘ब्रज बांसुरी’ एवं शायरी काव्य विधा में ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ हैं | अन्य शीघ्र प्रकाश्य कृतियाँ में ---गीत संग्रह, ग़ज़ल संग्रह, अगीत संग्रह, कथा-संग्रह, श्याम दोहा संग्रह, काव्य-कंकरियाँ व श्याम-स्मृति एवं ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद आदि हैं |
-----क्रमश भाग आठ----डा श्याम गुप्त के कुछ अगीत----
|
--------अगीत कविता विधा के तीन स्तम्भ कवियों के परिचय साहित्यिक परिचय एवं रचनाओं का परिचय ---
अगीत कवि कुलगुरु साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य
महाकवि श्री जगत नारायण पांडे
महाकवि डा श्याम गुप्त-
भाग सात------ डा श्याम गुप्त का वक्तव्य व परिचय ----
---वक्तव्य --
------- “काव्य सौन्दर्य प्रधान हो या सत्य प्रधान, इस पर पूर्व व पश्चिम के विद्वानों में मतभेद हो सकता है, आचार्यों के अपने अपने तर्क व मत हैं | सृष्टि के प्रत्येक वस्तु-भाव की भाँति कविता भी ‘सत्यं शिवं सुन्दरं‘ होनी चाहिए | साहित्य का कार्य सिर्फ मनोरंजन व जनरंजन न होकर समाज को एक उचित दिशा देना भी होता है, और सत्य के बिना कोइ दिशा, दिशा नहीं हो सकती | केवल कलापक्ष को सजाने हेतु एतिहासिक, भौगोलिक व तथ्यात्मक सत्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए | ---काव्य निर्झरिणी से
\
-------- “साहित्य व काव्य किसी विशेष समाज, शाखा व समूह या विषय के लिए न होकर समग्र समाज के लिए, सबके लिए होता है| अतः उसे किसी भाषा, गुट या शाखा विशेष की संकीर्णता की रचनाधर्मिता न होकर भाषा व काव्य की समस्त शक्तियों, भावों, तथ्यों, शब्द-भावों व सम्भावनाओं का उपयोग करना होता है | प्रवाह व लय काव्य की विशेषताएं हैं जो काव्य-विषय व भावसम्प्रेषण क्षमता की आवश्यकतानुसार छंदोबद्ध काव्य में भी हो सकती है एवं छंद-मुक्त काव्य में भी| अतः गीत-अगीत कोई विवाद का विषय नहीं है |”
--शूर्पणखा अगीत काव्य उपन्यास से
\
-------- “ समाज में जब कभी भी विश्रृंखलता उत्पन्न होती है तो उसका मूल कारण मानव मन में नैतिक बल की कमी होता है भौतिकता के अतिप्रवाह में शौर्य, नैतिकता, सामाजिकता, धर्म, अध्यात्म, व्यवहारगत शुचिता, धैर्य, संतोष, समता, अनुशासन आदि उदात्त भावों की कमी से असंयमता पनपती है | अपने इतिहास, शास्त्र, पुराण, गाथाएँ, भाषा व ज्ञान को जाने बिना भागम-भाम में नवीन अनजाने मार्ग पर चल देना अंधकूप की और चलना ही है | आज की विश्रृंखलता का यही कारण है |” ------- शूर्पणखा से
\
--------- ‘ मेरे विचार से समस्या-प्रधान व तार्किक विषयों को मुक्त-छंद रचनाओं में सुगमता से कहा जा सकता है, जो जनसामान्य के लिए सुबोध होती हैं|’ --काव्य मुक्तामृत से
\\
.
----जीवन परिचय—
\
------------- चिकित्सा व साहित्य जगत में जाना पहचाना नाम, चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक डा एस बी गुप्ता व साहित्यकार डा श्याम गुप्त का जन्म पश्चिमी उत्तरप्रदेश के ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में १० नवंबर १९४४ ई में हुआ | आपके पिता का नाम स्व.जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता स्व.श्रीमती रामभेजी देवी हैं; पत्नी का नाम श्रीमती सुषमा गुप्ता है जो हिन्दी में स्तानाकोत्तर हैं एवं स्वयं भी एक कवियत्री व गायिका हैं | आपके एक पुत्र व एक पुत्री हैं | पुत्र श्री निर्विकार बेंगलोर में फिलिप्स कंपनी में वरिष्ठ प्रोजेक्ट प्रवन्धक व पुत्रवधू श्रीमती रीना गुप्ता क्रीडेन्शियल कंपनी की फाइनेंशियल सलाहकार व प्रवन्धक हैं | पुत्री दीपिका गुप्ता प्रवंधन में स्नातकोत्तर व दामाद श्री शैलेश अग्रहरि फिलिप्स पूना में महाप्रवन्धक पद पर हैं |
\
------- डा श्याम गुप्त की समस्त शिक्षा-दीक्षा आगरा नगर में ही हुई | सेंट जांस स्कूल आगरा, राजकीय इंटर कालिज आगरा व सेंट जांस डिग्री कालिज आगरा से अकादमिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय आगरा ( आगरा विश्वविद्यालय ) से चिकित्सा शास्त्र में स्नातक की उपाधि एम् बी बी एस व शल्य-क्रिया विशेषज्ञता में स्नातकोत्तर ‘मास्टर आफ सर्जरी’ की उपाधि प्राप्त की | इस दौरान देश- विदेश की चिकित्सा पत्रिकाओं व शोध पत्रिकाओं में उनके चिकित्सा आलेख व शोध आलेख छपते रहे | चिकित्सा महाविद्यालय में दो वर्ष तक रेज़ीडेंट-सर्जन के पद पर कार्य के उपरान्त आप भारतीय रेलवे के चिकित्सा विभाग में देश के विभिन्न पदों व नगरों में कार्यरत रहे एवं उत्तर रेलवे मंडल चिकित्सालय, लखनऊ से वरिष्ठ चिकित्सा-अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए | सम्प्रति उनका स्थायी निवास लखनऊ है |
--- संपर्क— सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ-२२६०१२ (उ प्र), भारत, मो-०९४१५१५६४६४, ईमेल- drgupta04@gmail.com
\\
-----साहित्यिक परिचय ---
\
--------धर्म, अध्यात्म के वातावरण -- रामायण के सस्वर पाठ से दिनचर्या प्रारम्भ करने वाली व चाकी-चूल्हे से लेकर देवी-देवता, मंदिर की पूजा-अर्चना करने वाली माँ व झंडा-गीत एवं देशभक्ति के गीतों के गायकों की टोली के नायक, देश-भक्ति व सर्व-धर्म, सम-भाव भावना प्रधान पिता के सान्निध्य में वाल्यावस्था में ही कविता-प्रेम प्रस्फुटित हो चुका था |
\
--------शिक्षाकाल से ही आगरा नगर की पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें व आलेख प्रकाशित होते रहे | आगरा से प्रकाशित " युवांतर" साप्ताहिक के वे वैज्ञानिक-सम्पादक रहे एवं बाद में लखनऊ नगर से प्रकाशित -“निरोगी संसार " मासिक के नियमित लेखक व सम्पादकीय सलाहकार |
\
---------- आप हिन्दी भाषा में खड़ी-बोली व ब्रज-भाषा एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के साहित्य में रचनारत हैं | ब्रज क्षेत्र के होने के कारण वे कृष्ण के अनन्य भक्त भी हैं उनके पद एवं अन्य तमाम रचनाएँ कृष्ण व राधा पर आधारित हैं एवं ब्रजभाषा में काव्य-रचना भी करते हैं |
\
---------हिन्दी-साहित्य की गद्य व पद्य दोनों विधाओं की गीत, अगीत, नवगीत .छंदोवद्ध-काव्य, ग़ज़ल, कथा-कहानी, आलेख, निवंध, समीक्षा, उपन्यास, नाटिकाएं सभी में वे समान रूप से रचनारत हैं |
\
-------आप कविता की अगीत विधा के सशक्त अगीतकार कवि, सन्घीय समीक्षा पद्धति के समीक्षक व सन्तुलित कहानी के कहानी कार के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं | वे लखनऊ की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्वद्ध हैं, एवं अगीत परिषद, प्रतिष्ठा व चेतना परिषद के आजीवन सदस्य हैं| आप अनेक काव्य रचनाओं के सहयोगी रचनाकार हैं व कई रचनाओं की भूमिका के लेखक भी हैं|
\
--------अंतरजाल ( इंटरनेट ) पर विभिन्न ई-पत्रिकाओं हिन्दी साहित्य मंच, रचनाकार, हिन्दी-कुन्ज, हिन्द-युग्म, कल्किओन-हिन्दी व कल्किओन-अन्ग्रेज़ी आदि के लेखक एवं सहयोगी रचनाकार हैं | श्याम स्मृति The world of my thoughts .., साहित्य श्याम, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व विजानाति-विजानाति-विज्ञान उनके स्वतंत्र चिट्ठे (ब्लॉग) हैं एवं कई सामुदायिक चिठ्ठों के सहयोगी रचनाकार व सलाहकार |
\
-----उनके अपने स्वयं के विशिष्ट विचार-मंथन के क्रमिक विचार-बिंदु ‘श्याम स्मृति’ के नाम से अंतरजाल पर प्रकाशित होते हैं| अब तक उनके द्वारा लगभग १५० गीत, १५० ग़ज़ल, १५० गीत-अगीत छंद, ६० कथाएं व अनेक आलेख, वैज्ञानिक-दार्शनिक, वैदिक-पौराणिक विज्ञान व धर्म-दर्शन एवं भारतीय पुरा इतिहास तथा विविध विषयों पर आलेख और निवंध तथा कई पुस्तकों की समीक्षाएं आदि लिखी जा चुकी हैं |
\
-------उनकी शैली मूलतः उद्बोधन, देशप्रेम, उपदेशात्मक व दार्शनिक है जो यथा-विषयानुसार होती है| श्रृंगार की एवं ललित रचनाओं में रीतिकालीन अलंकार युक्त शैली में शास्त्रीय छंद घनाक्षरी, दोहे, पद, सवैये आदि उन्होंने लिखे हैं| भावात्मक एवं व्यंगात्मक शैली का भी उन्होंने प्रयोग किया है स्पष्ट भाव-सम्प्रेषण हेतु| मूलतः वे अभिधात्मक कथ्य-शैली का प्रयोग करते हैं| आपको व आपकी विभिन्न कृतियों को विभिन्न संस्थाओं व संस्थानों द्वारा अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं|
\
-------------डा गुप्त ने कई नवीन छंदों की सृष्टि भी की है ..उदाहरणार्थ...अगीत-विधा के ..लयबद्ध-अगीत, षटपदी अगीत, त्रिपदा अगीत , नव-अगीत छंद व त्रिपदा अगीत ग़ज़ल...तथा गीति विधा के " श्याम सवैया छंद " व पंचक श्याम सवैया छंद |
\
----------आपकी प्रकाशित कृतियां---काव्य-दूत, काव्य निर्झरिणी, काव्यमुक्तामृत (सभी काव्य-संग्रह), सृष्टि-अगीत विधा महाकाव्य, प्रेम काव्य—गीति-विधा महाकाव्य, शूर्पणखा-अगीत-विधा काव्य-उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास --नारी विमर्श पर एवं अगीत विधा कविता के विधि-विधान पर शास्त्रीय-ग्रन्थ "अगीत साहित्य दर्पण तथा ब्रजभाषा में विभिन्न काव्य-विधाओं का संग्रह ‘ब्रज बांसुरी’ एवं शायरी काव्य विधा में ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ हैं | अन्य शीघ्र प्रकाश्य कृतियाँ में ---गीत संग्रह, ग़ज़ल संग्रह, अगीत संग्रह, कथा-संग्रह, श्याम दोहा संग्रह, काव्य-कंकरियाँ व श्याम-स्मृति एवं ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद आदि हैं |
-----क्रमश भाग आठ----डा श्याम गुप्त के कुछ अगीत----
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें